'मॉब लिंचिंग' पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- संविधान की रक्षा करें राज्य सरकारें, संसद बनाए अलग कानून
सुप्रीम कोर्ट ने संसद से कहा कि इन घटनाओं को रोकने के लिए अगर कोई नया कानून बनाने की जरूरत है, तो बनाया जाए।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने भीड़ द्वारा पीट-पीट कर मार डालने की घटनाओं की निंदा करते हुए कहा है कि भीड़तंत्र को कानून की अनदेखी कर भयानक कृत्य करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। सरकार लोगों की चीख पुकार को अनसुना नहीं कर सकती। हालात की गंभीरता को देखते हुए तत्काल ठोस और मजबूत कार्रवाई की जरूरत है, ताकि सबको साथ लेकर चलने की सामाजिक संरचना और संवैधानिक भरोसा कायम रहे।
कोर्ट ने कहा कि हम इससे ज्यादा या इससे कम की उम्मीद नहीं करते। ऐसी घटनाएं रोकने के लिए कोर्ट ने दिशा निर्देश जारी किये हैं साथ ही संसद से कहा है कि वह भीड़ द्वारा पीट-पीट कर मारने (लिंचिंग) को अलग से अपराध बनाए और उसके लिए उचित दंड निर्धारित करे। इस बारे में अलग कानून ऐसे कृत्यों में शामिल लोगों के मन में भय पैदा करेगा। कानून का भय और उसका सम्मान सभ्य समाज की नीव है। गोरक्षा व अन्य कारणों से भीड़ द्वारा लोगों की जान लिए जाने पर तीखी टिप्पणियां करते हुए यह ऐतिहासिक फैसला मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, एएम खानविल्कर वडीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने सुनाया है।
कोर्ट ने ऐसी घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए निरोधक, सुधारात्मक और दंडात्मक उपाय के विस्तृत दिशानिर्देश जारी किये हैं। केन्द्र और राज्यों से इस पर चार सप्ताह में अमल करने को कहा है और साथ ही अमल रिपोर्ट मांगी है। मामले में 20 अगस्त को फिर सुनवाई होगी। कोर्ट ने कहा कि यह सुनिश्चित करना राज्य का दायित्व है कि कानून व्यवस्था प्रभावी ढंग से लागू रहे, शांति कायम रहे ताकि लोकतांत्रिक व्यवस्था और कानून के शासन में हमारी धर्मनिरपेक्ष प्रकृति और बहुलता का विशिष्ट सामाजिक तानाबाना संरक्षित रहे। गड़बड़ी और अराजकता के समय राज्य को नागरिकों के संवैधानिक वायदों की रक्षा करने के लिए जिम्मेदारी के साथ सकारात्मक कार्रवाई करनी चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि कानून समाज के फायदे के लिए और नागरिकों के अधिकार और समाजिक व्यवहार को नियमित करने के लिए बनाया जाता है। इसे लागू करने की जिम्मेदारी कानून लागू करने वाली एजेंसियों पर होती है और नागरिकों का कर्तव्य है कि वे कानून को पवित्र मानते हुए उसका पालन करें। भीड़ का पीट-पीट कर मार डालना कानून और संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन है। उकसावे के बाद अनियंत्रित भीड़ के जघन्य कृत्य को इजाजत नहीं दी जा सकती। ऐसी घटनाएं किसी भी कारण से क्यों न हुई हों औपचारिक कानूनी संस्थाओं और संवैधानिक व्यवस्था को कम करती हैं और उन पर असर डालती हैं। कानून के संरक्षण के नाम पर की जा रही ऐसी एक्सट्रा ज्युडिशियल गतिविधियों को शुरूआत मे ही खत्म कर दिया जाना चाहिए, नही तो इससे अराजकता और कानूनहीनता की स्थिति उपजेगी जो राष्ट्र को महामारी की तरह संक्रमित कर देगी। अगर ये घटनाएं नहीं नियंत्रित की गईं तो वह दिन दूर नहीं जब ये स्वघोषित नैतिकता की भयंकरता बड़ी उथल पुथल का आकार ले लेगी।
कोर्ट ने कहा कि सरकार को कड़ी कार्रवाई करके विजिलिज्म और भीड़ हिंसा रोकना चाहिए और सचेत समाज को कानून अपने हाथ में लेने के बजाए घटनाओं की सूचना पुलिस को देनी चाहिए। बढ़ती असहिस्षुणता और ध्रुवीकरण भीड़ हिंसा की घटनाओं के रूप में सामने आ रहा है उसे समान्य जीवनचर्या की तरह इजाजत नहीं दी जा सकती। असहिस्षुणता की उपज घृणापूर्ण अपराध, और वैचारिक प्रभुत्व और पूर्वाग्रह को सहन नहीं किया जा सकता, नही तो ये आतंक के साम्राज्य में परिवर्तित हो जाएगा।