कांग्रेस से अलग विपक्षी राजनीति को धार देने में जुटे क्षेत्रीय दल, 250 सीटों पर सीमित करने की कोशिश
कांग्रेस तैयार नहीं है और क्षेत्रीय दल भी कांग्रेस को भाव देने के पक्ष में नहीं हैं। कांग्रेस संसद में संग्राम कर रही है और राहुल गांधी कर्नाटक में हैं। प्रयास है कि कांग्रेस 250 सीटों पर लड़े और शेष क्षेत्रीय दलों के हवाले कर दे।
अरविंद शर्मा, नई दिल्ली: एक सप्ताह के भीतर अलग-अलग राज्यों के चार बड़े क्षेत्रीय दलों के मेल-मिलाप का संकेत साफ है कि विपक्षी खेमे में कांग्रेस की भूमिका को सीमित कर दिया जाए। इसे कांग्रेस पर दबाव बनाने के रूप में देखा जा रहा है। क्षेत्रीय दल चाहते हैं कि कांग्रेस दो सौ से ढाई सौ सीटों पर लड़े और शेष क्षेत्रीय दलों के हवाले कर दे। यानी जिन राज्यों में केवल भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला है वहीं तक सीमित रहे।
क्षेत्रीय दल कांग्रेस को भाव देने के पक्ष में नहीं
भाजपा के विरुद्ध विपक्षी दलों की एकता के प्रयासों पर यही सबसे बड़ा ब्रेक है। कांग्रेस तैयार नहीं है और क्षेत्रीय दल भी कांग्रेस को भाव देने के पक्ष में नहीं हैं। कांग्रेस संसद में संग्राम कर रही है और राहुल गांधी कर्नाटक में हैं। इसी बीच समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव से कोलकाता में मिलने के बाद तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ओडिशा की यात्रा पर हैं, जहां उनकी मुलाकात बीजद के नवीन पटनायक से हुई है। ममता की अगली मुलाकात शुक्रवार को जदएस नेता कुमारस्वामी के साथ होनी है। चारों दलों ने अपने-अपने राज्यों में कांग्रेस से दूरी बना रखी है।
क्षेत्रीय दलों का कांग्रेस के साथ कटु अनुभव
भारत राष्ट्र समिति के अध्यक्ष एवं तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर तथा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी उसी रास्ते पर चल रहे हैं, जिसपर ममता-अखिलेश आगे बढ़ रहे हैं। केसीआर ने तो भाजपा और कांग्रेस से अलग तीसरे मोर्चे की पहल सबसे पहले ही कर दी थी। क्षेत्रीय दलों का कांग्रेस के साथ अपना-अपना कटु अनुभव है। चुनाव से पहले कांग्रेस से गठबंधन क्षेत्रीय दलों को रास नहीं आता है। सपा ने कांग्रेस के साथ यूपी में 2017 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन किया था। दोनों को नुकसान हुआ। सपा 224 से 47 और कांग्रेस 28 से सात पर आ गई।
बंगाल में कांग्रेस को नहीं मिला भाव
बंगाल में ममता बनर्जी ने कांग्रेस को कभी भाव नहीं दिया। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने वामदलों से गठबंधन कर चुनाव लड़ा। दोनों जीरो पर आउट हो गए। कर्नाटक में भी पिछला लोकसभा चुनाव कांग्रेस ने जदएस के साथ तालमेल कर लड़ा था। दोनों एक-एक सीट से आगे नहीं बढ़ पाए। बिहार में तेजस्वी यादव का भी कांग्रेस के साथ बहुत अच्छा अनुभव नहीं है। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने जिद करके राजद से 70 सीटें ले ली, लेकिन जीत हुई मात्र 19 पर ही। तेजस्वी यादव को इसका गम भी है। वह कई बार जिक्र भी कर चुके हैं कि कांग्रेस को अगर 70 सीटें नहीं देते तो बिहार में नीतीश कुमार के सहयोग के बिना भी आज उनकी सरकार होती।
421 सीटों पर लड़कर 52 पर जीती थी कांग्रेस
कांग्रेस ने पिछले लोकसभा चुनाव में 421 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। इनमें से सिर्फ 52 पर जीत मिली थी और 209 सीटों पर वह दूसरे पायदान पर थी। तेजस्वी यादव समेत विपक्ष के कई नेता कांग्रेस को अधिकतम इन्हीं 261 सीटों पर लड़ने के लिए दबाव बना रहे हैं। बाकी सीटें सहयोगी क्षेत्रीय दलों के खाते में डालने के लिए कह रहे हैं। क्षेत्रीय दलों का तर्क है कि पिछले संसदीय चुनाव में 148 सीटों पर कांग्रेस ने जमानत तक गवा दी थी तो उन्हें घेरकर रखने से क्या फायदा।
लगातार गिरता कांग्रेस का प्रदर्शन
कई राज्यों में कांग्रेस का गिरता प्रदर्शन भी क्षेत्रीय दलों की चिंता का कारण है। क्षेत्रीय दलों को पता है कि अपने आधार वाले राज्यों में उन्हें अपने दम पर ही भाजपा का सामना करना है। ऐसे में कांग्रेस को ज्यादा सीटें देकर वोट ट्रांसफर कराने की भी चुनौती होगी।