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भाजपा को घेरने की कोशिश में शिवसेना, कांग्रेस-NCP के सहयोग से भी बना सकती है अपना सीएम

कांग्रेस-एनसीपी दो मत में दिखाई दे रही हैं। उसके नेताओं का एक गुट शिवसेना को सरकार बनाने के लिए उकसाता दिखाई दे रहा है तो दूसरा विपक्ष में बैठने की बात कर रहा है।

By Manish PandeyEdited By: Published: Fri, 01 Nov 2019 10:14 PM (IST)Updated: Fri, 01 Nov 2019 10:14 PM (IST)
भाजपा को घेरने की कोशिश में शिवसेना, कांग्रेस-NCP के सहयोग से भी बना सकती है अपना सीएम
भाजपा को घेरने की कोशिश में शिवसेना, कांग्रेस-NCP के सहयोग से भी बना सकती है अपना सीएम

मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। शिवसेना ने भाजपा को चौतरफा घेरने का मन बना लिया है। यदि भाजपा के साथ वह किसी समझौते पर नहीं पहुंची तो वह भाजपा की अल्पमत सरकार गिराने और कांग्रेस-एनसीपी के सहयोग से अपना मुख्यमंत्री बनाने से नहीं चूकेगी।

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कांग्रेस-एनसीपी आज दो मत में दिखाई दे रही हैं। उसके नेताओं का एक गुट शिवसेना को सरकार बनाने के लिए उकसाता दिखाई दे रहा है तो दूसरा विपक्ष में बैठने की बात कर रहा है। चूंकि भाजपा-शिवसेना चुनावपूर्व गठबंधन करके लड़ी हैं। इसलिए परंपरानुसार राज्यपाल सबसे बड़े गठबंधन को ही पहले सरकार बनाने का मौका देंगे। सबसे अधिक सीटें रखने वाले गठबंधन के दलों में आपसी विवाद होने की स्थिति में इस गठबंधन के सबसे बड़े दल को पहले मौका दिए जाने की परंपरा है। इस स्थिति में भी भाजपा का पलड़ा भारी है। उसके पास निर्दलीय विधायकों को लेकर आज 118 विधायक हैं। जबकि शिवसेना के पास यह संख्या 62-63 तक ही पहुंच रही है। नई सरकार अस्तित्व में आने की अंतिम तिथि में अभी एक सप्ताह बाकी है। यदि तब तक भी भाजपा शिवसेना को मनाने में विफल रही तो फड़नवीस 2014 की भांति एक बार फिर अल्पमत सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले सकते हैं।

लेकिन भाजपा की असली मुश्किलें उसके बाद शुरू होंगी। माना जा रहा है कि उस स्थिति में सरकार को घेरने की रणनीति शिवसेना ने अभी से बनानी शुरू कर दी है। गुरुवार सुबह एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार से शिवसेना नेता संजय राउत की मुलाकात इसी रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार अल्पमत सरकार के शपथ लेने के साथ ही राज्यपाल उसे बहुमत सिद्ध करने की अवधि भी बता देंगे। इसके बाद सरकार को विधानमंडल का सत्र बुलाना होगा। भाजपा के पास उस समय तक भी शिवसेना को मनाने अथवा कहीं से भी अपने लिए पर्याप्त विधायकों का समर्थन जुटाने का मौका रहेगा। लेकिन तब भी बात नहीं बनी तो सरकार के बहुमत सिद्ध करने से पहले ही शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी मिलकर विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा के विरुद्ध अपना उम्मीदवार उतारकर अपनी शक्ति का अहसास करा सकते हैं। निश्चि रूप से उस स्थिति में विधानसभा अध्यक्ष के लिए खड़ा किया जाने वाला भाजपा का उम्मीदवार परास्त होगा। यह अल्पमत सरकार के गिरने का संकेत होगा।

विधानसभा अध्यक्ष की जंग हारने के बाद नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री के पास पिछले वर्ष कर्नाटक की तर्ज पर इस्तीफा देने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचेगा। चूंकि कांग्रेस-एनसीपी के कुछ नेता बराबर यह संकेत देते आ रहे हैं कि यदि शिवसेना खुलकर सरकार बनाने की कवायद में जुटती है तो वे उसे समर्थन देंगे। संभवत: इसी आश्वासन के भरोसे शिवसेना के हौसले बुलंद दिख रहे हैं। एनसीपी प्रवक्ता नवाब मलिक शुक्रवार को ही यह संकेत दे चुके हैं कि वह राज्य को राष्ट्रपति शासन में नहीं जाने देंगे। इसके बजाय उनकी पार्टी वैकल्पिक सरकार बनाने पर विचार करेगी। 2014 में स्थिर सरकार देने के नाम पर ही एनसीपी ने फड़नवीस की अल्पमत सरकार को बाहर से बिना शर्त समर्थन दिया था। इसलिए एनसीपी पुन: वही रास्ता अपनाए तो उस पर कोई आक्षेप भी नहीं लगाया जा सकता। भले ही शिवसेना की ऐसी डबल बैसाखियों वाली सरकार कर्नाटक की कुमारस्वामी सरकार की तर्ज पर कुछ महीने ही चल सके, लेकिन उसका अपना मुख्यमंत्री बनाने का सपना तो पूरा हो ही जाएगा।


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