कैबिनेट के बड़े फैसले : किसान कहीं भी बेच सकेंगे फसल, कोलकाता पोर्ट का नाम अब श्यामा प्रसाद मुखर्जी होगा
केंद्रीय कैबिनेट ने आवश्यक वस्तु अधिनियम में ऐतिहासिक संशोधन को मंजूरी प्रदान कर दी है। इससे किसान एग्रीकल्चर प्रोड्युसर मार्केट कमेटी के बंधन से आजाद हो गया है।
नई दिल्ली, जेएनएन। कृषि सुधारों की दिशा में सरकार ने बुधवार को एक अहम कदम बढ़ाते हुए प्रमुख कृषि उत्पादों को आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के दायरे से बाहर करने के फैसले पर मुहर लगा दी। मंडी कानून के मकड़जाल से राहत देने के लिए कांट्रैक्ट फार्मिंग का कानून बनाने का फैसला किया है। इन सब संशोधनों को तत्काल प्रभाव से लागू करने के लिए सरकार ने अध्यादेश के मसौदे को कैबिनेट की बैठक में मंजूरी दे दी। इससे जहां बाजार में बिचौलियों की भूमिका सीमित हो जाएगी, वहीं किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने में सहूलियत होगी।
चार लाइनों में जानें क्या बदला
- मंडी कानून के मकड़जाल से राहत देगा कांट्रैक्ट फार्मिंग के लिए बना नया कानून
- बिना किसी बाधा के दूसरे राज्यों में भी आसानी से अपनी फसल बेच सकेंगे किसान
- बाजार में कम होगी बिचौलियों की भूमिका, किसानों को मिलेगा उपज का उचित मूल्य
- भूमि स्वामी अपनी जमीन किसी को पट्टे पर देने या अनुबंध पर खेती करने को स्वतंत्र
कहीं भी बेची जा सकेगी उपज
आवश्यक वस्तु अधिनियम की सूची से खाद्यान्न, तिलहन और दलहन फसलों के साथ प्याज और आलू जैसी प्रमुख फसलों को बाहर कर दिया गया है। सरकार के इस फैसले से किसान अपनी उपज को कहीं भी बेचने के लिए स्वतंत्र हो जाएंगे। उनके ऊपर राज्यों के उलझे हुए मंडी कानून लागू नहीं होंगे। उन्हें अंतरराज्यीय व्यापार करने की अनुमति मिल जाएगी। इसे 'मूल्य आश्वासन व कृषि सेवाओं के करारों के लिए किसानों का सशक्तीकरण और संरक्षण अध्यादेश-2020' के नाम से जाना जाएगा।
खेत पर बेच सकेगा उपज
कांट्रैक्ट फॉर्मिंग को कानूनी मान्यता मिल जाने से भूमि स्वामी अपनी जमीन को किसी को भी पट्टे पर देने अथवा किसी और कंपनी के साथ अनुबंध के आधार पर खेती करने के लिए स्वतंत्र हो जाएगा। कांट्रैक्ट फार्मिंग की कानूनी छूट से वह बड़े उपभोक्ताओं को अपने खेत पर अपनी उपज बेच सकेगा, जिससे उसकी आमदनी में वृद्धि होगी। कृषि क्षेत्र में तरह-तरह के उलझे हुए कानून हैं, जो भारतीय कृषि क्षेत्र को बुरी तरह प्रभावित करते हैं।
अर्थव्यवस्था को भी होगा फायदा
कैबिनेट के फैसले की जानकारी देने आए केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने बताया कि प्रस्तावित संशोधनों के बाद किसानों को अपनी उपज कहीं भी बेचने की छूट मिल जाएगी, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी बहुत मुफीद साबित होगा। कृषि अर्थव्यवस्था में जरूरी सुधारों की सख्त जरूरत को सरकार ने समझा और इसे पूरा किया। भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में फिलहाल कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 17 फीसद तक है, जबकि इस पर देश की 53 फीसद आबादी निर्भर है।
कांट्रैक्ट फॉर्मिंग से यह होगा लाभ
केंद्रीय मंत्री जावड़ेकर ने कहा कि कांट्रैक्ट फॉर्मिंग से किसानों को अपनी फसल की निश्चित कीमत की जानकारी फसल की बोआई के समय ही हो जाएगी। इससे उसे खुद की खेती पर भरोसा बढ़ेगा। लॉकडाउन के दौरान 20 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा करते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कृषि सुधारों की लंबी फेहरिस्त जारी की थी, जिसमें यह सब शामिल था।
कोलकाता पोर्ट का नाम अब श्यामा प्रसाद मुखर्जी होगा
वहीं केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि इसेंसियल कॉमोडिटी एक्ट में संशोधन कृषि उत्पाद के क्षेत्र में एक बड़ा और क्रांतिकारी कदम है। इसके अलावा सरकार ने फार्माकोपिया कमीशन की स्थापना का भी निर्णय लिया है। आयुष मंत्रालय की गाजियाबाद की दो प्रयोगशालाओं का भी इसमें मर्जर हो रहा है। यह फैसला दूसरी ड्रग्स के स्टैंडर्डाइजेशन को सुनिश्चित करेगा। साथ ही कैबिनेट ने कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट का नाम बदलकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ट्रस्ट किए जाने पर भी अपनी मुहर लगा दी है।
एक हफ्ते में दूसरी बैठक
केंद्रीय कैबिनेट की एक हफ्ते में यह दूसरी बैठक थी। इससे पहले सोमवार को भी बैठक हुई थी जिसमें MSME सेक्टर और किसानों को लेकर कुछ बड़े फैसले लिए गए थे। अर्थव्यवस्था पर कोरोना का असर कम करने के लिए सरकार ने पिछले महीने 20 लाख करोड़ रुपए के आत्मनिर्भर भारत पैकेज का ऐलान किया था। इसमें एमएसएमई के लिए 20 हजार करोड़ रुपए के कर्ज की योजना को मंजूरी दी गई थी। साथ ही खरीफ की 14 फसलों का समर्थन मूल्य बढ़ाने का फैसला भी हुआ था। अब दूसरी बैठक में एकबार फिर किसानों को मजबूती देने के बारे में बड़ा फैसला लिया गया है।