विजय माल्या से कानूनी लड़ाई की रणनीति तैयार, स्वदेश लाने के लिए टॉप गियर में कूटनीति
सिर्फ माल्या के मामले में ही नहीं बल्कि नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के प्रत्यर्पण को लेकर भी कोई कसर नहीं छोड़ा जा रहा है। पर्दे के पीछे कूटनीतिक तंत्र अपना काम मुस्तैदी से कर रहा है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। विजय माल्या को भारत प्रत्यर्पित करने के प्रस्ताव को ब्रिटिश सरकार की मंजूरी तो मिल गई है, लेकिन अभी कानूनी लड़ाई थोड़ी लंबी और खींच सकती है। ऐसे में सरकार के भीतर भी आगे की रणनीति बनाने की तैयारियां चल रही हैं। विदेश मंत्रालय, सीबीआइ व अन्य जांच एजेंसियों के बीच नए सिरे से समन्वय स्थापित किया जा रहा है ताकि जो ब्रिटेन की अदालतों में जिस चीज की भी जरुरत हो उसे बगैर किसी देरी के पेश किया जा सके। इसमें लंदन स्थित भारत के उच्चायोग की भूमिका सबसे अहम होगी क्योंकि माल्या के खिलाफ चल रहे मामले में उसने नोडल एजेंसी के तौर पर काम किया है।
लंदन स्थित उच्चायोग है नोडल एजेंसी, विभिन्न मंत्रालयों के बीच बनी समन्वय समिति
सूत्रों के मुताबिक देश के विभिन्न विभागों के बीच समन्वय का ही नतीजा है कि ब्रिटिश सरकार को पहली बार भारत के एक भगोड़े अपराधी को प्रत्यर्पित करने की इजाजत देनी पड़ी। विजय माल्या को लेकर कानूनी लड़ाई में वकीलों की टीम की तरफ से जो भी सूचनाएं मांगी गई उन्हें समय पर उपलब्ध कराने से लेकर भारतीय जेलों की स्थिति तक का जायजा उपलब्ध कराने में कोई देरी नहीं की गई।
ब्रिटिश कोर्ट की तरफ से जिनता वक्त मुंबई स्थित आर्थर जेल के बारे में सूचना उपलब्ध कराने के लिए दिया गया था यह काम उससे पहले कर दिया गया। माल्या के वकीलों की तरफ से मामले को लटकाने की कोशिशें सफल नही हुई। आगे भी कानूनी लड़ाई काफी चुनौतीपूर्ण भरी होने वाली है। ऐसे में कोशिश है कि विभिन्न सरकारी एजेंसियों के बीच समन्वय लगातार बनाये रखा जाए।
यह पूछे जाने पर कि माल्या के प्रत्यर्पण की लड़ाई और कितने महीने चल सकती है, इस पर सूत्रों का कहना है कि अभी पक्के तौर पर तो कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन छह महीने या इससे कुछ ज्यादा समय भी लग सकता है। क्योंकि दो हफ्ते में माल्या को ब्रिटेन के गृह मंत्रालय के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय जाना है। इसके बाद उनके सामने सुप्रीम कोर्ट जाने का भी विकल्प रहेगा।
सुप्रीम कोर्ट के बाद भी उनके पास अपील करने का एक और मौका होगा। जाहिर है कि इन चरणों में कम से कम दो-दो महीने का समय लग सकता है।
सूत्रों के मुताबिक सिर्फ माल्या के मामले में ही नहीं बल्कि नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के प्रत्यर्पण को लेकर भी कोई कसर नहीं छोड़ा जा रहा है। पर्दे के पीछे कूटनीतिक तंत्र अपना काम मुस्तैदी से कर रहा है।