लाल झंडे-हाथ पर कमल पड़ा भारी, भाजपा के ये दिग्गज रहे पूर्वोत्तर में जीत के हीरो
त्रिपुरा में माणिक सरकार को कड़ी हार का सामना करना पड़ा है। इसके साथ ही नागालैंड में भाजपा गठबंधन का प्रदर्शन शानदार रहा है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। पूर्वोत्तर भारत करीब करीब कांग्रेस मुक्त हो चुका है। चलो पलटाई का नारा जहां त्रिपुरा में सच साबित हुआ वहीं नागालैंड में भाजपा गठबंधन बहुमत के करीब है तो मेघालय की राजनीतिक तस्वीर से साफ है कि वहां भाजपा अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार बना सकती है। पूर्वोत्तर के इन तीन राज्यों में भाजपा के शानदार प्रदर्शन की आधारशिला और उन चेहरों के बारे में जानना जरूरी है जिनके अकथ और अथक परिश्रम की वजह से ये राज्य केसरिया रंग में सराबोर हैं। कहते हैं कि चुनावी लड़ाई में मुद्दों की पहचान करना जितना महत्वपूर्ण होता है उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि चुनावों के दौरान पार्टियों के रणनीतिकार किस अंदाज में अपनी बात को जनता के सामने रखते हैं।
अगर आप त्रिपुरा में चुनाव प्रचार को देखें तो पीएम मोदी की वो अपील बरबस याद आती है जब उन्होंने कहा था कि अब समय माणिक को हटाकर हीरा पहनने का का है। हीरा को विस्तार देते हुए उन्होंने बताया था कि हाइवे, इंटरनेट वे, रोडवेज और एयरवेज त्रिपुरा की जरूरत है। रुझानों में दो तिहाई बढ़त के साथ पीएम की इस अपील पर मतदाताओं ने मुहर लगा दी और 25 साल पुरानी माणिक सरकार को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। इसमें संदेह नहीं कि इस जीत का श्रेय भाजपा के नेता पीएम मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को दे रहे हैं।भाजपा के महासचिव राम माधव ने कहा कि इन राज्यों में जीत सिर्फ जीत नहीं है बल्कि पीएम मोदी ने लोगों का दिल भी जीता है, वहीं राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की दूरदर्शी सोच और जमीन पर की गई मेहनत की जीत हुई है। लेकिन हम आपको बताएंगे कि पूर्वोत्तर को कांग्रेस मुक्त करने की कोशिश में कौन से वो चेहरे हैं जो लगातार भाजपा का झंडा गाड़ने की कोशिश में जुटे रहे।
हेमंत विश्व सरमा
इनके बारे में खास परिचय देने की जरूरत नहीं है। 2016 में जब असम में केसरिया झंडे ने कांग्रेस को बाहर का रास्ता दिखाया तो इस शख्स की काबिलियत पर किसी को संदेह नहीं रहा। अगर आप हेमंत विश्व सरमा की शख्सियत को देखें तो वो कांग्रेस से जुड़े हुए थे। लेकिन कांग्रेस द्वारा अपमानित होने के बाद और खासतौर से राहुल गांधी द्वारा मुलाकात के लिए समय नहीं मिलने पर उन्होंने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया।
असम में कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने के बाद उन्होंने अपनी दिली इच्छा के बारे में बताते हुए कहा था कि पूर्वोत्तर को कांग्रेस मुक्त करना ही उनका एक मात्र सपना है। अपने मिशन को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने त्रिपुरा में टीएमसी और कांग्रेस के विधायकों को अपने पाले में लिया। इसके बाद उन्होंने असम की तर्ज आइपीएफटी इंडिजेनस पीपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा के साथ गठबंधन किया। इसका फायदा ये हुआ कि पहाड़ी इलाकों में मतदाताओं का झुकाव स्वभाविक तौर पर भाजपा के साथ हो गया।
राम माधव
उत्तर पूर्व के प्रभारी और भाजपा के महासचिव राम माधव ने कहा कि ये पीएम मोदी की नीतियों की जीत है। राम माधव के बारे में कहा जाता है कि वो बहुत कम बोलते हैं लेकिन जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं को बांध कर रखते हैं। राम माधव की काबिलियत को जम्मू-कश्मीर में पीडीपी और भाजपा का गठबंधन उनकी प्रमुख कामयाबी में से एक था। दो विपरीत विचारधाराओं को एक मंच पर लाना भारतीय राजनीति का गहन विश्लेषण करने वालों के लिए खास विषयों में से एक था। पूर्वोत्तर में अलग अलग विचारधारा वाले दलों को एक साथ कांग्रेस के खिलाफ गठबंधन बनाने में अहम भूमिका निभाई।
सुनील देवधर
भाजपा के त्रिपुरा प्रभारी सुनील देवधर ने कहा कि त्रिपुरा में इस बार इतिहास रचा गया है, पार्टी ने काफी मेहनत की है। हमने बूथ लेवल पर काम किया है, पन्ना प्रमुखों ने बीजेपी की जीत में काफी अहम भूमिका निभाई है। देवधर बताते हैं कि जिस वक्त वो त्रिपुरा आए तो वो महज दो हफ्तों के लिए रुकना चाहते थे। लेकिन माणिक सरकार की नाकामियों और जनता की लाचारगी को देखकर वो यहां दो साल रुक गए। उन्होंने न केवल अपना स्थाई निवास बनाया बल्कि राज्य के सभी हिस्सों में लोगों की दिक्कतों को देखा। त्रिपुरा में अपने अनुभव को बताते हुए वो कहते हैं कि माणिक सरकार को जो चेहरा आम लोगों के सामने है हकीकत ये है कि उनके शासन में उसके उलट काम होता था। सीपीएम की बुनियादी सोच यह रही है कि राज्य की जनता गरीबी में गुजर बसर करे।मराठी भाषी देवधर लंबे समय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे हैं और वे बांग्ला भाषा भी बोल लेते हैं। भाजपा की ओर से उन्हें नॉर्थ ईस्ट की जिम्मेदारी दी गयी थी। यहां रहते हुए उन्होंने स्थानीय भाषाएं सीख लीं। बताया जाता है कि जब वो मेघालय, त्रिपुरा, नागालैंड में खासी और गारो जैसी जनजाति के लोगों से मिलते हैं तो उनसे उन्हीं की भाषा में बातचीत करते हैं।
विप्लव कुमार देब
त्रिपुरा भाजपा के अध्यक्ष विप्लब कुमार देब बताते हैं कि माणिक सरकार के खिलाफ पार्टी की जीत के मायने व्यापक हैं। ये सिर्फ जीत नहीं है बल्कि उस विचारधारा के खिलाफ जीत है जो अपने आप को गरीबों, शोषितों का लंबरदार बताती थी। सीपीएम हिंसा की राजनीति में भरोसा करती थी और वो सड़कों पर साफ दिखाई देता था। न जाने कितने भाजपा के कार्यकर्ताओं को बलिदान देना पड़ा। लेकिन इस जीत ने साबित कर दिया है कि आप धोखे की राजनीति लंबे समय तक नहीं कर सकते हैं।
नलिन कोहली
मेघालय में भाजपा के प्रभारी नलिन कोहली ने पूर्वोत्तर राज्यों में पार्टी के प्रदर्शन पर कहा कि ये एक सामान्य जीत नहीं है। ये पीएम मोदी की नीतियों की जीत है उससे भी जीत है कि पीएम मोदी ने ,राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने यहां के लोगों के दिल को जीता है। यहां के लोगों में मुख्य भूमि को लेकर जो अलगाव की भावना रहती थी उसमें कमी आई है।
वो खुद पिछले 6 महीनों से यहां पर हैं, वो जिन जिन इलाकों में जाते थे वहां लोगों का एक ही सवाल रहता था कि क्या वो देश के दूसरे हिस्सों की तरह विकास के रास्ते पर चल सकेंगे। पूर्वोत्तर के दूसरे राज्यों की तुलना में मेघालय में कांग्रेस शासन के दौरान लोगों को सिर्फ झूठे वादे के सपने दिखाए गए।
यह भी पढ़ें: चार साल, 23 राज्य और सिर्फ 2 में जीत पायी कांग्रेस; आत्मसमीक्षा का यही सही वक्त है?