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EXCLUSIVE: सिर्फ पाने की ही चाह नहीं रखते, खोने का हौसला भी उनमें भरा- राजनाथ सिंह

देश में नई सरकार ने काम शुरू कर दिया है। इतने विशाल जनादेश के बाद अब PM नरेंद्र मोदी की परीक्षा तो होगी ही साथ ही टीम मोदी के मंत्रियों की भी परख होनी तय है।

By ShashankpEdited By: Published: Mon, 17 Jun 2019 09:17 AM (IST)Updated: Mon, 17 Jun 2019 09:36 AM (IST)
EXCLUSIVE: सिर्फ पाने की ही चाह नहीं रखते, खोने का हौसला भी उनमें भरा- राजनाथ सिंह
EXCLUSIVE: सिर्फ पाने की ही चाह नहीं रखते, खोने का हौसला भी उनमें भरा- राजनाथ सिंह

आनंद राय, लखनऊ।  केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह अब एक ऐसे मुकाम पर हैं जहां उन्हें परिचय की जरूरत नहीं है, लेकिन इस मुकाम पर पहुंचने की कहानी जीवन के सार को साकार कर देती है। यह मुकाम उन्हें इसलिए हासिल हुआ क्योंकि उनमें अपार धैर्य है। ऊबड़-खाबड़ रास्तों से चलकर वह प्रशस्त राजमार्ग पर पहुंचे हैं। सिर्फ पाने की ही चाह नहीं रखते, खोने का हौसला भी उनमें भरा है। भरोसा हासिल करना उन्हें आता है और आरोप की कालिख से बचने के लिए अवसरों को गंवाना उन्हें ज्यादा भाता है। सोच हमेशा बड़ी रही और छवि को लेकर सतर्कता जीवन का ध्येय रहा।

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इसकी एक यादगार कहानी मीरजापुर के चुनाव की है। आदित्य नारायण राजकीय इंटर कॉलेज चकिया, चंदौली में हाईस्कूल की पढ़ाई के दौरान ही आरएसएस से जुड़े राजनाथ को जनसंघ ने 1977 के लोकसभा चुनाव में मीरजापुर से उम्मीदवार बना दिया। तब विपक्ष के गठबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने फाकिर अली को वहां का टिकट थमा दिया। कुछ दिनों तक असमंजस का माहौल रहा लेकिन, चरण सिंह के सम्मान में तय हुआ कि राजनाथ चुनाव मैदान से हटेंगे। तब तक नाम वापसी की तारीख बीत गई थी और ऐसे में बैलेट पेपर में राजनाथ का नाम होना तय था। आपातकाल में कारावास भुगत चुके राजनाथ की लोकप्रियता के चलते वोटों के बिखराव का खतरा बढ़ गया। राजनाथ ने हर मंच से कहा, ‘मेरे नाम पर एक भी मुहर लगी तो मुझ पर कलंक लगेगा।’ फाकिर चुनाव जीते तो राजनाथ का नाम चौधरी के भरोसे की सूची में था। फिर विधानसभा चुनाव में चौधरी ने पहल कर राजनाथ को मीरजापुर से टिकट दिलवाया और वह जीते। राजनाथ से जुड़ा दूसरा वाकया भी कम दिलचस्प नहीं है। वह मीरजापुर के एक डिग्री कॉलेज में प्रवक्ता थे। यूजीसी से चार वर्ष का अवकाश लेकर दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर एलएन त्रिपाठी के निर्देशन में पीएचडी के लिए रजिस्ट्रेशन कराया। राजनाथ ने अपनी पीएचडी पूरी कर ली लेकिन, तब तक वह प्रदेश सरकार में मंत्री बन गये। उन्होंने पीएचडी अवार्ड कराने से मना कर दिया। तर्क दिया कि आरोप लगेंगे कि मंत्री बनते ही पीएचडी ले ली।

मां का अंतिम दर्शन न कर पाने का दर्द
राजनाथ जब आपातकाल के दौरान जेल में बंद थे उसी बीच उनकी मां का निधन हो गया। अन्त्येष्टि में शामिल होने के लिए अनुरोध किया लेकिन, अनुमति नहीं मिली। अंतिम दर्शन न कर पाने की टीस उठती रही। इस दर्द से उन्हें ताकत मिली। फिर कभी विचलित नहीं हुए। यह जरूर है कि बड़ा बनने का सपना राजनाथ ने बचपन से ही देखा। कक्षा पांच से इंटरमीडिएट तक राजनाथ के साथ पढ़े बिजली विभाग से सेवानिवृत्त सहायक अभियंता प्यारेलाल श्रीवास्तव बताते हैं कि पढ़ाई के दौरान ही एक समारोह में शिक्षामंत्री पंडित कमलापति त्रिपाठी आये थे और तभी मुझसे राजनाथ ने कहा, 'लाला! देखना एक दिन मैं भी शिक्षा मंत्री बनूंगा।’ कल्याण सरकार में राजनाथ शिक्षा मंत्री बने तो यह याद दिलाने के लिए प्यारेलाल लखनऊ आये थे। राजनाथ अपने बचपन के सपनों को भी नहीं भूले। हाई स्कूल की परीक्षा के दौरान एक सहपाठी को नकल के लिए जियोमेट्री बाक्स के पीछे कुछ नोट करते देखे तो बिगड़ गये। नकल रोकना उनका तबका संकल्प था, जिसे शिक्षामंत्री होते ही पूरा किया। परिस्थितियों को अनुकूल करने का भी हुनर उन्हें मालूम है।

राजनाथ की धोती और देशी खाना
राजनाथ ने दुर्गादास की किताब 'फ्राम कर्जन टू नेहरू' कई बार पढ़ी है। वह मौका मिलते ही कोई न कोई किताब जरूर पढ़ते है। इस दौर में जब धोती पहनने वाले गिनती के नेता बचे हैं तब उनका धोती-कुर्ता लोगों को आकर्षित करता है। वह देशी खाना खाते हैं। गुलाब जामुन और जलेबी उन्हें प् ासंद है। रात को दूध जरूर पीते हैं। इसके लिए वह गाय पालते हैं। सभी कहते हैं कि जब विरोधाभासी माहौल आता तो समन्वय बनाने के लिए राजनाथ का नाम सबसे पहले आता है। बीते लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह लखनऊ में राजनाथ का प्रचार करने आये तो उनकी प्रशंसा में तो कई बातें याद दिलाई लेकिन, यह कहना भी नहीं भूले कि विरोधी दल के लोग भी राजनाथ का सम्मान करते हैं। राजनाथ के सहपाठी और उनके गांव के ही शकील अहमद बताते हैं, 'किसी को भी अपना बनाने की कला उनमें भरी है। जनसंघ से विधानसभा चुनाव लड़ रहे थे और मेरे चचेरे भाई मोहम्मद अख्तर घर-बार छोड़कर तीन माह तक उनके साथ प्रचार में रह गये।'

फिराक गोरखपुरी के मुरीद
राजनाथ फिराक गोरखपुरी के मुरीद हैं। गोरखपुर विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान वह बुद्धा छात्रवास में रहते थे। तब उन्होंने फिराक को आमंत्रित किया था। राजनाथ उनकी यह रचना कभी नहीं भूलते

बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं,

तुङो ऐ जिंदगी! हम दूर से पहचान लेते हैं।

खुद अपना फैसला भी इश्क में काफी नहीं होता,

उसे भी कैसे कर गुजरें जो दिल में ठान लेते हैं।

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