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अगड़ों को आरक्षण पर इन पार्टियों ने जताया विरोध, जानिये क्‍या कहा

अगड़ों को आरक्षण का विरोध करने वालों में एआइडीएमके, डीएमके, राजद, सीपीआइ जैसे दल शामिल रहे।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Wed, 09 Jan 2019 10:18 PM (IST)Updated: Wed, 09 Jan 2019 10:18 PM (IST)
अगड़ों को आरक्षण पर इन पार्टियों ने जताया विरोध, जानिये क्‍या कहा
अगड़ों को आरक्षण पर इन पार्टियों ने जताया विरोध, जानिये क्‍या कहा

नई दिल्‍ली, जेएनएन। अगड़ों को आरक्षण के लिए बुधवार को राज्‍यसभा में विधेयक लाया गया। इस विधेयक को लेकर जहां काफी दलों ने समर्थन किया, वहीं कई दलों ने विरोध किया। विरोध करने वालों में एआइडीएमके, डीएमके, राजद, सीपीआइ जैसे दल शामिल रहे।

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एआइडीएमके के सांसद ए. नवनीतकृष्णन ने 10 फीसदी आरक्षण बिल का विरोध किया। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु को इस बिल से सबसे ज्यादा नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि उनका विनम्र अनुरोध बस इतना है और जो कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से भी स्पष्ट है कि संसद या कोई भी कानून संविधान के मूल ढांचे को नहीं बदल सकती है। उन्होंने आगे कहा कि इसी आधार पर इस बिल को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी जाएगी और यह सुप्रीम कोर्ट से रिजेक्ट हो जाएगा। संविधान हमेशा से संसद से ऊपर है और इसका उच्च स्थान बरकरार रहना चाहिए।

तमिलनाडु में 69 फीसदी आरक्षण लागू है और यह 10 फीसदी आरक्षण वहां के लोगों के मूल अधिकारों का भी उल्लंघन होगा। साथ ही यह संविधान के मूल ढांचे को भी चुनौती देगा। बिना आंकड़ों के 10 फीसदी आरक्षण को लागू करना लोगों के मूल अधिकारों का उल्लंघन होगा. अपनी बात कहने के बाद उन्होंने सदन से वॉकआउट कर दिया।

बिल का विरोध करते हुए आरजेडी सांसद मनोज कुमार झा ने कहा कि इस बिल का हमारी पार्टी विरोध करती है। हम सामाजिक न्याय वाले दल हैं और हमारे नेता ने हमेशा इसके लिए लड़ाई लड़ी है। उन्होंने कहा कि सरकार इस बिल को लाकर संविधान के बुनियादी ढांचे के साथ छेड़छाड़ कर रही है। झा ने कहा कि हमें सरकार की नीति और नियत दोनों पर एतराज है। हम इस मध्य रात्रि की लूट पर मुहर नहीं लगा सकते। गरीबी की जाति नहीं होती, यह फिल्मी डायलॉग है क्योंकि जातियों में ही गरीबी है। ओबीसी, एससी-एसटी और मुस्सिमों में 90 फीसदी लोग गरीब मिलेंगे।

मनोज कुमार झा ने कहा कि कैबिनेट से लेकर आखिरी पायदान तक जाति का असर पता चल जाएगा। उन्होंने कहा कि अगर आप सुप्रीम कोर्ट की सीमा तोड़ रहे हैं तो ओबीसी का कोटज्ञ को भी बढ़ाकर आरक्षण दीजिए। झा ने कहा कि इस बिल के जरिए जातिगत आरक्षण को खत्म करने का रास्ता तय हो रहा है। उन्होंने कहा कि कानूनी और संवैधानिक तौर पर यह बिल खारिज होता है। झा ने कहा कि आरक्षण देना है तो निजी क्षेत्र में भी दीजिए, वहां हाथ लगाने से क्यों डर रहे हैं। आबादी के हिसाब से आरक्षण मिलना चाहिए। उन्होंने झुनझुना दिखाते हुए कहा कि आमतौर पर ये बजता है लेकिन इस दौर में यह सरकार के पास है जो सिर्फ हिलता है बजता नहीं है।

बिल का विरोध करते हुए डीएमके सांसद कनिमोझी ने कहा कि बिना किसी कमेटी को भेजे सरकार रातों-रात यह बिल लेकर आई है और अकेले ही सभी फैसले लेना चाहती है। उन्होंने कहा कि पिछड़ी जातियों को मिला आरक्षण कोई भीख नहीं बल्कि उनका अधिकार है, क्योंकि वो लोग पिछड़ी जातियों में पैदा हुए हैं। उन्होंने कहा कि आर्थिक तौर पर पिछड़े सवर्णों को आरक्षण देने के पीछे आंकड़े क्या है, कितने लोगों को इसका फायदा मिलने जा रहा है, क्या आर्थिक स्तर आरक्षण देने की कोई बुनियाद बन सकता है। डीएमके सांसद ने बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने की मांग की।

बिल का विरोध करते हुए सीपीआई के सांसद डी राजा ने कहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान सभा की चर्चा के खिलाफ है। मूछ बढ़ाने पर गुजरात में दलित युवक की लिंचिंग की जाती है, यह किस प्रकार का भारत हम बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि संविधान में सामाजिक पिछड़ेपन के लिए आरक्षण का प्रावधान है, कही भी आर्थिक आधार पर आरक्षण का जिक्र नहीं है।

राजा ने कहा कि आप हर बिजनेस हाउस को सपोर्ट करते हैं। अगर हिम्मत है तो प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण का बिल लेकर आएं, हम उसका समर्थन करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि वामपंथियों ने हमेशा से गरीबों की लड़ाई लड़ी है और हम ही समाज में बराबरी, सामाजिक न्याय के लिए सड़कों पर उतरे हैं।  


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