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केंद्र सरकार ने कहा, जस्टिस बनर्जी और शरण से ढाई साल जूनियर हैं जोसेफ

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस की वरिष्ठता की सूची है उसमें नवनियुक्त तीनों जजों में से कोई भी चीफ जस्टिस नहीं बन सकता है। ऐसे में इस मुद्दे को बेवजह तूल दिया जा रहा है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Mon, 06 Aug 2018 08:58 PM (IST)Updated: Tue, 07 Aug 2018 10:29 AM (IST)
केंद्र सरकार ने कहा, जस्टिस बनर्जी और शरण से ढाई साल जूनियर हैं जोसेफ
केंद्र सरकार ने कहा, जस्टिस बनर्जी और शरण से ढाई साल जूनियर हैं जोसेफ

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सरकार ने जस्टिस केएम जोसेफ की वरिष्ठता प्रभावित करने के विपक्ष के आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए कहा है कि जस्टिस जोसेफ नवनियुक्त दोनों जजों से ढाई साल जूनियर हैं। इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट में जजों की वरिष्ठता सूची के मुताबिक नवनियुक्त तीनों जजों में से कोई भी प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) नहीं बन सकता। ऐसे में इस मुद्दे को बेवजह तूल दिया जा रहा है।

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सरकार ने कोलेजियम की सिफारिश स्वीकार करते हुए जस्टिस इंदिरा बनर्जी, विनीत शरण और केएम जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट में प्रोन्नत कर दिया है। मंगलवार को होने वाले शपथ ग्रहण कार्यक्रम में जस्टिस जोसेफ आखिर में शपथ लेंगे। विवाद इसे ही लेकर उठा है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने जहां प्रधान न्यायाधीश से मिलकर चिंता जताई, वहीं लोकसभा में भी एक सांसद ने यह मुद्दा उठाया और सरकार पर आरोप लगाया। बहरहाल जो स्थिति है उससे स्पष्ट है कि जस्टिस जोसेफ के साथ भेदभाव का न तो तार्किक कारण है और न ही कोई मंशा। मालूम हो कि इन तीन नियुक्तियों के साथ ही सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या 25 हो गई है और अभी भी जजों के छह पद रिक्त हैं।

हाईकोर्ट जजों की ऑल इंडिया वरिष्ठता सूची में जोसेफ 39वें नंबर पर
कानून मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, वास्तव में जस्टिस जोसेफ नवनियुक्त न्यायाधीशों में सबसे जूनियर हैं। वरिष्ठता हाई कोर्ट में शुरुआती नियुक्ति की तिथि से तय होती है। जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस विनीत शरण 05 और 14 फरवरी, 2002 को हाई कोर्ट जज नियुक्त हुए थे, जबकि जस्टिस जोसेफ 14 अक्टूबर 2004 को हाई कोर्ट जज बने थे। इस हिसाब से जस्टिस जोसेफ हाई कोर्ट न्यायाधीशों की ऑल इंडिया वरिष्ठता में 39वें नंबर पर हैं। ऐसी परिस्थितियों में जस्टिस बनर्जी और शरण को जस्टिस जोसेफ से कनिष्ठ बनाया जाना पारदर्शिता के सिद्धांत के विपरीत होता। 

नवनियुक्त तीनों जजों में से कोई भी नहीं बन सकता सीजेआइ 
जो वर्तमान स्थिति है उसमें तो यह संभव ही नही है कि जस्टिस जोसेफ या जस्टिस इंदिरा बनर्जी व विनीत शरण प्रधान न्यायाधीश बनें। जस्टिस जोसेफ 16 जून, 2023 को सेवानिवृत्त होंगे जबकि नवनियुक्त तीनों न्यायाधीशों से वरिष्ठ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ नवंबर, 2024 तक प्रधान न्यायाधीश बने रहेंगे।

इस नियम की मौजूद हैं कई नजीरें 
सूत्रों का कहना है कि एक साथ सुप्रीम कोर्ट प्रोन्नत होने वाले न्यायाधीशों का वरिष्ठता क्रम तय करने के इस नियम की कई नजीरें मौजूद हैं जिन्हें पहले लागू किया जा चुका है। उदाहरण के तौर पर वर्तमान प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और अब सेवानिवृत हो चुके न्यायाधीश जे. चेलमेश्वर एक ही दिन सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बने थे, लेकिन तत्कालीन संप्रग सरकार ने जस्टिस दीपक मिश्रा को वरिष्ठ माना था क्योंकि वह जस्टिस चेलमेश्वर से डेढ़ साल पहले हाई कोर्ट जज नियुक्त हुए थे। जस्टिस मिश्रा 17 जनवरी, 1996 को हाईकोर्ट जज नियुक्त हुए थे जबकि जस्टिस चेलमेश्वर 23 जून, 1997 को हाई कोर्ट जज बने थे। हालांकि जस्टिस चेलमेश्वर 03 मई, 2007 को हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बन गए थे जबकि जस्टिस मिश्रा 23 दिसंबर 2009 को हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने थे, लेकिन सरकार का कहना है कि वरिष्ठता पर हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनने से कोई फर्क नहीं पड़ता, वरिष्ठता शुरुआती नियुक्ति से ही जोड़ी जाती है।

प्रांतीय प्रतिनिधित्व के मद्देनजर नहीं हो सकती इस नियम की अनदेखी
सरकार का यह भी कहना है कि सुप्रीम कोर्ट प्रोन्नत होने के लिए हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश होना भी जरूरी नहीं है। कई बार ऐसे जज सुप्रीम कोर्ट प्रोन्नत हुए हैं, जो हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नहीं थे। इतना ही नहीं, सरकार के सूत्र यह भी कहते हैं कि वैसे तो जजों की प्रोन्नति और उनके करियर में वरिष्ठता बहुत मायने रखती है, लेकिन प्रांतीय प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए वरिष्ठता को उतना महत्व नहीं भी दिया जा सकता है। परन्तु जब किसी हाईकोर्ट का पहले ही सुप्रीम कोर्ट में पर्याप्त प्रतिनिधित्व हो, उस समय अन्य वरिष्ठ जजों के हितों को देखते हुए वरिष्ठता के इस तय नियम की अनदेखी नहीं की जा सकती।मालूम हो कि जस्टिस जोसेफ की प्रोन्नति की सिफारिश पहली बार में सरकार ने वापस कर दी थी। दूसरी बार भी जब कोलेजियम ने उनके नाम को दोहराया तो सरकार ने मान लिया। उसी वक्त से सरकार पर आरोप लगाया जा रहा है।


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