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मध्‍य प्रदेश में दो साल की खाई पाटने में उमा भारती को लगे 16 साल, 2024 में चुनाव लड़ने का इरादा जताया

उमा भारती को हाल में उपचुनाव में मलहरा सांची और पोहरी विधानसभा सीट की जिम्मेदारी दी गई थी। उन्होंने इसे निभाते हुए भारी मतों से भाजपा को जीत दिलाई। 2024 के लोकसभा चुनाव में उमा भारती मध्य प्रदेश से ही चुनाव लड़ सकती हैं।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Thu, 12 Nov 2020 10:55 PM (IST)Updated: Thu, 12 Nov 2020 10:55 PM (IST)
मध्‍य प्रदेश में दो साल की खाई पाटने में उमा भारती को लगे 16 साल, 2024 में चुनाव लड़ने का इरादा जताया
भाजपा की दिग्गज नेता उमा भारती (फाइल फोटो)।

 धनंजय प्रताप सिंह, भोपाल। दिग्गज नेता उमा भारती को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद मध्य प्रदेश भाजपा की सियासत से बाहर होने से बनी खाई पाटने में 16 साल से अधिक लग गए। मतभेदों की वजह से दो साल (वर्ष 2003 और 2004) में बनी खाई के कारण वे सात साल पार्टी से दूर भी रहीं। इस दौरान उन्होंने भारतीय जनशक्ति पार्टी (बीजेएसपी) बनाकर विधानसभा चुनाव में किस्मत भी आजमाई, लेकिन खास सफलता नहीं मिली। हालांकि न तो वे भाजपा से दूर रह पाई और न भाजपा उन्हें दूर रख पाई। अंतत: उमा भारती उत्तर प्रदेश के रास्ते मध्य प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर उसी रंगत में आ गई हैं।

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उमा भारती को हाल ही में संपन्न हुए उपचुनाव में मलहरा, सांची और पोहरी विधानसभा सीट की जिम्मेदारी दी गई थी। उन्होंने इसे बखूबी निभाते हुए भारी मतों से भाजपा को जीत दिलाई। पार्टी के सूत्र दावा करते हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में उमा भारती मध्य प्रदेश से ही चुनाव लड़ सकती हैं। उमा स्वयं कह चुकी हैं कि वे 2024 में चुनाव लड़ेंगी, लेकिन कहां से, इसका फैसला पार्टी करेगी। 

उमा भारती ने बुधवार को जिस तरीके से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा और राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया की तारीफ की, उससे लगता है कि रिश्तों पर जमी तनाव की बर्फ पिघल चुकी है। मालूम हो, उमा और पार्टी नेताओं में तीन साल असंतोष था। यह इस कदर बढ़ा कि उन्होंने भाजपा छोड़ दी। वर्ष 2003 में उमा भारती ने दिग्विजय सिंह की कांग्रेस सरकार को धूल चटा दी थी और भाजपा ने रिकार्ड जीत हासिल की थी।

हालांकि, वे खुद भी लंबे समय तक मध्य प्रदेश में सत्ता में नहीं रह सकीं। उन्हें 23 अगस्त 2004 को मुख्यमंत्री पद से त्याग-पत्र देना पड़ा था। दरअसल, 15 अगस्त, 1994 को कर्नाटक के हुबली में उमा भारती ने तिरंगा झंडा फहराया था। हुबली की एक अदालत में दंगा भड़काने समेत दायर कुल 13 मामलों में से एक में उनके खिलाफ अदालत ने गैर जमानती वारंट जारी किया था। इसके चलते उन्होंने पद छोड़ दिया था। 

आडवाणी को दी थी चुनौती

नवंबर 2004 में धनतेरस के दिन उन्हें भाजपा मुख्यालय में तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी को चुनौती देने के मामले में निलंबित कर दिया गया था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मध्यस्थता से 2011 में इस शर्त के साथ उनकी भाजपा में वापसी हुई कि वे मप्र की सियासत में शामिल नहीं होंगी। 2012 में वे उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में भी प्रोजेक्ट की गई। 2014 में झांसी से लोकसभा सदस्य बनकर उमा भारती मुख्यधारा में लौटीं और मोदी सरकार में मंत्री बनीं। 2019 का चुनाव उन्होंने नहीं लड़ा, लेकिन 2024 का चुनाव लड़ने की घोषणा कर मध्य प्रदेश में सक्रिय रहने के संकेत दे दिए हैं।

उपचुनाव में सक्रियता

- सांची विधानसभा क्षेत्र में प्रतिकूल परिस्थितियों को बदला और भाजपा को रिकार्ड मतों से जिताया।

- महलरा सीट से विधायक रहीं उमा भारती ने उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी के कोरोना संक्रमित होने के बाद खुद मोर्चा संभाला और जीत दिलाई।

-पोहरी सीट में स्वजातीय मतदाताओं को साधकर भाजपा को मजबूत किया। 

भाजपा के प्रदेश प्रभारी विनय सहस्रबुद्धे ने कहा कि उमा भारती भाजपा की सक्रिय और वरिष्ठ नेता हैं। मप्र की पूर्व सीएम हैं। समय-समय पर चलाए गए अभियानों में उनकी महती भूमिका है। 


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