उपचुनाव में सीएम शिवराज और सिंधिया की प्रतिष्ठा बचाने के लिए मोर्चा संभालेंगी उमा भारती
मध्य प्रदेश विधानसभा की 27 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा बचाने के लिए वरिष्ठ नेता उमा भारती मोर्चा संभालेंगी।
आनन्द राय, भोपाल। मध्य प्रदेश में विधानसभा की 27 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। सरकार के स्थायित्व के लिए शिवराज एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं जबकि कांग्रेस के मुकाबले अपनी पिछली हैसियत बरकरार रखने के लिए सिंधिया भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं। दोनों नेता उपचुनाव की बाजी भाजपा के नाम कराने के लिए समीकरण साध रहे हैं। इस सत्ता-संग्राम में शिवराज और सिंधिया की प्रतिष्ठा बचाने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती मोर्चा संभालेंगी।
अंतर्कलह, भितरघात और विद्रोह पर अंकुश लगेगा
सूत्रों का कहना है कि इससे भाजपा के अंतर्कलह, भितरघात और विद्रोह पर भी अंकुश लगेगा। भाजपा ने वर्चुअल बैठकों के साथ ही सेक्टर और मंडल स्तर पर जातीय गोलबंदी भी शुरू कर दी है। सामाजिक समीकरण साधने के लिए हर वर्ग और जाति को सहेजने की कोशिशें शुरू हो गई हैं। ग्वालियर-चंबल संभाग में उपचुनाव की सर्वाधिक सीटें हैं और इन क्षेत्रों में उमा की लोधी बिरादरी की संख्या निर्णायक है। वर्ष 2018 में लोधी कांग्रेस के साथ थे जिससे भाजपा के कई दिग्गज नेता चुनाव हार गए थे।
लोधी समाज को संभालने में जुटीं उमा भारती
बीते दिनों लोधी समुदाय के विधायक प्रद्युम्न सिंह ने विधायकी और कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा में घर वापसी की तो यह संकेत साफ हो गया कि अब उमा भारती लोधी समाज को संभालने में जुट गई हैं। मध्य प्रदेश की सियासत में लंबे समय से किनारे रहीं उमा का इन दिनों शिवराज के घर-परिवार में आना-जाना बढ़ा है। कोरोना संक्रमित होने के बाद शिवराज ट्विटर पर लिख चुके हैं- 'प्रिय दीदी आपके आशीर्वाद से मुझे एक अलग ही ताकत मिलती है।' उमा ने भी जवाब में लिखा- 'मैं इंतजार कर रही हूं कि मेरे भैया जल्दी अस्पताल से घर पहुंचे और मैं उनका स्वागत करूं।'
राजमाता से रिश्तों के चलते सिंधिया से स्नेह
उमा का प्रभाव सिर्फ लोधी बिरादरी में ही नहीं बल्कि सभी वर्गों में है। अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण की शुरुआत से भी उमा की पूछपरख बढ़ी है क्योंकि वह मंदिर आंदोलन की फायरब्रांड नेत्री रही हैं। उमा भारती को राजनीति में राजमाता विजयाराजे सिंधिया लेकर आई थीं। वर्ष 1984 में वह पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ीं लेकिन हार गईं। 1989 में खजुराहो संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीतीं। उमा राजमाता के रिश्ते को संजोंकर रखने में कभी नहीं चूकी। राजमाता के अवसान के बाद ग्वालियर राज परिवार का भाजपा से कोई रिश्ता नहीं बना।
सिंधिया समर्थक विधायकों के क्षेत्रों में प्रचार की मांग
अब ज्योतिरादित्य के भाजपा में आने के बाद उमा भारती को सार्वजनिक तौर पर उनकी मदद का मौका मिला है। जिन 27 सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उनमें 25 सीटें कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे से रिक्त हैं और इनमें भी 22 विधायकों ने सिंधिया के नेतृत्व में अपना इस्तीफा सौंपा था। इनके ही क्षेत्रों में उमा भारती के प्रचार की सर्वाधिक मांग है। इसलिए सिंधिया पिछले दिनों एयरपोर्ट से उतरते ही सीधे उमा के आवास पर गए थे। भाजपा के मुख्य प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय का कहना है कि सभी वरिष्ठ नेता चुनाव प्रचार में उतरेंगे और हम सभी सीटें जीतेंगे।