जागरण राउंड टेबल में बोली स्मृति ईरानी- लोकप्रिय नहीं जवाबदेह होना है हमारी जिम्मेदारी
केंद्रीय सूचना प्रसारण और कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा है कि हमारा संविधान हमें आजादी के साथ ही संवैधानिक जिम्मेदारियों की याद भी दिलाता है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। स्मृति ईरानी...यानी एक बेबाक व्यक्तित्व जो सामने से चुनौती से टकराने को हमेशा तैयार हो। अमेठी से चुनावी मैदान में उतरीं तो एक पखवाड़े में ही पार्टी और खुद के लिए जमीन तैयार कर दी। सरकार में शामिल हुईं तो पुरानी परंपरा से सीधे टक्कर लेने के लिए खड़ी दिखीं। मंत्रालय बदले पर रुख नहीं। पूछने पर कहती हैं - मेरी रीढ़ नहीं झुकती है और एडजस्ट करना मैंने सीखा नहीं है। लोकप्रियता हमारा शौक होता तो सीरियल कर रही होती। जिम्मेदारी मिली है तो जवाबदेही के साथ उसे निभाऊंगी। दैनिक जागरण की संपादकीय टीम के साथ राउंड टेबल में हुई विशेष चर्चा का एक अंश:
- 2019 अब दूर नहीं है। क्या माना जाए कि आप फिर अमेठी से ही चुनाव लड़ेंगी या जहां राहुल गांधी जाएंगे भाजपा आपको भी वहीं भेजेगी?
जवाब- पहली बात तो यह है कि आप मुझे पालिटिकल स्टॉकर न बनाएं। किसी का पीछा करने जैसी बात नहीं है। लेकिन यह याद रखिए कि चार साल पहले जब मैं अमेठी लोकसभा चुनाव के लिए गई थी तो 20 दिनों में मैंने 60 साल का अंतराल तय किया था। उस दौरान यह धारणा बनाने की कोशिश हुई कि मैं चुनाव बाद नहीं लौटूंगी। मैंने तभी संकल्प लिया था कि जब वहां के लोग 60 साल के संबंध को तोड़कर मुझसे जुड़ रहे हैं तो मैं भी केवल चुनाव तक सीमित न रहूं। इसलिए बीते करीब चार वषरें में अमेठी की जनता के साथ अपना संवाद और संबंध बनाए रखा है। यह संबंध शुरु तो राजनीति से हुआ मगर अब सामाजिक संबंध हो गया है, जिसका सीधा संदेश है कि मैं वहां राजनीतिक दृष्टि से नहीं जाती हूं। रही बात चुनाव लड़ने की तो इलेक्टोरल पॉलिटिक्स में कौन, कहां से चुनाव लड़ेगा, वो भाजपा अध्यक्ष तय करेंगे। लेकिन इतना जरूर कहूंगी कि अमेठी से कोई भी चुनाव लड़े जीतेगी भाजपा ही।
- वैसे उत्तर प्रदेश या फिर पूरे देश में आपकी कौन सी पसंदीदा सीट है जहां से चुनाव लड़ना चाहेंगी?
जवाब- हमारे संगठन की संरचना और अनुशासन ऐसा है कि कभी पूछ कर कोई जि़म्मेदारी नहीं दी जाती है। कार्यकर्ता को उसकी क्षमता के आधार पर जि़म्मेदारी दी जाती है। मेरा सौभाग्य रहा है कि आज तक जो जिम्मेदारियां मिली, उन सभी में कोई न कोई चुनौती रही है।
- किसी भी राज्य में चुनाव हो, मुख्यमंत्री के रूप में आपका नाम जरूर चर्चा में आ जाता है। गुजरात और उत्तर प्रदेश में भी ऐसा ही हुआ था। ऐसा क्यों?
जवाब- (ठठाकर हंसते हुए)मैं उन खुश-किस्मत में से हूं, जिसका नाम गली के चुनाव में भी उछाला जा सकता है। पार्टी की ओर से किसी धारणा के साथ मुझे कोई काम नहीं दिया गया और न ही मैंने यह सोचकर कुछ काम किया कि मंत्री पद या फिर किसी संवैधानिक पद पर पहुंच सकूं। 2014 में जब मुझे काउंसिल ऑफ मिनिस्टर की शपथ के लिए फोन पर आमंत्रित किया गया तो मैं दिल्ली में नहीं थी। मैंने कहा कि शिमला में हूं, शाम तक शपथग्रहण समारोह देखने के लिए पहुंच जाउंगी। मुझसे कहा गया कि शपथ देखनी नहीं है, शपथ लेनी है, जल्दी आओ।
- देश में कई विपक्षी राजनीतिक दल और बड़े विपक्षी नेता भी हैं मगर आपके ज्यादातर हमले राहुल गांधी और गांधी परिवार पर होते है इसकी कोई खास वजह?
जवाब- नहीं ऐसा नहीं है।
- सरकार पर विपक्ष और बुद्धिजीवियों की ओर से आरोप लगाये जा रहे हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में है। आप क्या कहेंगी?
जवाब- अभिव्यक्ति की आज़ादी को विपक्ष ने बेवजह राजनीतिक हथियार बनाने की कोशिश की है। मैं गत कुछ महीनों से सूचना प्रसारण मंत्रालय में सेवा दे रही हूं। मैं चुनौती देती हूं कि कोई बताए कि आज तक मैंने किसी संपादक को फोन कर के कहा हो कि सरकार का पक्ष प्रकाशित करें। यह अपने आप में अभिव्यक्ति की आज़ादी का सबसे बड़ा तकाजा है। जबकि यूपीए के वक्त सुझाव कम निर्देश ज्यादा दिए जाते थे। कुछ लोग निश्चित तौर पर आजादी के मुद्दे पर छींटाकशी करते हैं क्योंकि उनके लिए यह राजनीतिक चालबाजी होती है। मेरी दृष्टि से आजादी का मतलब मेरी ही बात सुना जाना नहीं है। मेरी ही बात सुनी जाएं, तभी तुम सेक्युलर और आजाद हो, ये सोचना अपने आप में गलत है।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ विरोध का भी अधिकार होता है मगर पद्मवात के वक्त जैसा विरोध प्रदर्शन हुआ वह विरोध की आड़ में अराजकता थी। आखिर कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए उचित कदम क्यों नहीं उठाये गए?
जवाब- संवैधानिक तौर पर फिल्म प्रमाणन का एक बोर्ड है, जो संवैधानिक सीमा को ध्यान रखते हुए कार्य करता है। पीएम मोदी ने देश की संसद और बाहर कहा कि उनका एक ही धर्म है, वो है संविधान। ऐसे में संविधान के दायरे में जो भी विषय आते हैं, उन्हें देखा जाता है। कानून व्यवस्था राज्य का विषय है। उत्तर प्रदेश ने कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए कड़े कदम उठाए। लेकिन जब कड़े कदम उठाते हैं, तो उनके बारे में कहा जाता है कि वो एनकाउंटर कराते हैं। अब चित भी मेरी पट भी मेरी तो नहीं हो सकती है। फिल्म का प्रदर्शन कराना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी नहीं होती है। यह राज्य का विषय होता है। मेरा मानना है कि प्रत्येक राज्य के लिए जान माल की सुरक्षा उनकी पहली प्राथमिकता होती है।
- क्या सेंसर सर्टिफिकेट देने के लिए ऐसी कोई व्यवस्था होगी, जिससे विरोध के स्वर का समाधान समय रहते किया जा सके?
जवाब- सेंसर सर्टिफिकेट प्राप्त करने की आनलाइन व्यवस्था है। विशेष परिस्थितियों में जैसे मेडिकल, डिफेंस जैसे विषय पर संबंधित मंत्रालय और उस क्षेत्र के शिक्षाविदों की सहायता ली जाती है। लेकिन शायद सार्वजनिक तौर पर इसकी जानकारी कम है, यह यूपीए के समय में भी होता था।
- जनता में ऐसा संकेत गया कि भाजपा शासित राज्यों में फिल्म विरोध को हवा मिली?
जवाब- (पलटते ही) यह संकेत क्यों नहीं मिला कि सेंसर बोर्ड ने संविधान का संरक्षण किया, जबकि केंद्र में भाजपा की सरकार है। इसीलिए मैं कहती हूं कि यह चित भी मेरी पट भी मेरी तरह की राजनीति है। आखिर क्यों किसी ने नहीं लिखा कि केंद्र की संवैधानिक संस्था ने अपना कार्य किया?
- पद्मावत और मराठी नाटक मी नाथूराम गोडसे बोलतोय' (मैं नाथूराम गोडसे बोल रहा हूं) दोनों पर हुए विवाद में कला और रचनात्मकता में स्वतंत्रता और सामाजिक संवेदनशीलता के सामंजस्य पर एक कलाकार और मंत्री होने के नाते क्या कहेंगी?
जवाब- मेरे से सवाल पूछते हैं तो एक एक्ट्रेस और मंत्री होने के नाते पूछते हैं। किसी वकील या बिजनेसमैन की पृष्ठभूमि से आये व्यक्ति से ऐसा सवाल नहीं किया जाता। हेडलाइन हंटिंग की इस कोशिश में मैं नहीं फंसने वाली हूं। मैं इस मामले में पुराना चावल हूं। प्रसून जोशी ने सीबीएफसी में जिस तरह की भूमिका निभाई उसके लिए वे प्रशंसा और समर्थन के काबिल है। हमारा संविधान हमें आजादी के साथ ही संवैधानिक जिम्मेदारियों की याद भी दिलाता है। जब तक हम दोनों के बीच संतुलन बनाकर चलते रहे, तब तक हमारे देश में लोकतंत्र सही से काम करेगा।
- प्रसार भारती की स्वायत्तता में आपके मंत्रालय की ओर से दखलंदाज़ी की बातें इन दिनों खास चर्चा में है इस पर क्या कहेंगी?
जवाब- मेरा मानना है कि देश के आम आदमी के टैक्स के पैसे से प्रसार भारती को लगभग 2500 करोड़ सालाना मिलता है। आज न्यूज और एंटरटेनमेंट सेक्टर में प्राइवेट ब्राडकास्टर का विस्तार हुआ है, उनकी कॉन्टेंट क्वालिटी बेहतर हुई है। जबकि प्रसार भारती में कॉन्टेंट को लेकर बहुत सारी चुनौतियां हैं। प्राइवेट ब्राडकास्टर प्रसार भारती के आधे बजट में बेहतर काम करके ज्यादा रेवेन्यू ले जाते हैं। तो सूचना और प्रसारण मंत्रालय की जिम्मेदारी बनती है कि वो कॉन्टेंट बेहतर करें और टैक्सपेयर के प्रति जवाबदेह बनें। इन खबरों का लक्ष्य यह होता है कि स्मृति ईरानी का थोड़ा हाथ मरोड़ दो, जिससे समाज में उसकी गलत इमेज बने और वो सवाल पूछना छोड़ दे। लेकिन ऐसा नहीं होगा, मैं इस कुर्सी पर बैठी इसलिए हूं कि जिम्मेदारी तय हो, टैक्सपेयर के पैसों का जवाब दिया जाए, और संस्थान बाकी ब्राडकास्टर की तुलना में अच्छा करें।
- संप्रग के समय प्रसार भारती को फिर से सरकार के अधीन लाने के प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा था। क्या आप इस दिशा में आगे बढेंगी?
जवाब- मैं इससे वाकिफ नहीं हूं फिर भी इसका समर्थन नहीं करती हूं क्योंकि स्वायत्तता के साथ जिम्मेदारी तय किया जाना संभव है। प्रसार भारती के कामकाज में अगर प्रबंधन में अनुशासन आ जाए तो सब कुछ दुरुस्त हो सकता है। लड़ाई की खबरों को तूल देकर कोई यह फैलाए कि सरकार का ध्येय प्रसार भारती को बंद करना है तो यह गलत है। यह तो यूपीए की सोच थी।
- सरकार खास तौर पर पीएम मोदी और मीडिया के रिश्ते की कशमकश पर आप क्या कहेंगी?
जवाब- न्यूज को बिना किसी व्यूज के प्रस्तुत करना होता है। लेकिन कुछ की नीति ही मोदी का विरोध है। पीएम ने खुद कहा है कि मोदी का विरोध देश के विरोध में न तब्दील हो जाए यह ध्यान में रखना चाहिए। नरेंद्र मोदी एक अकेले ऐसे नेता है, जो ऐसे कई अवरोध, जहरीले हमलों के बावजूद नेता बने, क्योंकि देश की जनता उनके साथ है।
- विदेशी निवेश को सरकार प्रोत्साहन दे रही है तो ऐसे में क्या प्रिंट मीडिया में एफडीआई की मौजूदा सीमा भी बढ़ने की उम्मीद है?
जवाब- मेरा मानना है कि स्वदेशी प्रेस और उसके मालिकाना हक को ज्यादा तवज्जो मिले। आज क्रॉस ओनरशिप एक बड़ी चर्चा का मुद्दा बन चुका है। अगर हम विदेशी निवेश की बात करते हैं, तो कहीं न कहीं मीडिया की संवेदनशीलता को समझना होगा। विदेशी निवेश कॉन्टेंट में, मैनेजमेंट या संपादकीय में हो, यह एक चर्चा का विषय है।
- कहावत है कि जिसे एक्टिंग का कीड़ा काट लेता है, वो शांति से नहीं बैठ सकता है। क्या आपका मन कभी एक्टिंग की दुनिया में लौटने का होता है?
जवाब- ऐसा कोई कीड़ा नहीं है, जिसने मुझे काटा हो। मैं दिल्ली के मुनिरका में अपने पिता जी के तबेले में रहती थी। आज स्मृति ईरानी की चकाचौंध सबको दिखती है। लेकिन यह बिना परिश्रम के नहीं है। मैंने जीवन में सीखा है- तुम अपनी किस्मत को अपने हाथ के कंट्रोल में रखो।
- आपके पिता आपको एक्टिंग में नहीं जाने दे रहे थे तो आपने इसके लिए क्या प्रयास किया और फिर किस तरह से राजनीति में आईं।
जवाब- मेरी दिल्ली की लेडी हार्डिंग अस्पताल की पैदाइश है। मुनिरका के तबेला में माता-पिता का एक कमरा था, जहां पीतल के दो पतीले होते है, जिन्हें उन्होंने जीवनभर दिखाया है। पिता जी और माता जी अलग विचारधारा, अलग प्रांत और अलग समुदाय से है। मां बंगाली, उनकी माता जी असम से, मेरे दादा जी पंजाबी थे लाहौर से विस्थापित, दादी मेरी महाराष्ट्र से और पति पारसी। मुझे जिंदगी में दो तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ता था। मेरे पिता जी आर्मी कैंप के सामने चद्दर पर किताबें बेंचते थे। माता जी पढ़ाती थी। मैंने 17 साल की उम्र में दिल्ली छोड़ा और जब छोड़ा तो पिता जी काफी नाराज थे। उनका कहना था कि हमारे घरों की लड़कियां काम नहीं करती हैं और अलग से मुंबई जाओगी तो वो ऐसी जगह नहीं है। उस वक्त मैंने पिता जी से कहा कि अगर आपको मेरी परवरिश पर भरोसा है, तो फिर मेरी चिंता मत कीजिए। जब मुंबई गई, तो वहां कई छोटे-मोटे काम किए। मुंबई में खुले देश के पहले मैक-डोनाल्ड में काम किया। दिल्ली में वर्ष 1998 में मैंने मिस इंडिया में भाग लिया। लेकिन मुझे देख कर लगता नहीं है कि मैं मिस इंडिया की फाइनलिस्ट रह चुकी हूं। सभी जानते हैं कि मैं थोड़ी रुढि़वादी हूं। दूसरा कहते थे कि तुम्हारी रीढ़ की हड्डी नहीं झुकती। तीसरा कि तुम एडजस्ट नहीं करती। लेकिन इन सभी के बावजूद भगवान का शुक्त्र है कि मैं यहां पहुंची। मुझमें अभी भी बदलाव नहीं है। एडजस्ट मैं अभी भी नहीं करती।
- एंटरनेटमेंट इंडस्ट्री के लंबे अनुभवों का अब मंत्री होने के नाते क्या आपको लाभ मिलता है?
जवाब- मैंने इंडस्ट्री और मंत्रालय के बीच संवाद की एक बड़ी दरार देखी है। साथ ही मंत्रालय की पॉलिसी और इंडस्ट्री के बीच अंतर देखा। मेरी कोशिश संवाद से इस अंतर को कम करने की है। जब आप बेखौफ होकर संवाद करते हैं, तो समाधान पर जल्दी पहुंचते हैं।
- आप सोशल मीडिया में सक्ति्रय हैं, और सरकार भी सोशल मीडिया के जरिए लोगों तक पहुंच रही हैं। ट्रोलिंग की समस्या से आप भी कई बार दो-चार हुई हैं, इससे कैसे निपटा जा सकता है?
जवाब- जनप्रतिनिधि नहीं, बल्कि सोशल मीडिया यूजर होने के नाते मेरा मानना है कि जब आप किसी मीडियम में आने का निर्णय लेते हैं, तो आपको उसके नफा और नुकसान का अंदाजा होता है। फिर आप पर निर्भर करता है कि वो मीडियम आपके लिए मीडियम रह जाता है या फिर कुछ और। वो मीडियम आपके लिए संवाद का जरिया होना चाहिए, न कि व्यक्तित्व बदलाव का। हम लोग जितनी जिम्मेदारी के साथ उस मीडियम का इस्तेमाल करेंगे, वो मीडियम उतना ही मुफीद रहेगा। मेरा हमेशा से वक्तव्य रहा है कि अगर आप रसोई में गर्माहट को सहन नहीं कर सकते हैं, तो आपको वहां जाना ही नहीं चाहिए।
- कानपुर में दशकों से बंद टेक्सटाइल मिलों को लेकर सरकार की क्या योजना है और जिस तरह चीन टेक्सटाइल मार्केट की दुनिया से बाहर जा रहा वैसे में हम दुनिया में चीन की इस जगह को लेने के लिए क्या प्रयास कर रहे हैं?
जवाब- उत्तर प्रदेश में हाल ही में हुए इन्वेस्टर्स समिट में 7000 करोड़ के एमओयू साइन किए गए। उत्तर प्रदेश में एक वक्त ऐसा समय था, जब कॉटन उत्पादन होता था, कतई के लिए मिलें थी। आज मुसीबत है कि कपास की खेती में कमी आई है। दूसरा आज विश्र्वभर में गारमेंटिंग प्लास्टिक फाइबर से होती है। उत्तर प्रदेश सरकार में मैनें मैनमेड फाइबर को बढ़ावा देने की बात कही है। कई मिलें दशकों से बंद है और उनकी मशीनें उपयोग लायक नहीं है। हैवी मशीनरी टेक्सटाइल का अंग नहीं है, बल्कि एक अलग विभाग का अंग है। ऐसे में संवाद के जरिए दुविधाओं को दूर करने की कोशिश हो रही है कि स्वदेशी मशीनरी को भी समर्थन दें। भारत सरकार की ओर से विशेष 6 हजार करोड़ के पैकेज की घोषणा की गई है जिसके अंतर्गत 2100 करोड़ टेक्सटाइल इंडस्ट्री को दिया है।
- टेक्सटाइल क्षेत्र में प्रोडक्टिविटी को लेकर नीति कब आएगी और हायर और फायर को लेकर क्या नीति है?
जवाब-- प्रोडक्टिविटी बढाने के लिए स्किलिंग पर हमारा फोकस है और इसके लिए 1300 करोड रुपये का बजट है। जहां तक हायर एंड फायर का सवाल है तो स्किलिंग के बाद नौकरी मिलने के छह माह तक उसके बारे में जानकारी ली जाती है।
- ऐसी कौन सी तीन मुख्य योजनाएं है, जिनके दम पर एनडीए सरकार 2019 के चुनाव में मैंदान उतरेगी।
जवाब- यह सरकार के साथ सबसे बड़ा अन्याय होगा कि इतने सारे प्रयासों में से केवल तीन का उल्लेख करें। मुझे लगता है कि इस सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि है कि हर मंत्रालय में हर मंत्री के पास अपने प्रयासों को जनता के सामने रखने का वर्ष 2019 में मौका मिलेगा।
- पीएम ने हाल में महिला नेतृत्व में विकास की बात कही थी। क्या भाजपा का नेतृत्व कोई महिला करेगी? क्या इसकी उम्मीद की जा सकती है?
जवाब- वर्तमान के हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष अपने आप में एक संकेत हैं कि कार्यकर्ता पोस्टर लगाने से शुरु कर सकता है, और देश और संगठन के सर्वोच्च पद पर पहुंच सकता है।
- पीएम मोदी भाजपा सांसदों और विधायकों से सरकार की योजनाओं को न सिर्फ शहरों तक बल्कि गांवों के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्तियों तक पहुंचाने की बात करते हैं। लेकिन हकीकत इससे जुदा है इस पर आप क्या कहेंगी?
जवाब- मैं खुद के काम की समीक्षा करूं तो अब तक जो संवाद रहा है, वो पीआईबी के माध्यम से दिल्ली तक सीमित रहा है। सरकार के कामकाज की उपलब्धियां देशभर में पहुंचे ऐसा मेरा प्रयास है। सरकार की ओर से देश में आठ विशिष्ट केंद्र बनाए गए है, और हर प्रांत को चार पांच मुख्य केंद्रों से जोड़ने का प्रयास है। यह पहली बार प्रयास हो रहा है कि हम देश के हर कोने में पहुंचे और भारत सरकार की जितनी भी जानकारियां है, वो लोगों तक पहुंचाएं।
- निजी एफएम रेडियो पर समाचार सुनने को कब मिलेगा?
जवाब- अभी तो नहीं मिलेगा, खासकर जब तक मैं रहूंगी।
- क्या आपका मंत्रालय बीबीसी की तर्ज पर कोई चैनल शुरु करने जा रहा है?
जवाब- ऐसी कोई योजना नहीं है। हां एफएम रेडिया में 600 नए चैनलों की नीलामी की कैबिनेट ने मंजूरी दी है जिससे कि देश के दूर दराज इलाकों तक यह सुविधा पहुंच सके।
- वर्तमान सरकार में महिला सशक्तिकरण की बात कही जाती रही है। क्या यह माना जाए कि सरकार लंबे समय से अटके महिला आरक्षण बिल को संसद में पेश करने जा रही है?
जवाब- अरुण जेटली जी ने पिछले सत्र में कहा था कि इस मुद्दे पर भाजपा सभी राजनीतिक दलों से बातचीत के लिए तैयार है। लेकिन दिक्कत यह है कि यह बात किसी ने सुनी नहीं, क्योकि वो सभी शोरगुल में मशगूल थे। लोगों को यह भी याद रहना चाहिए कि जब राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल आया था, तो उस वक्त कांग्रेस के पास संख्या बल पर्याप्त नहीं था। भाजपा ने महिला आरक्षण बिल का समर्थन किया था, जबिक यूपीए के अपने सहयोगी दलों ने जिस तरह का प्रदर्शन सदन में किया था, वो यूपीए की मंशा पर सवाल उठता है।
- फेक न्यूज एक गंभीर मसला है जिसके जरिए एजेंडा सेट करने की कोशिश हो रही और तमाम विचारधाराओं के लोग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। आपका मंत्रालय इस पर क्या करने जा रहा?
जवाब- इसे लेकर प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया से चर्चा की गई है। प्रेस काउंसिल के हस्तक्षेप के बावजूद एक ही रास्ता बचता है कि हम उनको रेवेन्यू से समर्थन देना बंद कर दें। ऐसा मामला हमारे सामने आता है तो डीएवीपी को निर्देश देते हैं कि ऐसे अखबार के पास भारत सरकार से जुड़ा कोई विज्ञापन न जा पाए। वैसे फेक न्यूज से बचाव के लिए हिंदुस्तान में ढ़ाल तो अखबार के एडिटर को ही बनना पड़ेगा।
- एक तीखा सवाल- आपसे लोग घबराते क्यों हैं? कहा जाता है कि आप जहां जाती हैं, वहां टकराव बढ़ता है। सच्चाई क्या है?
जवाब-(मुस्कुराती हैं) सच्चाई यह है कि अगर मैं अपना स्टेटस बनाएं रखूं, तो मेरे लिए अपना पीआर करना कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन मुझे जिम्मेदारी इसलिए नहीं दी गई कि मैं व्यक्तिगत रुप से फेमस हो जाउं। मुझे जिम्मेदारी है कि वषरें की राजनीतिक वसीयत को खत्म करके आगे का रास्ता निकाल सकूं। मैं कभी लोकप्रियता की प्रतियोगिता का हिस्सा नहीं रही हूं। लेकिन कई राजनीतिक पंडितों ने सलाह दी है कि मुझे अपने लिए थोड़ी बहुत लोकप्रिय धारणा बनानी चाहिए। लेकिन मुझे ये कभी रास नहीं आता है, क्योंकि अगर लोकप्रिय बने रहना ही ध्येय होता, तो आज भी मैं सीरियल ही कर रही होती। मैं ऐसी ही हूं।