सुप्रीम कोर्ट ने भड़काऊ भाषणों पर विधि आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की मांग पर सुनवाई से किया इनकार
Supreme Court ने उस जनहित याचिका पर सुनवाई करने से मना कर दिया है जिसमें भड़काऊ भाषणों पर विधि आयोग की रिपोर्ट को लागू करने के लिए निर्देश दिए जाने की मांग की गई थी।
नई दिल्ली, एएनआइ। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने भाजपा नेता एवं वकील अश्विनी उपाध्याय की जनहित याचिका पर सुनवाई करने से मना कर दिया। भाजपा नेता (Ashwini Kumar Upadhyay) ने अपनी याचिका में केंद्र को भड़काऊ भाषण पर विधि आयोग की रिपोर्ट (Report of Law Commission) लागू करने का निर्देश देने की मांग की थी। शीर्ष कोर्ट के निर्देश पर विधि आयोग ने 2017 में रिपोर्ट तैयार की थी।
जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की पीठ ने याचिका नामंजूर करते हुए याची को शीर्ष कोर्ट की संविधान पीठ के पास भड़काऊ भाषण से संबंधित लंबित मुद्दे में हस्तक्षेप याचिका दायर करने को कहा। शीर्ष कोर्ट ने भाजपा नेता को समाजवादी पार्टी के सांसद आजम खान द्वारा बुलंदशहर में सामूहिक दुष्कर्म पर दिए गए भड़काऊ भाषण से संबंधित मामले में भी हस्तक्षेप की अनुमति दे दी।
इस मामले में शीर्ष कोर्ट इस बात पर विचार कर रहा है कि सार्वजनिक पद पर बैठे व्यक्तियों को पुलिस जांच के अधीन आपराधिक मामलों में अपना विचार व्यक्त करने से प्रतिबंधित किया जा सकता है या नहीं। विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में घृणा और भड़काऊ भाषण को परिभाषित किया है। आयोग ने आइपीसी की धारा 153 सी और 505 ए एवं अपराध प्रक्रिया संहिता जोड़ने का सुझाव दिया है।
याचिका में चुनाव के दौरान भड़काऊ भाषणों पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से विधि आयोग की 267 वीं रिपोर्ट को लागू कराने की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया था कि भड़काऊ भाषणों से जान-माल का भारी नुकसान होता है। ऐसे भाषण विभाजनकारी होते हैं और समाज के विकास को बाधित करते हैं। याचिका में भड़काऊ भाषणों को संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के खिलाफ बताया है।
मालूम हो कि विधि आयोग ने भड़काऊ भाषणों पर रोक लगाने के लिए चुनाव आयोग को और ज्यादा सशक्त बनाने की सिफारिश की है। विधि आयोग ने 23 मार्च, 2017 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी, जिसे अभी तक लागू नहीं किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने साल 2014 में विधि आयोग से कहा था कि यदि वह जरूरत समझे तो नफरत फैलाने वाले भाषणों और बयानों को परिभाषित करे। विधि आयोग ने भादंसं और दंड प्रक्रिया संहिता में संशोधन कर धारा 153सी (घृणा को भड़काने पर रोक) और धारा 505ए (हिंसा के लिए उकसाना) जैसी धाराओं को जोड़ने की सिफारिश की थी।