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तीन राज्यों में कांग्रेस की दमदार वापसी, मिजोरम में करारी शिकस्त, तेलंगाना टीआरएस को

राजस्थान में कड़ी टक्कर देकर भाजपा ने यह भी दिखा दिया कि उसके पास चुनाव में वापसी का माद्दा अब भी बरकरार है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 11 Dec 2018 10:42 PM (IST)Updated: Wed, 12 Dec 2018 12:38 AM (IST)
तीन राज्यों में कांग्रेस की दमदार वापसी, मिजोरम में करारी शिकस्त, तेलंगाना टीआरएस को
तीन राज्यों में कांग्रेस की दमदार वापसी, मिजोरम में करारी शिकस्त, तेलंगाना टीआरएस को

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। आगामी लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माने जा रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हिस्से में फूल और भाजपा के हिस्से में कांटे आए हैं। भाजपा अपना खाता तक खोलने में विफल रही। वैसे तो मिजोरम की करारी शिकस्त के साथ कांग्रेस का पूर्वोत्तर में पूरी तरह सफाया हो गया, लेकिन मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जीतकर पार्टी ने हिंदी बेल्ट में जबरदस्त वापसी की है। वहीं, तेलंगाना में तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) ने अपनी सत्ता बरकरार रखी है। तीन प्रमुख राज्यों में भाजपा से सीधी लड़ाई में कांग्रेस की इस जीत ने यह लगभग स्पष्ट कर दिया है कि अब कांग्रेस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले राहुल गांधी को सामने खड़ा कर सकती है।

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नतीजों ने 2019 के फाइनल में मुकाबले की खोली राह

छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के नतीजे तो दोपहर तक साफ हो गए थे। शाम तक राजस्थान का भी मुकाबला साफ हो गया था, लेकिन मध्य प्रदेश को लेकर देर शाम तक भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के नेताओं की सांसे थमी रहीं। छत्तीसगढ़ की कुल 90 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस ने 64 पर जीत दर्ज की तो भाजपा महज 17 सीटों पर सिमट गई। तेलंगाना में सत्तारूढ़ टीआरएस को 119 सदस्यीय विधानसभा में 87 सीटों पर बढ़त मिली, जबकि कांग्रेस नीत गठबंधन 19 तथा भाजपा एक सीट पर ही सिमट गई।

पूर्वोत्तर में कांग्रेस का अपने अंतिम गढ़ मिजोरम से भी सफाया हो गया। 40 सदस्यीय सदन में मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) ने 26 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया है। 10 साल बाद वह सत्ता में वापसी करने जा रहा है। राजस्थान में कांग्रेस को 101 सीटों और भाजपा को 73 सीटों पर बढ़त हासिल हुई। मध्य प्रदेश में रात 10 बजे तक भाजपा को 108 सीटें मिलती दिख रहीं हैं जबकि घोषित परिणाम और रुझान मिलाकर कांग्रेस को 115 सीटें मिलती दिख रहीं हैं, जबकि पिछली बार 166 सीटें जीतकर सरकार बनाने वाली भाजपा 108 सीटों पर सिमटती दिख रही है।

परिणामों और रुझानों से स्पष्ट है कि छत्तीसगढ़ में 15 साल से मुख्यमंत्री रमन सिंह सत्ता विरोधी लहर के सामने टिक नहीं सके। वहीं, चुनावी पूर्वानुमानों में बुरी हार की भविष्यवाणी को धता बताकर राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी। जबकि अंतिम आंकड़े भले ही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ जाते दिख रहे हों, लेकिन वह सत्ताविरोधी लहर को रोकने में काफी हद तक कामयाब रहे।

पांच राज्यों के नतीजों से लोकसभा चुनाव के पहले विपक्ष की राजनीति को नई धार भी मिल गई है। गुजरात में कड़ी टक्कर देने और कर्नाटक में भाजपा के सत्ता तक पहुंचने से रोकने के बाद कांग्रेस ने साबित कर दिया कि वह मुकाबले में है और भाजपा को सीधी टक्कर में पछाड़ सकती है। यह और बात है कि कांग्रेस को छत्तीसगढ़ को छोड़कर बाकी दो राज्यों में सब कुछ पक्ष में होते हुए भी मशक्कत करनी पड़ी। शायद यही कारण है कि भाजपा को मात देने के लिए नए-नए समीकरणों की तलाश में जुटे विपक्षी नेताओं ने कांग्रेस की इस जीत का जोरदार स्वागत किया।

भाजपा के खिलाफ मुखर रहने वाले राजग की सहयोगी शिवसेना ने इसे भाजपा के अंत की शुरुआत तक करार दे दिया। जाहिर है प्रधानमंत्री के खिलाफ अपने आरोपों पर अडिग रहने वाले राहुल गांधी मोदी विरोधी राजनीति की नई धुरी के रूप में उभरे हैं। वोटों की गिनती के दौरान जिस तरह से सपा ने कांग्रेस को समर्थन का एलान किया, उससे साफ है कि दोनों दल कांग्रेस के नेतृत्व में महागठबंधन के लिए तैयार हैं, लेकिन जिस तरह विधानसभा चुनावों में सीटों के बंटवारे को लेकर बात नहीं बन पाई, वैसी स्थिति लोकसभा चुनाव के दौरान आने की आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता।

विधानसभा चुनाव परिणामों ने लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेस में नई संजीवनी जरूर फूंकी है, लेकिन भाजपा को पूरी तरह खारिज नहीं किया है। भाजपा ने अपने प्रदर्शन से साबित कर दिया है कि 15 साल की सत्ता के बावजूद मध्य प्रदेश से उसे खारिज नहीं किया जा सकता।

बुरी हार की तमाम आशंकाओं को दरकिनार कर राजस्थान में कड़ी टक्कर देकर भाजपा ने यह भी दिखा दिया कि उसके पास चुनाव में वापसी का माद्दा अब भी बरकरार है। साफ है कि नतीजे भाजपा के लिए कड़ी चेतावनी जरूर हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के लिए मोदी को शिकस्त देने का मंसूबा दूर की कौड़ी भी साबित हो सकता है।


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