भाजपा के लिए गहन समीक्षा का वक्त, तीन अहम राज्यों से हुई सत्ता से बेदखल
इन चुनावों को लोकसभा का सेमीफाइनल माना जा रहा था। राजनीति में ऐसा तो खैर होता नहीं है, लेकिन सबक हर दल को मिल गया है। भाजपा को अपने अंदर झांकना होगा।
प्रशांत मिश्र [ त्वरित टिप्पणी ]। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे आ गए हैं। भाजपा तीन अहम राज्यों में सत्ता से बेदखल हो गई और कांग्रेस काबिज। वे तीन राज्य जो न सिर्फ हिंदी बेल्ट में भाजपा के मजबूत गढ़ थे बल्कि 2014 की जीत के बड़े आधार भी थे। कांग्रेस मुक्त भारत का नारा एकबारगी खारिज हो गया। सीधी लड़ाई में कांग्रेस ने बाजी मार ली। कांग्रेस के लिए यह बड़े हर्ष का विषय है क्योंकि लोकसभा चुनाव से पहले की जीत मायने रखती है। भाजपा की ओर से इस हार को कम कर दिखाने और छिपाने के लिए बहुत तर्क दिए जाएंगे जो फिलहाल बेमानी हैं क्योंकि हार हार है और यह मानने से किसी को गुरेज नहीं होना चाहिए कि इस नतीजे से 2019 का लोकसभा चुनाव बहुत बेअसर नहीं रहेगा।
हिंदुत्व के एजेंडे पर कांग्रेस दिखी आगे
सवाल यह उठता है कि अच्छी लड़ाई के बावजूद आखिरकार भाजपा जंग क्यों हार गई। कमी कहां रही? उन राज्यों में भी जहां विकास की गति तेज रही है। केंद्र की योजनाओं का क्रियान्वयन भी हुआ, प्रदेश सरकार भी सक्रिय दिखी और स्थानीय चेहरा भी मजबूत था। राजस्थान की बात छोड़ दें तो छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में तो मुख्यमंत्री चेहरे के खिलाफ कोई गुस्सा भी नहीं था। फिर क्या था जिसे भाजपा नहीं आंक सकी? और कांग्रेस आगे बढ़ गई। एक सरकार को लेकर जनता में थकान और बदलने की चाहत एक बड़ा कारण हो सकता है। लेकिन भाजपा माने या न माने एक कारण हिंदुत्व भी रहा।
2019 की लड़ाई के लिए लगाना होगा हर किसी को दम
अगर इन चुनावों में कांग्रेस के अभियान को ध्यान से देखा जाए तो अनुसरण करते करते ही सही वह भाजपा के हार्ड हिंदुत्व कार्ड को धारण करती दिखी। मंदिर दौड़, मूल गोत्र और ब्राह्मण पहचान स्थापित करने जैसी कवायदों के अलावा राम मंदिर के मुद्दे पर उनके नेता आगे बढ़चढ़ कर बोलते भी दिखे और यह दावा भी करते दिखे कि राममंदिर तो कांग्रेस का ही प्रधानमंत्री बनाएगा। भाजपा की ओर से 'मंदिर वहीं बनाएंगे' जैसे नारे जरूर लगाए जाते रहे लेकिन जिस तरह संतों की ओर से अध्यादेश और कानून की बात की जा रही है उस पर चुप्पी रही।
विकास का एजेंडा सही है, चुनाव लड़े भी उसी मुद्दे पर जाने चाहिए और वोट भी उसी पर होना चाहिए, लेकिन जनता सिर्फ इतने से संतुष्ट नहीं होती है। उन्हें उससे आगे बढ़कर कुछ चाहिए- दिल मांगे मोर। राम मंदिर का अब जल्द से जल्द समाधान मांगा जा रहा है। भाजपा समीक्षा करे लेकिन हिंदी बेल्ट में बड़ी संख्या में जनता की भावना को समझते उसे यह समझ लेना चाहिए राम मंदिर पर उसे कानून की कवायद शुरू करनी ही होगी। इससे पहले कि कांग्रेस ही अपने कदम बढ़ाए।
तेलंगाना में सोनिया भी बेअसर
यह भी सच है कि कांग्रेस के खाते में सिर्फ जीत नहीं आई। मिजोरम में कांग्रेस पूरी तरह हार गई, सत्ता से बेदखल हो गई। तेलंगाना में कांग्रेस गठबंधन की उम्मीदों पर पानी फिर गया। तेलंगाना निर्माण का श्रेय लेने के लिए संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी को उतारने की रणनीति भी विफल हो गई। लेकिन यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि तेलंगाना और मिजोरम से केंद्र सरकार नहीं बनती। उसका बड़ा आधार ¨हदी बेल्ट से ही तैयार होता है। महागठबंधन का शोर तेज है और इस नतीजे के बाद कांग्रेस के लिए इसका रास्ता थोड़ा आसान होगा।
कांग्रेस नहीं जीती, भाजपा हारी है
इन चुनावों को लोकसभा का सेमीफाइनल माना जा रहा था। राजनीति में ऐसा तो खैर होता नहीं है, लेकिन सबक हर दल को मिल गया है। भाजपा को अपने अंदर झांकना होगा। जबकि कांग्रेस को यह अहसास होना चाहिए कि इन चुनावों में वह नहीं जीती है बल्कि भाजपा हारी है। वरना राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी छत्तीसगढ़ सरीखा नतीजा होता। पर एक सवाल अभी भी नहीं सुलझ सका है। ईवीएम को लेकर जीतने वाली पार्टी भी सवाल उठाने से नहीं चूक रही है। यानी ईवीएम का राजनीतिकरण जारी रहेगा।