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EXCLUSIVE : मौत की छांव में जिंदगी का बसेरा, लापरवाही दे रही हादसों को न्योता

दिल्ली की बात करें तो यहां मानकों को ताक पर रखकर अनेक जगहों पर संगठित रूप से अवैध निर्माण का धंधा जोरों से चल रहा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 19 Jul 2018 11:52 AM (IST)Updated: Thu, 19 Jul 2018 01:28 PM (IST)
EXCLUSIVE : मौत की छांव में जिंदगी का बसेरा, लापरवाही दे रही हादसों को न्योता
EXCLUSIVE : मौत की छांव में जिंदगी का बसेरा, लापरवाही दे रही हादसों को न्योता

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। ग्रेटर नोएडा में दो इमारतों के ढहने से कई लोगों की मौत ने दिल्ली के लोगों को भी दहशत में डाल दिया है। दिल्ली की बात करें तो यहां मानकों को ताक पर रखकर अनेक जगहों पर संगठित रूप से अवैध निर्माण का धंधा जोरों से चल रहा है। यह सब कुछ निगम, राजस्व विभाग व पुलिस की जानकारी में होता है, लेकिन वे चुप्पी साधे रहते हैं। नतीजा यह हो रहा है कि मकान के सामने बने चबूतरे गली की चौड़ाई को निगल रहे हैं तो वहीं छज्जा आसमान को निगलता नजर आता है। इस स्थिति में यदि कहीं कोई अनहोनी हो जाए तो राहत बचाव कार्य में मुश्किल हालातों का सामना करना पड़ेगा।

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पश्चिमी दिल्ली की बात करें तो उपनगरी द्वारका, नजफगढ़ व उत्तम नगर के इलाके में अवैध निर्माण का धंधा बेरोकटोक जारी है। कभी-कभी निगम की ओर से अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर थाने में मामला दर्ज करा दिया जाता है, लेकिन यह कार्रवाई दिखावे तक ही सीमित रहती है। अवैध निर्माण के ढहाने की कार्रवाई में भी निगम व बिल्डरों के बीच सांठगांठ का खेल होता है। ढहाने की कार्रवाई उन्हीं जगहों पर होती है जहां से कोर्ट की फटकार का डर होता है।

भूकंप के झटके सहने लायक भी नहीं हैं मकान
निगम पश्चिमी जोन व नजफगढ़ जोन के विभिन्न क्षेत्रों में बिल्डर मुनाफे के लालच में तय मानकों की धज्जियां उड़ा देते हैं। सीढ़ियों की चौड़ाई कम होती है। भूतल पर पार्किंग के लिए जगह छोड़ने के बजाय बिल्डर वहां भी दुकानें खड़ी कर देते हैं। यदि इन मकानों में आग लग जाए या भूकंप की स्थिति हो तो उपरी मंजिलों पर रहने वाले लोगों को नीचे उतरने और पार्किंग क्षेत्र से बाहर निकलने में पसीने छूट जाएंगे। मुनाफे के इस धंधे में मकान बनाने में घटिया निर्माण सामग्री का उपयोग किया जाता है।

नींव व छत को मजबूत करने के बजाय बिल्डरों का जोर मकान की बाहरी साज सज्जा पर होता है ताकि लोग इन्हें देखकर मकान खरीदने आ सके। आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिकारियों के अनुसार, दिल्ली का दक्षिणी पश्चिमी व पश्चिमी क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील है। क्षेत्र की मिट्टी भी उतनी मजबूत नहीं है। ऐसे में इस क्षेत्र में मकान निर्माण के समय भूकंपरोधी तकनीक का इस्तेमाल होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है।

व्यवस्था पर भारी दबाव
महावीर एंक्लेव की ही बात करें तो स्थानीय लोगों का कहना है कि पहले जहां एक इमारत में एक परिवार रहता था। अब वहां ऊंची ऊंची इमारतें बन चुकी हैं। इससे कई समस्याएं आने लगी हैं।

इन इलाकों में चल रहा अवैध निर्माण
पटेल गार्डन, बजाज एंक्लेव, मोहन गार्डन, बिपिन गार्डन, बिपिन गार्डन एक्सटेंशन, उत्तम नगर जी-1 ब्लॉक, चाणक्य प्लेस, मिलापनगर, महावीर एंक्लेव, साधनगर, महावीर नगर, तिलक नगर, नजफगढ़, विकासनगर, उत्तम नगर, मधु विहार, राजापुरी, राजनगर, हरिनगर, जनकपुरी व अन्य क्षेत्र।

दक्षिणी दिल्ली में नियमों की अनदेखी से सांसत में है लाखों लोगों की जान
सिर पर छत की चाह में नियमों और सुरक्षा को दरकिनार करके बनाए जा रहे आशियाने लोगों के लिए कभी भी मौत की छांव बन सकते हैं। ग्रेटर नोएडा के शाहबेरी में हुआ हादसा इसकी बानगी भर है। दक्षिणी दिल्ली में भी ऐसे इलाकों की कमी नहीं हैं, जहां लाखों परिवार मौत की छांव में जिंदगी गुजार रहे हैं।

ग्रेटर नोएडा के शाहबेरी में दो इमारतों के अचानक गिरने की जो घटना हुई है, उसकी पुनरावृत्ति दक्षिणी के कई इलाकों में कभी भी हो सकती है। संगम विहार और जामिया नगर में लाखों परिवार ऐसे मकानों में रह रहे हैं, जो सुरक्षा मानकों पर किसी भी स्तर पर खरे नहीं उतरते। जहां दो-तीन मंजिला भवन बनाने की अनुमति है, वहां लोगों ने पांच-छह मंजिला भवन बना लिए हैं।

इन मकानों की नींव बनाने लेकर दीवारों की मोटाई तक का ध्यान नहीं रखा गया है, वहीं इन भवनों का नक्शा भी अधिकृत रूप से स्वीकृत नहीं कराया गया है। भवन के निर्माण से पहले मिट्टी की जांच भी नहीं कराई जाती है, वहीं भवन का निर्माण किए जाने के दौरान उसकी मजबूती का ख्याल रखने के बजाय सिर्फ उसकी ऊंचाई पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। जो लोग स्वयं के रहने के लिए मकान बना रहे हैं, वे भी यहां किराया वसूलने के चक्कर में भवन की ऊंचाई को प्राथमिकता देते हैं।

जो लोग फ्लैट बनाकर बेचने के लिए इमारतें खड़ी कर रहे हैं, वे किसी भी प्रकार के सुरक्षा मानकों का ख्याल नहीं रखते। ऐसे में इन इमारतों में रहने वाले लोगों की सांसों की डोर कब जिंदगी के हाथ से फिसलकर मौत के हाथ में आ जाए, यह उन लोगों को भी नहीं पता, जो ऐसे अवैध रूप से निर्मित भवनों में रह रहे हैं।

अवैध निर्माण के कारण इन इलाकों में है जान जोखिम में
जामिया नगर, जोगाबाई एक्सटेंशन, जैतपुर, शाहीन बाग, बदरपुर, छतरपुर, संगम विहार, कालकाजी, तुगलकाबाद, ओखला, तेहखंड, खड्डा लोनी,अबुलफजल एंक्लेव, खानपुर, देवली, राजू पार्क, कृष्णा पार्क, जसोला व महिपालपुर।

सभी विभागों की बंद हैं आंखें
अवैध निर्माण को रोकने वाले संस्थाओं के अधिकारी पूरी तरह से आंखें बंद कर बैठे हुए हैं। जिन लोगों पर अवैध निर्माण को रोकने की जिम्मेदारी है वे स्वार्थ के चलते निर्माणाधीन क्षेत्र में जाकर जांच करने की जहमत नहीं उठाते हैं। इस कारण अवैध रूप से बनने वाली इमारतों की संख्या और ऊंचाई लगातार बढ़ती जा रही है।

हादसे के इंतजार में अधिकारी
अवैध निर्माण को नजरअंदाज करने वाले अधिकारी शायद किसी बड़ी घटना के इंतजार में हैं। दक्षिणी दिल्ली के विभिन्न इलाकों में अवैध निर्माण रोकने की जिम्मेदारी दिल्ली पुलिस, डीडीए, एसडीएमसी, वन मंत्रालय की है। अपने क्षेत्र में होने वाले निर्माण को वोट बैंक के लालच में पार्षद, विधायक और सांसद भी अनदेखा कर देते हैं।

कम कीमत में मिलते हैं अवैध निर्माण वाले मकान
अवैध रूप से बनाए जाने वाले मकानों को लोग सस्ते के लालच में खरीद लेते हैं। जो लोग पांच-छह मंजिला इमारत में फ्लैट खरीदते हैं, वे भी सस्ते के चक्कर में उसकी मजबूती, सुरक्षा और सही मानकों के अनुरूप बने होने की बात की अनदेखी करते हैं। सस्ते के लालच में लोग गलत तरह की प्रॉपर्टी में निवेश करने के साथ हमेशा के लिए मौत के साये में रहने का जोखिम उठाने से भी नहीं चूक रहे हैं।

खतरनाक इमारतों से घिरी है पुरानी दिल्ली
हर मानसून आने के साथ जो खौफ दिल में बैठ जाता है, कमोबेश पुरानी दिल्ली वालों को वह खौफ इस बार भी है। हर वर्ष यहां मानसून थोड़ी देर की खुशियों के साथ जलभराव, जाम व कीचड़ के साथ तबाही का अंदेशा भी साथ लाता है। मंगलवार को ही ईदगाह के पास एक दीवार गिर गई थी। हालांकि, इस हादसे में किसी जानमाल की क्षति नहीं हुईं। चांदनी चौक, कश्मीरी गेट, बल्लीमारान, कूचा नटवा, कूचा महाजनी व सदर बाजार समेत अन्य स्थानों में मौजूद सैकड़ों जर्जर खतरनाक मकान और हवेलियां बड़े हादसों को दावत दे रही हैं। इन पर हो रहे अवैध निर्माण खतरों को और बढ़ा देते हैं। कमजोर नींव पर खड़ी हो रही कई मंजिला इमारतें भरभरा कर कब गिर जाएं और कई जिंदगियों को लील ले, इसके बारे में कोई ठीक से नहीं बता सकता है।

उत्तरी दिल्ली नगर निगम के सिटी- पहाड़गंज जोन में सर्वाधिक खतरनाक इमारतें हैं। मुगलकाल की बनी सैकड़ों हवेलियां और इमारतें जर्जर हालत में हैं। इनके गिरने का खतरा बराबर बना रहता है। हालांकि, नगर निगम की ओर से इन इमारतों का समय-समय पर सर्वे कर उन्हें चिन्हित किया जाता है। जर्जर होने पर मरम्मत और खतरनाक होने पर उन्हें गिराने का नोटिस मकान मालिकों को दिया जाता है। अगर मकान मालिक ऐसा नहीं करते तो उन्हें नगर निगम की ओर से गिरा भी दिया जाता है, लेकिन जानकारों के मुताबिक जर्जर इमारतों के सर्वेक्षण में भी गड़बड़झाला होता है।

पुरानी सही इमारतों को गिराकर बिल्डर की ओर से फ्लैट निर्माण के लिए उसे खतरनाक श्रेणी में घोषित करा दिया जाता है तो वास्तविक खतरनाक इमारतों को इस श्रेणी में शामिल करने के लिए सुविधा शुल्क की मांग रखी जाती है। नार्थ दिल्ली रेजिडेंट वेलफेयर फेडरेशन के अध्यक्ष अशोक भसीन के मुताबिक नगर निगम के अधिकारियों व कर्मचारियों की मिलीभगत से पुरानी दिल्ली में लोग डर में जीने को मजबूर हैं। उनके मुताबिक पुरानी दिल्ली में 20 फीसद इमारतें खतरनाक श्रेणी में है। ऐसे में नगर निगम को इस दिशा में ठोस काम करना होगा, अन्यथा कोई बड़ा हादसा हो सकता है।

खतरनाक इमारतों को लेकर समय-समय पर सर्वे चलता रहता है। कनिष्ठ इंजीनियर भी जाते हैं। अगर इमारत खतरनाक लगती है तो संबंधित मकान मालिक को नोटिस जारी किया जाता है। लोग कंट्रोल रूम में भी इसकी शिकायतें कर सकते हैं। बारिश के दिनों में एहतियातन कंट्रोल रूम 24 घंटे काम करता है। 23913740 नंबर पर फोन कर कोई इसकी जानकारी दे सकता है। 
रुचिका कत्याल, उपायुक्त, नगर निगम।

यमुनापार में नियमों की हो रही अनदेखी नगर 
निगम की लापरवाही की वजह से यमुनापार के विभिन्न इलाकों में धड़ल्ले से अवैध निर्माण हो रहा है। एक तरफ जहां अवैध कॉलोनियों में निर्माण हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ अनधिकृत नियमित कॉलोनियों में नक्शा पास करवाए बिना बड़े पैमाने पर भवन बनाए जा रहे हैं। भू-माफिया, निगम अधिकारियों व पुलिस की मिलीभगत का ही नतीजा है कि यमुनापार में अवैध निर्माण की फेहरिस्त बढ़ती जा रही है। छह मंजिला तक इमारतें बनाई जा रही हैं। मकानों के छज्जे तक पर दीवारें खड़ी की जा रही है, जो कभी भी हादसे का कारण बन सकती है। ऐसी ही लापरवाही से हुए निर्माण की वजह से ललिता पार्क में दर्दनाक हादसा हुआ था, जिसमें 70 लोगों की जान चली गई थी। इस घटना के बाद भी निगम मकानों की मजबूती की जांच नहीं करता है।

पूर्वी निगम क्षेत्र में 245 अनधिकृत कॉलोनियां हैं। चूंकि, निगम के भवन विभाग में अधिकारियों का कुछ अंतराल के बाद तबादला होते रहता है, इसलिए मकान भी आनन-फानन में बनाए जाते हैं और मजबूती की भी अनदेखी की जाती है। दिल्ली की कॉलोनियों में भूतल पर पार्किंग के अलावा चार मंजिल तक की इमारत बनाने का नियम है, लेकिन लोग छह मंजिला तक बनाने में भी गुरेज नहीं करते। सोनिया विहार, श्रीराम कॉलोनी सहित दर्जनों कॉलोनियां यमुना खादर में बसी हैं। इसके अलावा पुस्ता रोड के पास भी कई कॉलोनियां हैं। यमुना में बाढ़ आने पर कई कॉलोनियों में मकानों के बेसमेंट में पानी भर जाता है। ललिता पार्क में हुए हादसे में भी यह भी एक कारण बना था। यमुना नदी के आसपास रेतीली जमीन है और यहां निर्माण में लापरवाही जानलेवा साबित हो सकती है।

डीडीए फ्लैट में भी अवैध निर्माण
डीडीए फ्लैटों में भी बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण किया जा रहा है। भूतल पर अवैध निर्माण होते ही उस कमरे पर तीन और मंजिलें बन जाती हैं। इसी तरह अवैध निर्माण से डीडीए के एलआइजी फ्लैट कई जगहों पर एमआइजी और कई जगहों पर एचआइजी में तब्दील हो गए हैं।

भवन विभाग की घोर लापरवाही
किस तरीके से भवनों का निर्माण हो रहा है, इसकी निगरानी के लिए भवन विभाग है, लेकिन मिलीभगत के कारण कोई अधिकारी झांकते तक नहीं। यमुनापार में ऐसे गिनती के मकान हैं, जो पूरी तरह नक्शे के अनुरूप बने हैं। ऐसे में हादसे की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है।

अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई की जाती है। निगम कर्मचारी अवैध निर्माण पर नजर रखते हैं। नियमित कॉलोनियों में कैसे निर्माण हो रहा रहा है, इस पर भवन विभाग के इंजीनियर नजर रखते हैं और लोगों की शिकायतों पर भी कार्रवाई की जाती है।
बीएम मिश्रा, निगम उपायुक्त, शाहदरा दक्षिणी
जोन, पूर्वी निगम

काली कमाई का बड़ा माध्यम है अवैध निर्माण
अवैध निर्माण को रोकने के लिए अदालत ने कई बार आदेश दिए। लोगों की जान भी अवैध निर्माण के चलते जाती है लेकिन अवैध निर्माण रुकने का नाम नहीं ले रहा है। ऐसा भी नहीं है कि यह अवैध निर्माण एक ही दिन में हो जाता है अपितु कई-कई दिन एक ही इमारत के निर्माण को पूरा करने में लगते हैं। मगर इस दौरान तमाम जिम्मेदार एजेंसियां और लोग आंखों पर पट्टी बांधे होते हैं।

वजह, आज के समय में ऐसे लोगों के लिए अवैध कमाई का मोटा माध्यम बन गया है यह अवैध निर्माण। यह स्थिति पॉश इलाकों से लेकर अनधिकृत कालोनियों तक में है। रोहिणी जैसी बड़ी आवासीय योजना में लोगों ने शांति जीवन व्यतीत करने के मकसद से आशियाने लिए। मगर अब यहां धड़ल्ले से हो रहा अवैध निर्माण लोगों का चैन छीन रहा है। विडंबना यह है कि मंगलवार की देर ग्रेटर नोएडा में अवैध निर्माण के चलते ही कई परिवारों की खुशियां ही छिन गई हैं लेकिन उनसे सबक लेने के बजाय बुधवार को भी उत्तरी एवं बाहरी दिल्ली के कई इलाकों में अवैध निर्माण खुलेआम होता रहा है।

वर्ष 1985 की शुरुआत में जब लोगों ने रोहिणी में आना शुरू किया तो यहां आने वाले परिवारों की संख्या पहले वर्ष में 50 से ज्यादा नहीं थी, मगर पिछले 34 वर्षो में जैसे-जैसे रोहिणी का विस्तार का हुआ इसकी आबादी दस लाख के करीब पहुंच गई हैं। आबादी बढ़ी तो कायदे कानून ताक पर रखने शुरू कर दिए गए। दो छोटे फ्लैटों को मिलाकर एक फ्लैट बनाने का धंधा जोरों से चल रहा है जोड़ा के नाम से मशहूर इस खेल को डीडीए के अधिकारियों से लेकर नगर निगम के अधिकारियों एवं राजनेताओं का पूरा संरक्षण मिला हुआ है।

मास्टर प्लान की धज्जियां उड़ाते इस जोड़े के खेल के नाम पर केवल नोटिस भेजकर इतिश्री कर दी जाती है। यही वजह है कि दिल्ली विकास प्राधिकरण ने जितने वैध फ्लैट बनाकर लोगों को आवंटित किए थे उससे कहीं ज्यादा अवैध बनकर इस रोहिणी के करीब-करीब अधिकांश सेक्टर में बिक चुके हैं। सेक्टर सात, आठ, नौ, सोलह, सत्रह आदि सेक्टरों के रिहायशी इलाकों में चल रही व्यवसायिक गतिविधियां मास्टर प्लान को ढेंगा ही दिखाती नजर आती हैं।

रोहिणी के अलावा बुराड़ी, संत नगर, नरेला, किराड़ी, मंगोलपुरी, सुल्तानपुरी, अशोक विहार, शालीमार बाग, पीतमपुरा, पूर्वी पंजाबी बाग, आजादपुर, आदर्श नगर, माडल टाउन, विजय नगर, गुड़मंडी, बुध विहार, प्रशांत विहार, शकूरबस्ती, त्रीनगर, रामपुरा आदि इलाकों में धड़ल्ले से अवैध निर्माण हो रहा है। जहां केवल दो मंजिल की इजाजत है वहां चार से पांच मंजिल बनाकर दी जा रही हैं और चार मंजिल की इजाजत वाले क्षेत्रों में आठ मंजिल तक निर्माण किया जा रहा है।  


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