देश के सबसे दुर्गम इलाके 'अबूझमाड़' में पसरा है ऐसा सन्नाटा
इन जंगलों में न निर्वाचन आयोग के कर्मचारी पहुंच रहे हैं न राजनीतिक दलों के नेता और कार्यकर्ता।
रायपुर/ नारायणपुर। देश के सबसे दुर्गम इलाकों में से एक अबूझमाड़ में चुनाव की कोई हलचल नहीं है। बस्तर के अन्य नक्सली इलाकों से इतर यहां चुनाव बहिष्कार का भी कोई माहौल नहीं दिखता। इन जंगलों में न निर्वाचन आयोग के कर्मचारी पहुंच रहे हैं न राजनीतिक दलों के नेता और कार्यकर्ता। 'अबूझमाड़' में सन्नाटा पसरा है और जिला मुख्यालय में नारायणपुर में अधिकारी इस चिंता में सिर धुन रहे हैं कि वहां लोकतंत्र की लौ को कैसे जलाए रखा जाए।
22 में से 18 अति संवेदनशील
माड़ में कुल 22 मतदान केंद्र हैं जिनमें से 18 अति संवेदनशील माने गए हैं। प्रशासन ने इन 18 मतदान केंद्रों को शिफ्ट करने का प्रस्ताव प्रशासन को दिया है। अगर निर्वाचन आयोग ने इस प्रस्ताव को मान लिया तो माड़ के कई गांवों से मतदान केंद्र 90 से 100 किलोमीटर तक दूर हो जाएंगे। यहां न सड़कें हैं न वाहन चलते हैं। घने जंगलों, पहाड़ों से होकर आदिवासी इतनी दूर पैदल वोट डालने आएंगे इस बात पर संदेह है। वह भी तब जबकि माड़ में नक्सलियों का कब्जा है और नक्सली चुनाव का विरोध कर रहे हैं।
44 वर्ग किलोमीटर में फैला है अबूझमाड़
नारायपुर, बीजापुर और दंतेवाड़ा जिलों की सीमा के बीच 44 सौ वर्ग किलोमीटर के इलाके में अबूझमाड़ के जंगल फैले हैं। यहां 222 गांव हैं। अबूझमाड़ में कुल 14269 मतदाता हैं। इनमें से 7202 महिलाएं और 7076 पुरूष हैं। यह इतना दुर्गम क्षेत्र है कि आजतक यहां राजस्व सर्वे नहीं हो पाया है।
गांव में मतदान केंद्र हो तो वोट डालेंगे
आदिवासी आदिम सभ्यता का पालन करते हैं। इसके बाद भी चुनाव को लेकर उनकी उत्सुकता में कोई कमी नहीं है। वे खामोश हैं तो इसलिए क्योंकि उन्हें पता है यहां चुनाव का नाम लेने का मतलब है अपनी जान जोखिम में डालना। नईदुनिया की टीम माड़ के भीतर कुतुल गांव तक गई। आदिवासी बोले-अगर हमारे गांव में मतदान केंद्र हो तो वोट डालेंगे। हालांकि ग्रामीणों की इस बात पर प्रशासन को भरोसा नहीं है।
वहां तक तो जाना ही मुश्किल
अधिकारी कह रहे वहां कैसे मतदान केंद्र बना दें। वहां तक तो जाना ही मुश्किल है। और आदिवासियों का क्या भरोसा। अभी कह रहे वोट देंगे बाद में नक्सली आकर धमका दिए तो पलट न जाएं। नारायणपुर और आसपास के गांवों में नेताओं की चौपाल लगने लगी है। ग्रामीणों को अपने पक्ष में करने के जतन किए जा रहे हैं जबकि माड़ में चुनाव नाम की कोई हलचल नहीं है। अभी माड़ के भीतर जो 22 मतदान केंद्र बनाए गए हैं वे बने रहे तो भी आदिवासियों को 15 से 25 किलोमीटर पैदल चलकर मतदान केंद्रों तक आना होगा। अगर इन केंद्रों को शिफ्ट कर दिया गया तो निश्चित तौर पर माड़िया आदिवासी मतदान की प्रक्रिया से वंचित हो जाएंगे।
सुरक्षा की दिक्कत
अबूझमाड़ में मतदान दलों को कई दिनों तक पैदल चलकर मतदान केंद्र तक पहुंचना होता है। यहां बम रोधी दस्ते, हेलीकॉप्टर, ड्रोन कैमरे समेत सुरक्षा के तमाम उपाय किए जाते हैं। जब तक पोलिंग पार्टियां लौटकर नहीं आ जातीं प्रशासन की सांस थमी रहती है। सुरक्षाबलों को भी यहां पैदल ही जाना होता है। अगर नक्सलियों ने घेर लिया तो बाहर से मदद की कोई उम्मीद नहीं है। ऐसे में स्थानीय प्रशासन कितना रिस्क ले इसे लेकर मंथन चल रहा है।
इन मतदान केंद्रों पर है दिक्कत
प्रशासन ने ओरछा ब्लॉक के गटकल, गुमरका, गोमंगल, आडेर, कोडोली, पांगुड़, कोंगे, गारपा, गोमे, पालेबेड़ा, पालेमेटा, मसपुर माड़, टगकाटोंड, बड़पेंडा, कछलपाल, झारावाही, कुतुल, कोडलीयार मतदान केंद्रों को ओरछा, छोटबेठिया, सोनपुर, कोयलीबेड़ा मंे शिफ्ट करने का प्रस्ताव दिया है। तर्क है कि ये इलाके अति नक्सल प्रभावित हैं। इन गांवों में मतदान दलों के ठहरने के लिए कोई भवन नहीं हैं। जिला मुख्यालय से बेहद दूर और संपर्कहीन इलाके हैं। यहां माओवादी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
मतदाताओं से 96 किमी दूर हो जाएगा मतदान केंद्र
जिन मतदान केंद्रों को शिफ्ट करने का प्रस्ताव है उनमें से कुछ तो 20-30 किमी दूर हैं लेकिन कांेगे 96 किमी दूर है। पांगुड़ 65, गारपा 65, गोमे 80 और पोलेबेड़ा 71 किमी दूर है। कुतुल और टागकोटोंग जैसे केंद्र 45-50 किमी दूर हैं।
यहां भी लंबा सफर मजबूरी
बिलासपुर जिले के कोटा विधानसभा क्षेत्र में भी एक मतदान केंद्र ऐसा है जहां मतदाताओं को छह से 12 किमी चलना होगा। टांटीधार के आश्रित गांव मगरडांड, गौरपुरी, चांटीडांड के ग्रामीणों को बघधरा के पोलिंग बूथ में जाना होगा। ये गांव दुर्गम पहाड़ी इलाकों में हैं इसलिए ग्रामीणों को परेशानी उठानी पड़ेगी।