India-US tension: भारत व अमेरिका के बीच खाड़ी और हिंद-प्रशांत मामले पर बढ़ी तल्खी
हिंद प्रशांत में भारत का रुख किसी भी देश के खिलाफ नहीं है बल्कि इस क्षेत्र में सभी देशों के लिए विकास के समान अवसर विकसित करने में मदद देना है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। राष्ट्रपति ट्रंप के ट्वीट ने भारत व अमेरिका के बीच कारोबार को लेकर उपजे विवाद को पूरी तरह से सामने ला दिया है, लेकिन कई दूसरे मुद्दे भी हैं जो द्विपक्षीय रिश्तों में तनाव पैदा कर रहे हैं। खास तौर पर अमेरिका जिस तरह से खाड़ी में युद्ध जैसा हालात बना चुका है, भारत उससे भी काफी असहज है। इसके अलावा हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में अमेरिका की आक्रामक कूटनीति से भी भारत ताल नहीं मिला पा रहा है।
अमेरिका के विदेश सचिव से मुलाकात के बाद विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि हिंद प्रशांत में भारत का रुख किसी भी देश के खिलाफ नहीं है बल्कि इस क्षेत्र में सभी देशों के लिए विकास के समान अवसर विकसित करने में मदद देना है। विदेश मंत्री जयशंकर के बयान को बड़े मायने निकालने जा रहे हैं।
बुधवार को जयशंकर और पोम्पिओ के बीच मुलाकात में खाड़ी क्षेत्र में तनाव का मुद्दा काफी प्रमुखता से उठा था। अमेरिका चाहता है कि ईरान के खिलाफ उसकी कार्रवाई में भारत मदद करे, लेकिन खाड़ी क्षेत्र में भारत अपने व्यापारिक व रणनीतिक हितों को देखते हुए खाड़ी क्षेत्र में तनाव को हर कीमत पर टालना चाहता है।
विदेश मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, खाड़ी देशों में 80 लाख भारतीय रहते हैं। अपनी जरुरत का तकरीबन दो तिहाई ऊर्जा भारत इस क्षेत्र से हासिल करता है। ऐसे में वहां हालात बिगड़ते हैं तो सीधे तौर पर यह भारत पर असर डालेगा।
भारत ने अमेरिका के सामने यह साफ किया है कि दोनो पक्षों को तनाव खत्म करने की पहल करनी चाहिए। इसके साथ ही भारत ने यह भी संकेत दिया है कि फिलहाल उसने अमेरिकी प्रतिबंध के दबाव में ईरान से तेल खरीदना बंद कर दिया है, लेकिन इस बारे में दोबारा विचार संभव है।
पूर्व में भी जब भी खाड़ी क्षेत्र में अस्थिरता हुई है तब भारत को उसका बड़ा आर्थिक खामियाजा भुगतना पड़ा है। अभी वहां रह रहे 80 लाख भारतीय सालाना 30 अरब डालर की राशि स्वदेश भेजते हैं तो देश के विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने में योगदान देते हैं।
युद्ध की स्थिति में बड़ी संख्या में भारतीयों को स्वदेश लौटना पड़ सकता है जिससे मौजूदा रोजगार की स्थिति और खराब हो सकती है। युद्ध की स्थिति में कुवैत, सउदी अरब से तेल की आपूर्ति भी प्रभावित हो सकती है। क्रूड की कीमत बढ़ने का दबाव अलग से झेलना पड़ सकता है।
भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भी अमेरिका की तर्ज पर चलने को तैयार नहीं है। ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका, भारत, आस्ट्रेलिया और जापान के बीच गठित चार देशों के गठबंधन की चार बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन भारत इसको लेकर बहुत तेजी नहीं दिखाना चाहता।
शांग्रि-ला डायलाग में पिछले वर्ष पीएम मोदी ने अपने भाषण में कहा था कि भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र कुछ चयनित देशों के रणनीतिक क्लब के तौर पर नहीं देखता है।
विदेश मंत्री जयशंकर का यह बयान कि भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में किसी देश के खिलाफ नहीं है, को मोदी के उक्त भाषण की अगली कड़ी के तौर पर देखा जा रहा है।
पिछले वर्ष चारों देशों की बैठक के बाद भारत और अमेरिका की तरफ से जारी बयान में भी सामंजस्य का अभाव था। जाहिर है कि राष्ट्रपति ट्रंप और पीएम मोदी को रिश्तों के भीतर उपजे इन गांठों को दूर करने में काफी मेहनत करनी होगी।
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