बिप्लब देब का नया ज्ञान, अंग्रेजों के विरोध में टैगोर ने लौटा दिया था नोबेल पुरस्कार
बिप्लब देब ने कहा, 'ब्रिटिश सरकार के शासन के खिलाफ विरोध जताते हुए रबींद्रनाथ टैगोर ने नासिर्फ नोबेल पुरस्कार को अस्वीकार कर दिया।
By Manish NegiEdited By: Published: Fri, 11 May 2018 06:24 PM (IST)Updated: Fri, 11 May 2018 06:24 PM (IST)
style="text-align: justify;">अगरतला, आइएएनएस/प्रेट्र। त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब ने भारत में ब्रिटेन के कुशासन के खिलाफ रबींद्रनाथ टैगोर के साहित्य का नोबेल पुरस्कार ठुकराने की बात कह कर नया विवाद खड़ा कर दिया है। विपक्ष ने तत्काल मुख्यमंत्री के तथ्यहीन बयान की आलोचना शुरू कर दी।
दरअसल, असलियत में टैगोर ने वर्ष 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में नाइटहुड सम्मान ठुकराया था। उन्होंने वर्ष 1913 में मिला नोबेल पुरस्कार नहीं ठुकराया था। गीतांजलि के लिए उन्हें मिला साहित्य का नोबेल पुरस्कार जीवनपर्यत उनके साथ रहा। टैगोर का देहावसान सात अगस्त, 1941 को हुआ था।
बुधवार को टैगोर की 157वीं जयंती पर गोमती जिले में एक कार्यक्रम के दौरान बांग्ला में सीएम बिप्लब देब ने कहा, 'ब्रिटिश सरकार के शासन के खिलाफ विरोध जताते हुए रबींद्रनाथ टैगोर ने नासिर्फ नोबेल पुरस्कार को अस्वीकार कर दिया बल्कि ब्रिटिश सरकार के गीतांजलि के लिए बिस्वरेष्ठो (विश्व का सर्वश्रेष्ठ) पुरस्कार भी ठुकराया दिया।'
सीएम देब के इस बयान से खिन्न त्रिपुरा के शाही उत्तराधिकारी और टीपीसीसी के कार्यकारी अध्यक्ष प्रद्योत किशोर देवबर्मन ने कहा कि वह सीएम के बयान से नाखुश हैं। जलियांवाला बाग के नरसंहार के बाद टैगोर ने 1919 में नाइटहुड सम्मान लौटाया था। मेरे दादाजी भी इस घटना से बेहद विचलित हुए थे। ऐसा मैंने उनकी डायरी में पढ़ा था। मुख्यमंत्री का ऐसे बयान देना अच्छी बात नहीं है। इस बात का कोई मतलब नहीं है।
टैगोर के त्रिपुरा के राजाओं से संबंधों पर कई किताबें लिख चुके पन्नालाल रॉय ने कहा कि टैगोर त्रिपुरा सात बार आए थे। वह चार राजाओं बीरचंद्र, राधाकिशोर, बिरेंद्र किशोर और आखिरी राजा बीर बिक्रम किशोर माणिक्य बहादुर के काफी करीब थे। वहीं त्रिपुरा प्रदेश कांग्रेस कमेटी (टीपीसीसी) अध्यक्ष बीरजीत सिन्हा ने शुक्रवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि उन्हें विदेश से भी फोन आ रहे हैं और लोग सीएम के बयान पर हंस रहे हैं। उन्होंने हमारे राज्य की छवि धूमिल की है और हम सबको शर्मिदा किया है। वहीं माकपा के राज्य सचिव बिजन धर ने कहा कि मैं इस बयान पर केवल हंस सकता हूं।
दरअसल, असलियत में टैगोर ने वर्ष 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में नाइटहुड सम्मान ठुकराया था। उन्होंने वर्ष 1913 में मिला नोबेल पुरस्कार नहीं ठुकराया था। गीतांजलि के लिए उन्हें मिला साहित्य का नोबेल पुरस्कार जीवनपर्यत उनके साथ रहा। टैगोर का देहावसान सात अगस्त, 1941 को हुआ था।
बुधवार को टैगोर की 157वीं जयंती पर गोमती जिले में एक कार्यक्रम के दौरान बांग्ला में सीएम बिप्लब देब ने कहा, 'ब्रिटिश सरकार के शासन के खिलाफ विरोध जताते हुए रबींद्रनाथ टैगोर ने नासिर्फ नोबेल पुरस्कार को अस्वीकार कर दिया बल्कि ब्रिटिश सरकार के गीतांजलि के लिए बिस्वरेष्ठो (विश्व का सर्वश्रेष्ठ) पुरस्कार भी ठुकराया दिया।'
सीएम देब के इस बयान से खिन्न त्रिपुरा के शाही उत्तराधिकारी और टीपीसीसी के कार्यकारी अध्यक्ष प्रद्योत किशोर देवबर्मन ने कहा कि वह सीएम के बयान से नाखुश हैं। जलियांवाला बाग के नरसंहार के बाद टैगोर ने 1919 में नाइटहुड सम्मान लौटाया था। मेरे दादाजी भी इस घटना से बेहद विचलित हुए थे। ऐसा मैंने उनकी डायरी में पढ़ा था। मुख्यमंत्री का ऐसे बयान देना अच्छी बात नहीं है। इस बात का कोई मतलब नहीं है।
टैगोर के त्रिपुरा के राजाओं से संबंधों पर कई किताबें लिख चुके पन्नालाल रॉय ने कहा कि टैगोर त्रिपुरा सात बार आए थे। वह चार राजाओं बीरचंद्र, राधाकिशोर, बिरेंद्र किशोर और आखिरी राजा बीर बिक्रम किशोर माणिक्य बहादुर के काफी करीब थे। वहीं त्रिपुरा प्रदेश कांग्रेस कमेटी (टीपीसीसी) अध्यक्ष बीरजीत सिन्हा ने शुक्रवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि उन्हें विदेश से भी फोन आ रहे हैं और लोग सीएम के बयान पर हंस रहे हैं। उन्होंने हमारे राज्य की छवि धूमिल की है और हम सबको शर्मिदा किया है। वहीं माकपा के राज्य सचिव बिजन धर ने कहा कि मैं इस बयान पर केवल हंस सकता हूं।
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