पेट्रोल डीजल पर केंद्र-राज्य जुगलबंदी से मिली राहत, सरकार ने विपक्ष से बड़ा मुद्दा छीना
भाजपा के नेता स्वीकार करते हैं कि यह कदम राजनीतिक व आर्थिक तौर पर काफी विचार विमर्श के बाद उठाया गया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत कम करने पर भाजपा ने गुरुवार को जो दांव खेला है उसकी काट खोजना विपक्षी दलों के लिए आसान नहीं होगा।
चार अहम राज्यों में चुनावी घोषणा से ठीक पहले केंद्र व तकरीबन दस राज्यों में पेट्रोल व डीजल को सस्ता कर भाजपा ने विपक्षी दलों के हाथ से एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा छीन ही लिया है, इसके साथ ही गैर भाजपा राज्यों के सामने राजस्व व राजनीति का संतुलन साधने की चुनौती खड़ी कर दी है। इन राज्यों को बताना होगा कि अगर भाजपा शासित राज्यों में पेट्रोल व डीजल को सस्ता किया जा सकता है तो फिर उनके यहां क्यों नहीं। भाजपा के नेता स्वीकार करते हैं कि यह कदम राजनीतिक व आर्थिक तौर पर काफी विचार विमर्श के बाद उठाया गया है।
सबसे पहले मई-जून, 2018 में जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड महंगा होना शुरू हुआ था तब पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने पर विचार हुआ था लेकिन अर्थविदों व राज्यों के वित्त मंत्रियों की राय को देखते हुए मौजूदा तीन स्तरीय फार्मूले को लागू करने का फैसला किया गया। पूरे फैसले को लागू करने में प्रधानमंत्री कार्यालय, वित्त मंत्रालय और पेट्रोलियम मंत्रालय के बीच सामंजस्य बनाने के साथ ही पार्टी प्रमुख अमित शाह के जरिए भाजपा शासित राज्यों के बीच सहमति बनाई गई।
इससे कुछ ही घंटों में पूरे फैसले को लागू करना संभव हो सका है। त्रिपुरा, असम जैसे छोटे राज्यों ने टैक्स की दरों में जो राहत दी है उनकी भरपाई करने का आश्वासन भी दिया गया है।
पेट्रोलियम उत्पादों से प्राप्त राजस्व राज्यों के खजाने में सबसे अहम होते हैं। पेट्रोल व डीजल के महंगा होने से राज्यों को दोहरा फायदा होता है। एक तरफ ये सीधे शुल्क वसूलते हैं जबकि दूसरी तरफ केंद्र सरकार जो शुल्क वसूलती है उसका भी 42 फीसद हासिल करते हैं। अगर पेट्रोलियम मंत्रालय के आंकड़ों पर ध्यान दे तो वर्ष 2014-15 से वर्ष 2017-18 के दौरान राज्यों को कुल 9,45,258 करोड़ रुपये मिले थे। इन्होंने सीधे तौर पर पेट्रोल व डीजल से 6,30,474 करोड़ रुपये वसूले थे जबकि केंद्र को प्राप्त 7,49,485 करोड़ रुपये के उत्पाद शुल्क में 42 फीसद यानी 3,14,784 करोड़ रुपये का हिस्सा भी इन्हें मिला था।
यह एक बड़ी वजह है कि राज्य हमेशा से इन उत्पादों पर शुल्क घटाने को लेकर आनाकानी करते हैं। वर्ष 2013-14 में जब क्रूड 135 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गया था तब तत्कालीन सरकार ने राज्यों के साथ मिल कर शुल्क कटौती की कोशिश की थी लेकिन तब संभव नहीं हो पाया था। अब 19 राज्यों में राजग की सरकार होने से यह संभव हो सका है।