Move to Jagran APP

Tripura में 56 सालों में बने कई आदिवासी राजनीतिक दल, ठोस विचारधारा न होने के कारण नहीं बचा किसी का अस्तित्व

त्रिपुरा में इस साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं जिसको लेकर कई पार्टियों ने गठबंधन का विचार बना लिया है। त्रिपुरा में आदिवासी राजनीतिक दलों ने राजनीति में बेहद अहम किरदार निभाया है। हांलाकि यह दल विचाराधारा न होने के कारण ज्यादा अस्तित्व में नहीं आ सके हैं।

By Shalini KumariEdited By: Shalini KumariPublished: Sun, 29 Jan 2023 12:51 PM (IST)Updated: Sun, 29 Jan 2023 12:51 PM (IST)
Tripura में 56 सालों में बने कई आदिवासी राजनीतिक दल, ठोस विचारधारा न होने के कारण नहीं बचा किसी का अस्तित्व
त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के लिए तैयार सभी पार्टियां।

अगरतला, आईएएनएस। त्रिपुरा में 16 फरवरी को विधानसभा चुनाव होने वाले हैं जिसके लिए सभी पार्टियों ने पूरी तैयारी कर ली है। कहा जाता है कि पिछले 56 सालों से त्रिपुरा में आदिवासी आधारित दलों ने राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की कोशिश की है, लेकिन कोई विचारधारा न होने के कारण वे अस्तित्वहीन हो गए। जून 1967 में त्रिपुरा उपजाती जुबा समिति (टीयूजेएस) का गठन किया गया था, यह तब राज्य में आदिवासियों का समर्थन करने वाली पहली राजनीतिक पार्टी थी।

loksabha election banner

टीयूजेएस के बाद, राज्य में कई आदिवासी पार्टियों का गठन किया गया। इसमें त्रिपुरा हिल्स पीपुल्स पार्टी, त्रिपुरा नेशनल वालंटियर्स (टीएनवी), इंडीजेनस नेशनलिस्ट पार्टी ऑफ त्रिपुरा (आईएनपीटी), तिप्रालैंड स्टेट पार्टी (टीएसपी), इंडीजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी), नेशनल कांफ्रेंस ऑफ त्रिपुरा (एनसीटी) सहित एक दर्जन से अधिक आदिवासी आधारित राजनीतिक दलों का नाम शामिल है। हालांकि, कुछ सालों में ये पार्टियां या तो खत्म हो गईं या फिर इन्होंने दूसरी पार्टी में विलय करना पड़ा था।

मांगो को लेकर पार्टियां कर चुकी हैं आंदोलन

2002 में, टीयूजेएस और टीएनवी का आईएनपीटी में विलय हो गया। वहीं, पिछले साल नई आदिवासी आधारित पार्टी तिप्राहा इंडीजेनस प्रोग्रेसिव रीजनल एलायंस (टीपरा) के साथ आईएनपीटी का विलय हो गया। टीपरा का नेतृत्व पूर्व शाही वंशज प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देब बर्मन कर रहे थे। आईपीएफटी 2009 से पूरे राज्य में त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (टीटीएएडीसी) के तहत क्षेत्रों को बनाने की मांग कर रहा है। जबकि, टीपरा 2021 से, संविधान के अनुच्छेद 2 और 3 के तहत एक 'ग्रेटर टिपरालैंड राज्य' या एक अलग राज्य देकर टीटीएएडीसी क्षेत्रों के उन्नति पर जोर दे रहा है। हालांकि, सत्तारूढ़ भाजपा, सीपीआई-एम के नेतृत्व वाली वामपंथी पार्टियां, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस ने आईपीएफटी और टीआईपीआरए दोनों की मांगों का कड़ा विरोध किया। वहीं, इन दोनों दलों ने अपनी मांगों को लेकर राज्य और राजधानी दिल्ली दोनों में आंदोलन भी किया।

चुनाव के लिए गठबंधन की कोशिश

त्रिपुरा में बीजेपी, सीपीआई-एम, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस 16 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनावों में टीआईपीआरए के साथ गठबंधन करने की कोशिश कर रही हैं ताकि 20 महत्वपूर्ण जनजातीय आरक्षित सीटों में बहुमत हासिल किया जा सके। इसके अलावा पार्टियां आईपीएफटी को भी अपने साथ लाने के प्रयास में हैं। पिछले चुनावों (2018) में, भाजपा ने 10 और सीपीआई-एम ने दो आदिवासी आरक्षित सीटें जीती थीं।

कुछ समय में अस्तित्वहीन हो जाती हैं पार्टियां

2018 के विधानसभा चुनावों से पहले आईपीएफटी को आदिवासियों से बड़े पैमाने पर समर्थन मिलने के बाद टीआईपीआरए ने ग्रेटर तिप्रालैंड की मांग उठाई। अप्रैल 2021 से, टीआईपीआरए राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण 30-सदस्यीय टीटीएएडीसी पर शासन कर रहा है। यहां लगभग 12,16,000 से अधिक लोगों का घर है, जिनमें लगभग 84 प्रतिशत आदिवासी हैं। यह स्वायत्त परिषद एक तरह का मिनी-विधानसभा है। राजनीतिक टिप्पणीकार संजीब देब ने कहा कि त्रिपुरा में आदिवासी आधारित राजनीतिक दलों का गठन कुछ मुद्दों और मांगों के आधार पर किया गया था, इन दलों की कोई विचारधारा नहीं है। वर्षों के अनुभव के अनुसार, जब उनके मुद्दों का समाधान हो जाता है या जब वे ऐसी मांगें उठाते हैं जिन्हें लागू करना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं होता है तो वे पार्टियां अस्तित्वहीन हो जाती हैं।

भाजपा से मिला शर्मनाक हार

सीपीआई-एम के नेतृत्व वाला वाम मोर्चा पहली बार 1978 में 60 सदस्यीय विधानसभा में 56 सीटें हासिल कर सत्ता में आया था। जबकि बाकी चार सीटें तत्कालीन टीयूजेएस द्वारा जीते गए थे। लेफ्ट फ्रंट ने 35 साल (1978 से 1988 और 1993 से 2018) तक त्रिपुरा पर शासन किया। इसके बाद वाम दलों को 2018 में बीजेपी से शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था। अगले विधानसभा चुनाव में भी गठबंधन की पूरी संभावना है।

यह भी पढ़ें: Tripura Polls 2023: त्रिपुरा में होने वाले चुनाव से पहले माकपा विधायक, कांग्रेस नेता भाजपा में होंगे शामिल

त्रिपुरा विधानसभा चुनाव: टिकटों पर आज मंथन करेगी भाजपा, पीएम मोदी रहेंगे मौजूद


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.