RSS का संवाद शुरू: भागवत का खुला आमंत्रण, खुद आकर संघ को समझें
भागवत ने कहा, संपूर्ण हिंदू समाज को संगठित करने के लिए संघ की स्थापना हुई। सबसे बड़ी समस्या यहां का हिंदू है, अपने देश के पतन का आरंभ हमारे पतन से हुआ है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। आरएसएस ने अपने ऊपर फासीवादी और तानाशाही संगठन होने के लग रहे आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। पहली बार दिल्ली के विज्ञान भवन में बुद्धिजीवियों को संबोधित करते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरएसएस को दुनिया का सबसे लोकतांत्रिक संगठन बताया है। भागवत के अनुसार संघ भाजपा समेत अपने किसी भी आनुषंगिक संगठन का रिमोट कंट्रोल अपने पास नहीं रखता है, बल्कि वे स्वायत्त और स्वालंबी तरीके से अपना फैसला करते हैं।
उन्होंने खुला आमंत्रण दिया कि कहे सुने पर नहीं खुद आकर संघ को समझें। वैसे संघ की कोशिश के बावजूद लगभग सभी विपक्षी दल के नेताओं ने इस कार्यक्रम से दूरी बनाए रखी।पिछले कुछ वर्षो से राजनीतिक चर्चा में भी संघ अहम होने लगा है। कुछ महीने पहले ही पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी संघ मुख्यालय नागपुर गए थे। उन्होंने देश के विकास में सभी संगठनों की भूमिका की प्रशंसा की थी। उस वक्त राजनीतिक माहौल गरमा गया था और खासकर कांग्रेस के लिए बहुत असहज स्थिति पैदा हो गई थी कुछ महीने पहले ही पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी संघ मुख्यालय नागपुर गए थे। उन्होंने देश के विकास में सभी संगठनों की भूमिका की प्रशंसा की थी। उस वक्त राजनीतिक माहौल गरमा गया था और खासकर कांग्रेस के लिए बहुत असहज स्थिति पैदा हो गई थी। यही कारण है कि सक्रिय राजनीति से संघ के परे होने के बावजूद कांग्रेस का हमला तीखा रहा है।
बहरहाल, अपनी स्वीकार्यता और पहुंचे बढ़ाने की संघ की कोशिश तेज हो गई है। तीन दिनों तक दिल्ली के विज्ञान भवन में 'भविष्य का भारत' विषय पर आयोजित चर्चा का उद्देश्य यही माना जा रहा है। इस कार्यक्रम के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों को भी निमंत्रण दिया गया था। लेकिन सबने दूरी बनाए रखी। हालांकि भाजपा नेताओं के साथ साथ फिल्म से जुड़ी कई हस्तियां व विदेशी राजदूत जरूर मौजूद थे।
कार्यक्रम में भागवत ने स्वतंत्रता संग्राम में कांग्रेस की भूमिका की प्रशंसा भी की और यह भी बताया कि जेल से छूटने के बाद संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार के स्वागत के लिए आयोजित सभा की अध्यक्षता खुद मोती लाल नेहरू ने की थी। कांग्रेस की ओर से आरएसएस पर तीखे हमलों का जबाव देते हुए मोहन भागवत ने कहा कि हमारा कोई विरोधी नहीं है। हम सभी को अपना मानते हैं। सिर्फ इस बात का ध्यान रखते हैं कि विरोधियों से संघ को कोई नुकसान नहीं होने पाए।
मोहन भागवत ने संघ के तानाशाही संगठन के आरोपों को खारिज करते हुए बताया कि किस तरह आरएसएस में सारे फैसले सामूहिक सहमति से लिए जाते हैं। उन्होंने बताया कि किस तरह से नागपुर के एक शाखा का बाल स्वयंसेवक भी संघ प्रमुख से जबाव-तलब कर सकता है। उन्होंने कहा कि संघ का स्वाभाव ही सामूहिक सहमति का है।
बुद्धिजीवियों को संघ की कार्यपद्धति समझने के लिए आमंत्रित करते हुए कहा कि केवल उनके कहने भरोसा नहीं करें, बल्कि खुद आकर संघ को देख लें। भागवत ने यह भी साफ कर दिया कि संघ ईसाई या इस्लाम का विरोधी नहीं है जैसा अक्सर पेश करने की कोशिश होती है। बल्कि देश में मौजूद विभिन्नता में भी एकता का सूत्र तलाशने की कोशिश करता है।--