जम्मू कश्मीर में परिसीमन आयोग का काम देखेंगे सुशील चंद्रा, राज्य में सियासी गतिविधियां हुईं तेज
राज्य में अंतिम परिसीमन 1995 में हुआ था। तब राज्य में सीटों की संख्या बढ़ाकर 75 से 87 की गई थी।
राज्य ब्यूरो, जम्मू। केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर के परिसीमन पर तेजी से आगे बढ़ रही है। जल्द ही परिसीमन आयोग को अंतिम रूप दिए जाने की संभावना है। केंद्रीय चुनाव आयोग ने परिसीमन आयोग के लिए अपने प्रतिनिधि की घोषणा कर दी है। मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा को जम्मू-कश्मीर के परिसीमन आयोग में अपना प्रतिनिधि नामित किया है। राज्य में परिसीमन आयोग के गठन होते ही सियासी गतिविधियां तेज होने का अनुमान है।
आयोग के प्रवक्ता के अनुसार केंद्र सरकार के आग्रह के बाद चंद्रा को अपनी तरफ से नामित किया गया है। यहां बता दें कि जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद राज्य में विधानसभा के गठन से पूर्व परिसीमन का कार्य पूरा करना है।
अब विधानसभा में सात सीटें बढ़ेंगी
राज्य के पुनर्गठन से पहले जम्मू कश्मीर विधानसभा में 87 सीटें थी। इनमें लद्दाख की चार सीटें शामिल थीं। इसके अलावा गुलाम कश्मीर की 24 सीटें रिक्त रखी जाती थीं। इस तरह कुल 111 सीटें थी। अब लद्दाख अलग केंद्र शासित प्रदेश बन चुका है। राज्य के पुनर्गठन के बाद लद्दाख की चार सीटें कम हो गई। इस तरह जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 107 सीटें रह गई। परिसीमन के बाद राज्य में सात सीटें बढ़ेंगी और इनकी संख्या बढ़कर 114 हो जाएगी। गुलाम कश्मीर की 24 सीटें ही कायम रहेंगी। जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून 2019 के तहत केवल विधानसभा की सीटों का परिसीमन होगा। यह परिसीमन 2011 की जनसंख्या के आधार पर ही होगा।
लोकसभा की पांच सीटें रहेंगी
राज्य के पुनर्गठन के बाद जम्मू-कश्मीर में लोकसभा की पांच सीटें रहेंगी और लद्दाख में एक सीट है। इस तरह लोकसभा सीटों में फिलहाल कोई बदलाव नहीं होगा।
क्यों आवश्यक है परिसीमन
राज्य में अंतिम परिसीमन 1995 में हुआ था। तब राज्य में सीटों की संख्या बढ़ाकर 75 से 87 की गई थी। उसके बाद फारूक अब्दुल्ला सरकार ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने प्रस्ताव पास कर परिसीमन पर रोक लगा दी थी। 2002 के चुनावों में कश्मीर और लद्दाख के मुकाबले जम्मू में मतदाताओं की संख्या अधिक थी। इसके बावजूद कश्मीर में सीटों की संख्या अधिक रही और लगातार कश्मीरी दल ही राज्य की सत्ता पर काबिज रहे। यही वजह है कि कश्मीरी दल परिसीमन नहीं होने देना चाहते थे।