लैंगिक समानता पर सुप्रीम कोर्ट के वो बड़े फैसले जिसने बदल दिया हवाओं का रुख
बीता सप्ताह देश में लैंगिक समानता की दिशा में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाए गए ऐतिहासिक फैसलों को लेकर याद किया जाएगा।
नई दिल्ली (जागरण स्पेशल)। बीता सप्ताह देश में लैंगिक समानता की दिशा में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाए गए ऐतिहासिक फैसलों को लेकर याद किया जाएगा। यह पहली बार नहीं है, देश की आधी आबादी को उसका पूरा हक देने के लिए समय-समय पर देश की शीर्ष अदालत ने अहम निर्णय सुनाए हैं। जिनकी बदौलत उन्हें अपनी एक नई पहचान मिली है । 28 सिंतबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केरल के सबरीमाला मंदिर के दरवाजे महिलाओं के लिए भी खोल दिए गए। पिछले आठ सौ साल से इस मंदिर में 10 से 50 साल उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध था।
पति-पत्नी और वो अब अपराध नहीं
27 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि एडल्ट्री यानी व्यभिचार अब अपराध नहीं है। यह कई लिहाज से महत्वपूर्ण है जिसमें कहा गया कि पति-पत्नी का मालिक नहीं है।
समलैंगिकता को मिली पहचान
समलैंगिकता गैरकानूनी नहीं है। 6 सितंबर, 2018 को फैसला सुनाते वक्त सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 377 अतार्किक, मनमाना और समझ से परे है। समलैंगिक लोग अभी तक समाज में जिल्लत और तिरस्कार की जिंदगी झेलते थे। इस फैसले ने समाज के एक तबके को आवाज दी और उन्हें समाज में सम्मान से जीने का हक दिया।
एक बार में तीन तलाक नहीं
मुस्लिम समाज में पुरुष अपनी बीवी को एक साथ तीन बार तलाक कहकर अपनी शादी किसी भी समय तोड़ सकता था। अगस्त, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने एक बार में तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया अब तीन तलाक पूरी तरह से गैर कानूनी है। केंद्र सरकार जल्दी ही इस पर कानून बनाने की तैयारी कर रही है।
विशाखा दिशानिर्देश
कार्यस्थलों में महिलाओं के खिलाफ होने वाले यौन शोषण को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दिशा-निर्देश जारी किए ।
शाहबानो मामला
तलाक के बाद शाहबानो गुजारा भत्ता पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहळ्ंचीं। 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने अपराध दंड संहिता की धारा 125 के अंतर्गत शाहबानो के हक में फैसला दिया, लेकिन बाद में राजीव गांधी सरकार ने एक साल के भीतर मुस्लिम महिला अधिनियम, (1986) पारित कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया और शाहबानो के गुजारे भत्ते से महरूम होना पड़ा।
नाबालिग बच्चे की सुपुर्दगी
रॉकसन शर्मा और अरुण शर्मा के मामले में 1967 में सुप्रीम कोर्ट ने माता-पिता के बीच लड़ाई में नाबालिग बच्चे की सुपुर्दगी मां को देने का फैसला किया।
बाल यौन शोषण या दुष्कर्म
2004 में साक्षी बनाम केंद्र सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बाल यौन शोषण के मामले में कई दिना-निर्देश तय किए।
महिला कैदी के साथ बच्चे
2006 में आरडी उपाध्याय बनाम आंध्र प्रदेश सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उन बच्चों की परवरिश के मुद्दे पर विचार किया जो अपनी मां के साथ जेल में हैं।
घरेलू सहायिकाओं का यौन उत्पीड़न
1995 में सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू सहायिकाओं के साथ किए गए खराब बर्ताव के मामले में मौजूदा प्रणाली में खामियों की ओर इशारा करते हुए आठ व्यापक मानकों को जारी किया।