Move to Jagran APP

Congress की इस दुर्दशा के लिए पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ही जिम्मेदार, इतिहास से सीखें कांग्रेस

साफ है अगर कांग्रेस समाज से जुड़कर नहीं रहेगी समाज में हो रहे बदलावों को नहीं स्वीकार करेगी तो इसका अंजाम भी स्वतंत्र पार्टी जनता दल और जनता पार्टी जैसा हो सकता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 17 Jul 2020 01:52 PM (IST)Updated: Fri, 17 Jul 2020 03:18 PM (IST)
Congress की इस दुर्दशा के लिए पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ही जिम्मेदार, इतिहास से सीखें कांग्रेस
Congress की इस दुर्दशा के लिए पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ही जिम्मेदार, इतिहास से सीखें कांग्रेस

हिमांशु शेखर। जब भी कोई राजनीतिक पार्टी अपने दल के हित से बढ़कर किसी एक परिवार के हित का ध्यान रखेगी, तब उसका हाल भी कांग्रेस के समान ही होगा। लगता है कि नेहरू-गांधी परिवार कांग्रेस पार्टी से बड़ा हो चुका है। इसी कारण पूर्व में शरद पवार, ममता बनर्जी, जगनमोहन रेड्डी और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे जनाधार वाले नेताओं को पार्टी छोड़नी पड़ी। और अब सचिन पायलट भी उसी राह पर चल पड़े हैं।

loksabha election banner

जाहिर है कि कांग्रेस की इस दुर्दशा के लिए पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ही जिम्मेदार है। एक समय में कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व पूरे देश में था, लेकिन आज कुछ राज्यों में सिमट कर रह गई है।अगर जिंदा रहना है तो कांग्रेस को इतिहास से सीखना होगा। जब भी कोई पार्टी समाज से जुड़कर नहीं रहती, समाज में हो रहे बदलावों के अनुसार स्वयं में बदलाव नहीं लाती तो वह समाप्त हो जाती है। पूर्व में सोशलिस्ट पार्टी, स्वतंत्र पार्टी, जनता पार्टी, जनता दल आदि हुआ करते थे।

आज ये सभी पार्टियां समाप्त हो चुकी हैं। चौथे लोकसभा चुनाव में स्वत्रंत पार्टी को 44 सीटें मिली थीं, आज इस पार्टी का नाम लेने वाला कोई नहीं है। छठे लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी को 295 सीटें मिली थीं। उसकी सरकार भी बनी थी, पर कुछ ही वर्ष बाद वह समाप्त हो गई। नौवीं लोकसभा चुनाव में जनता दल को 142 सीटें मिली थीं। उसकी सरकार भी बनी थी, लेकिन आज यह पार्टी भी समाप्त हो गई है। 1984 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को दो सीटें मिली थीं, लेकिन जनता से जुड़ाव का ही नतीजा है कि 2019 के चुनाव में भाजपा को 303 सीटें मिलीं।

1984 में कांग्रेस को चार सौ से ज्यादा सीटें मिली थीं, पर जनता से दूर होने का नतीजा है कि 2019 के चुनाव में इसको सिर्फ 52 सीटें ही मिलीं। कम्युनिस्ट पार्टी भी भारतीय समाज के साथ जुड़कर नहीं चल सकी। इसका हाल भी जनता देख रही है। कांग्रेस को सोचना चाहिए कि क्यों एक-एक करके जनाधार वाले नेता पार्टी छोड़ रहे हैं। साफ है अगर कांग्रेस समाज से जुड़कर नहीं रहेगी, समाज में हो रहे बदलावों को नहीं स्वीकार करेगी तो इसका अंजाम भी स्वतंत्र पार्टी, जनता दल और जनता पार्टी जैसा हो सकता है।

राष्ट्रीय स्तर पर मुख्य रूप से दो ही पार्टियां हैं, एक भारतीय जनता पार्टी और दूसरी कांग्रेस। कुछ क्षेत्रीय पार्टियां भाजपा के साथ जुड़ी हुई हैं और कुछ कांग्रेस के साथ। यदि कांग्रेस सत्ता में हो तो भाजपा को मजबूत विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिए और यदि भाजपा सत्ता में हो तो कांग्रेस को सशक्त विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिए, लेकिन आज कांग्रेस एक मजबूत विपक्ष की भूमिका नहीं निभा पा रही है। यह चिंता की बात है। अगर विपक्ष नहीं रहा तो सत्ताधारी दल निरंकुश हो सकता है। स्वस्थ लोकतंत्र की खातिर कांग्रेस को सोच-विचार कर अपनी नीतियों में बदलाव लाना चाहिए।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.