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भारत में ऊर्जा की बढ़ती मांग दुनिया की दो बड़ी शक्तियों के लिए बना आकर्षण का केंद्र

भारत के लिए भी यह फायदे का सौदा है क्योंकि इन दोनो के पास न सिर्फ बड़े ऊर्जा भंडार है बल्कि इस क्षेत्र की बेहतरीन तकनीकी भी है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 23 Sep 2018 06:17 PM (IST)Updated: Sun, 23 Sep 2018 07:17 PM (IST)
भारत में ऊर्जा की बढ़ती मांग दुनिया की दो बड़ी शक्तियों के लिए बना आकर्षण का केंद्र
भारत में ऊर्जा की बढ़ती मांग दुनिया की दो बड़ी शक्तियों के लिए बना आकर्षण का केंद्र

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। भारत में ऊर्जा की बढ़ती मांग दुनिया की दो बड़ी शक्तियों अमेरिका और रूस के लिए बड़ा आकर्षण का केंद्र बन गये हैं। एक तरफ पिछले दिनों टू प्लस टू वार्ता में जहां अमेरिका ने भारत को यह आश्वस्त किया कि वह आने वाले दिनों में ऊर्जा से जुड़ी उसकी हर जरूरत को पूरा करने की मंशा रखता है तो वहीं रूस ने भारत के समक्ष ऊर्जा से जुड़े दो अहम प्रस्ताव की पेशकश की है। 14 सितंबर, 2018 को मास्को में दोनो देशों की सरकारों के बीच गठित आयोग की बैठक में इन दो बड़ी परियोजनाओं पर बात शुरु हुई है। इसमें एक परियोजना तेल ब्लाक के विकास से जुड़ी हुई है जबकि दूसरी परियोजना रूस की नई महत्वाकांक्षी आर्कटिक एलएनजी परियोजना से जुड़ी हुई है।

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विदेश मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रूस के उप प्रधान मंत्री यूरी बोरीसोव की अगुवाई में हुई अंतर सरकारी आयोग की बैठक में रूस की एक तेल फील्ड में हिस्सेदारी खरीदने की बातचीत काफी अहम मुकाम पर पहुंची है। इस वार्ता में रूस की तरफ से आर्कटिक एलएनजी परियोजना में निवेश करने का ऑफर भारत को दिया गया है जिस पर भारतीय पक्ष काफी आकर्षक मान रहा है।

अक्टूबर, 2018 के पहले हफ्ते में पीएम नरेंद्र मोदी व राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के बीच होने वाली सालाना बैठक में इन दोनों प्रस्तावों पर किस तरह से आगे बढ़ना है, इसका खाका खींचा जाएगा। सनद रहे कि भारतीय कंपनियां पहले से ही रूस के एक बड़े तेल ब्लाक सखालीन में हिस्सेदारी खरीद चुकी है। एक अन्य तेल ब्लाक वैंकोर में हिस्सेदारी खरीदने को लेकर कुछ सरकारी तेल कंपनियां इच्छुक हैं।

माना जा रहा है कि रूस चाहता है कि अगर भारतीय कंपनियां आर्कटिक एलएनजी परियोजना में निवेश करने को तैयार हो जाए तो वह वैंकोर हिस्सेदारी को लेकर तैयार हो जाएगा।

जानकारों की मानें तो अमेरिका व रूस भारत में ऊर्जा की बढ़ती खपत में बड़ी संभावना देख रहे हैं। व‌र्ल्ड इनर्जी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ऊर्जा की खपत की रफ्तार वर्ष 2030 तक 126 फीसद की रहेगी जो दुनिया के किली भी देश से ज्यादा होगी।

भारत सरकार भी देश की अर्थव्यवस्था को गैस आधारित बनाने की दिशा में काम कर रही है। अभी देश की अर्थव्यवस्था में गैस की हिस्सेदारी महज 6.2 फीसद है जिसे वर्ष 2030 तक बढ़ा कर 30 फीसद करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए भारत को काफी गैस चाहिए।

भारत ने वर्ष 2018 से ही अमेरिका और रूस से एलएनजी हासिल करना शुरु किया है। रूस की कंपनी गैसप्रोम से पहली बार एलएनजी जून, 2018 में भारत को मिला जबकि अमेरिकी एलएनजी की पहली खेप भारतीय टर्मिनल में मार्च, 2018 में पहुंची है।

दोनो देशों से भारत क्रूड भी खरीद रहा है। ऐसे में दोनो देशों की तरफ से यह कोशिश हो रही है कि भारत के ऊर्जा बाजार में उनकी ज्यादा से ज्यादा पैठ हो। भारत के लिए भी यह फायदे का सौदा है क्योंकि इन दोनो के पास न सिर्फ बड़े ऊर्जा भंडार है बल्कि इस क्षेत्र की बेहतरीन तकनीकी भी है।

कच्चे तेल व गैस की बढ़ती मांग पर दोनों की नजर

क्यों है अमेरिका व रूस की नजर

1. वर्ष 2035 तक भारत की ऊर्जा खपत की वृद्धि दर 135 फीसद रहेगी

2. चीन व अमेरिका के बाद भारत होगा दुनिया का सबसे बड़ा ऊर्जा बाजार

3. कुल ऊर्जा खपत में गैस हिस्सेदारी बढ़ा कर 30 फीसद गैस करने का लक्ष्य।


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