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एक साथ चुनाव की चर्चा को मिलेगी धार, संघ ने विभिन्न दलों को किया आमंत्रित

प्रधानमंत्री हर मंच से बार-बार एक साथ चुनाव को लेकर अपील करते रहे हैं। लेकिन यह भी तय है कि बिना राजनीतिक सहमति के यह संभव नहीं होगा।

By Tilak RajEdited By: Published: Wed, 17 Jan 2018 08:00 PM (IST)Updated: Wed, 17 Jan 2018 08:00 PM (IST)
एक साथ चुनाव की चर्चा को मिलेगी धार, संघ ने विभिन्न दलों को किया आमंत्रित
एक साथ चुनाव की चर्चा को मिलेगी धार, संघ ने विभिन्न दलों को किया आमंत्रित

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। पूरे देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर शुरुआती पहल दिखने लगी है। संघ से जुड़े रामभाऊ म्हालगी प्रबोधिनी ने इस मुद्दे पर चर्चा के लिए कांग्रेस समेत विभिन्न दलों को आमंत्रित किया है। चर्चा में नीति आयोग भी शामिल होगा।

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माना जा रहा है कि अगले तीन-चार वर्षों में एक साथ चुनाव के लिए राजनीतिक सहमति बनाने की कोशिश होगी, ताकि सर्वसम्मति बनने पर 2024 तक इसकी राह प्रशस्त हो। दो दिनों तक चलने वाली चर्चा में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से लेकर जदयू के महासचिव केसी त्यागी, बीजद के वैजयंत पांडा, विभिन्न प्रोफेसर व विशेषज्ञ और नीति आयोग से लेकर चुनाव आयोग तक शामिल होगा।

यूं तो संसद की स्थायी समिति से लेकर वित्त आयोग तक ने एक साथ चुनाव को लेकर अपनी राय दी है और विकास व खर्च को लेकर आगाह भी किया है। लेकिन पहली बार बड़े स्तर पर कवायद शुरू हुई है, जिसमें सरकार भी शामिल होगी और राजनीतिक नेतृत्व से लेकर सामाजिक चिंतक तक। रामभाऊ प्रबोधिनी के उपाध्यक्ष व राज्यसभा सदस्य विनय सहस्त्रबुद्धे ने इसकी जानकारी देते हुए कहा कि मुंबई में 20-21 जनवरी को होने वाली चर्चा में विदेशों में एक साथ चुनाव को लेकर अनुभव, एक साथ चुनाव को लेकर राजनीतिक सोच, इसके परिणाम जैसे कई मुद्दों पर अलग अलग चर्चा होगी। जदयू के साथ साथ बीजद, शिवसेना जैसे दलों ने इसमें शामिल होने पर सहमति दे दी है। सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि कांग्रेस को भी आमंत्रण भेजा गया है लेकिन अभी वहां से कोई स्वीकृति नहीं आई है।

ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री हर मंच से बार-बार एक साथ चुनाव को लेकर अपील करते रहे हैं। लेकिन यह भी तय है कि बिना राजनीतिक सहमति के यह संभव नहीं होगा। सूत्रों का कहना है कि इसके लिए संविधान संशोधन भी करना पड़ सकता है। दरअसल, भारत जैसे विशाल और बहुदलीय देश में ऐसी घटनाएं केंद्र से लेकर राज्यों तक मे भी कई बार हुई हैं जब मध्यावधि चुनाव की स्थिति बनी। ऐसे में प्रबोधिनी की चर्चा में इससे बचने के उपाय पर भी चर्चा करेगी। यह सुझाव आएगा कि अविश्वास प्रस्ताव के साथ ही यह भी बताना होगा कि किस नेता में विश्वास है ताकि चुनाव की स्थिति न बने।

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