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SC Verdict On Ayodhya: अयोध्या मामले में सर्वसम्मति से आने वाला पहला फैसला

शनिवार को आये फैसले से पहले अयोध्या विवाद पर तीन और फैसले आ चुके हैं लेकिन हर फैसले में पीठ के न्यायाधीश एक दूसरे से असहमत रहे।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 10 Nov 2019 09:11 PM (IST)Updated: Mon, 11 Nov 2019 01:37 AM (IST)
SC Verdict On Ayodhya: अयोध्या मामले में सर्वसम्मति से आने वाला पहला फैसला
SC Verdict On Ayodhya: अयोध्या मामले में सर्वसम्मति से आने वाला पहला फैसला

नई दिल्ली, माला दीक्षित अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने शनिवार को पूरी विवादित जमीन को मंदिर बनाने के लिए दिये जाने और मुसलमानों को दूसरी जगह पांच एकड़ जमीन मस्जिद के लिए देने का फैसला सुनाया है। इस फैसले के वैसे तो कानूनी, धार्मिक, राजनैतिक और सामाजिक तौर पर गहरे मायने निकलते हैं, लेकिन इस फैसले की एक सबसे बड़ी खासियत सभी पांचों न्यायाधीशों का एकमत होना है। यह पहला मौका है जबकि अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद से जुड़े मामले में फैसला देते समय पीठ के सभी न्यायाधीश एकमत रहे हैं। इससे पहले अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक से तीन फैसले आये, लेकिन हर फैसले में पीठ के न्यायाधीशों के बीच असहमति भी थी।

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फैसला एक है, सर्वसम्मति का है- मुख्य न्यायाधीश

वैसे तो कानून की तय व्यवस्था में फैसला हमेशा बहुमत का लागू होता है, लेकिन न्यायिक परंपरा और लोकतंत्र में असहमति का भी स्थान है। अयोध्या विवाद के मामले में सर्वसम्मति के फैसले का कितना महत्व है यह बात शनिवार को फैसला पढ़ने से पहले मुख्य न्यायाधीश द्वारा कहे गये वाक्य, उनके चेहरे के भावों और फैसले में उसे लिखने वाले किसी एक न्यायाधीश का नाम ऊपर न लिखे जाने से समझी जा सकती है। शनिवार को फैसला पढ़ना शुरू करने से पहले मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि फैसला एक है। सर्वसम्मति का है। फैसला देश में शांति और सौहार्द कायम करने वाला है। इन चंद शब्दों ने अयोध्या जैसे मामले में सर्वसम्मति के फैसले के मायने बयां कर दिये थे।

इससे पहले के तीन फैसलों में न्यायाधीशों के बीच रही थी असहमति

शनिवार को आये फैसले से पहले अयोध्या विवाद पर तीन और फैसले आ चुके हैं, लेकिन हर फैसले में पीठ के कुछ न्यायाधीश दूसरे न्यायाधीशों या न्यायाधीश से असहमत रहे थे। अयोध्या विवाद के मुकदमें का पहला महत्वपूर्ण आयाम अयोध्या में 1993 में केंद्र सरकार का कानून बनाकर 67 एकड़ जमीन अधिगृहित करना था जिसे इस्माइल फारुकी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इसके अलावा उसी समय तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट को रिफरेंस भेज कर राय मांगी थी कि क्या राम जन्मभूमि के अंदर और बाहरी अहाते में मस्जिद बनने से पहले कोई हिन्दू मंदिर वहां था। ये दोनों ही मामले सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुने। संविधान पीठ ने राष्ट्रपति के रिफरेंस को गैर-जरूरी बताते हुए बिना जवाब दिये वापस कर दिया था।

तीन-दो के बहुमत से जमीन अधिग्रहण की वैधानिकता को वैध ठहराया था

पहला महत्वपूर्ण फैसला- जमीन अधिग्रहण की वैधानिकता के मुद्दे पर पांच जजों ने 1994 में तीन-दो के बहुमत से फैसला देते हुए भूमि अधिग्रहण को वैध ठहराया था हालांकि अधिग्रहण कानून में उन धाराओं को रद कर दिया था जिसमें अयोध्या राम जन्मभूमि के लंबित मुकदमें को समाप्त करने की घोषणा थी। उसके बाद अयोध्या विवाद का लंबित मुकदमा दोबारा चलना शुरू हो गया था। बहुमत का यह फैसला जस्टिस एमएन वेंकेटचलैया, जस्टिस जेएस वर्मा और जस्टिस जीएन रे का था जबकि जस्टिस एसपी भरूचा और जस्टिस एएम अहमदी ने तीनों जजों की राय से असहमति जताते हुए अलग फैसला दिया था जिसमें केंद्र सरकार के भूमि अधिग्रहण को अवैध ठहराया था।

अयोध्या पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला दो-एक के बहुमत से था

दूसरा महत्वपूर्ण फैसला- अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद में दूसरा महत्वपूर्ण फैसला 30 सितंबर 2010 का इलाहाबाद हाईकोर्ट का था जिसमें हाईकोर्ट के तीन न्यायाधीशों की पूर्ण पीठ ने दो-एक के बहुमत से दिये गए फैसले में अयोध्या में राम जन्मभूमि को तीन बराबर हिस्सों में बाटने का आदेश दिया था जिसमें से एक हिस्सा रामलला विराजमान को दूसरा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा हिस्सा मुसलमानों को दिये जाने का आदेश था। बहुमत से फैसला देने वाले जस्टिस सुधीर अग्रवाल और एसयू खान ने रामलला का मुकदमा आंशिक रूप से स्वीकार किया था जबकि निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड का मुकदमा खारिज कर दिया था। दोनों का मुकदमा खारिज करने के बावजूद बहुमत के फैसले में निर्मोही अखाड़ा और मुस्लिम पक्ष को जमीन का हिस्सा दिया गया था। पीठ के तीसरे न्यायाधीश जस्टिस धर्मवीर शर्मा ने बहुमत के फैसले से असहमति जताते हुए पूरी राम जन्मभूमि रामलला को दे दी थी। जस्टिस शर्मा ने रामलला का मुकदमा पूरी तरह स्वीकार किया था और बाकी के सभी मुकदमें पूरी तरह खारिज कर दिये थे।

दो-एक के बहुमत से हुआ था भूमि अधिग्रहण मामले को बड़ी पीठ को न भेजना

तीसरा महत्वपूर्ण फैसला- अयोध्या के मुकदमें में तीसरा महत्वपूर्ण फैसला 27 सितंबर 2018 को आया जिसमें तीन न्यायाधीशों की पीठ ने दो-एक के बहुमत से फैसला दिया था। इस फैसले में दो न्यायाधीशों दीपक मिश्रा और अशोक भूषण ने इस्माइल फारुकी मामले में दिये गए फैसले के एक अंश को बड़ी पीठ को भेजने की मुस्लिम पक्ष की मांग खारिज कर दी थी जबकि तीसरे न्यायाधीश एस. अब्दुल नजीर ने बहुमत से असहमति जताते हुए इस्माइल फारुकी फैसले के एक अंश को विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजने का आदेश दिया था। इस मामले में मुस्लिम पक्ष ने मांग की थी कि 1994 में अयोध्या में भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाले इस्माइल फारुकी फैसले में दिये गए उस अंश को बड़ी पीठ को विचार के लिए भेजा जाए जिसमें कोर्ट ने कहा है कि नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है।

इसके बाद 14 अपीलों पर सुनवाई शुरू हुई जिसका फैसला अब आया

मुस्लिम पक्ष का कहना था कि उस फैसले में की गई इस टिप्पणी से उनका मुकदमा कमजोर हो जाएगा। हालांकि दो न्यायाधीशो ने बहुमत से मांग ठुकराते हुए स्पष्ट किया था कि इस्माइल फारुकी फैसले में की गई उपरोक्त टिप्पणी जमीन अधिग्रहण के बारे में है उसका मुख्य मुकदमे और सुप्रीम कोर्ट में लंबित अपीलों से कोई लेनादेना नहीं है। इस फैसले के बाद ही अयोध्या मामले में लंबित 14 अपीलों पर मेरिट पर सुनवाई शुरू हुई थी जिन पर शनिवार को फैसला आया है।


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