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आजादी की लड़ाई हो या अंग्रेजों के हाथों देश की तबाही, हर दौर में केंद्र में रहा लाल किला

1638 में लालकिला के निर्माण के बाद से ही यह सत्ता के केंद्र में रहा है। इसने कई विदेशी आक्रमणों का सामना किया। इसने आजादी के स्‍वतंत्रता संग्राम को करीब से देखा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 09 Aug 2018 01:48 PM (IST)Updated: Thu, 09 Aug 2018 02:03 PM (IST)
आजादी की लड़ाई हो या अंग्रेजों के हाथों देश की तबाही, हर दौर में केंद्र में रहा लाल किला
आजादी की लड़ाई हो या अंग्रेजों के हाथों देश की तबाही, हर दौर में केंद्र में रहा लाल किला

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। आगामी 15 अगस्त को एक बार फिर प्रधानमंत्री लाल किले से देश की जनता को संबोधित करने जा रहे हैं। सुरक्षा कारणों से आम लोगों का लाल किला में प्रवेश बंद हो चुका है। आजादी पर्व बीतने के बाद ही इसे आमजन के लिए खोला जाएगा। चुनावी साल के इस स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री कई अहम घोषणाएं कर सकते हैं। तभी तो सभी मंत्रालयों और विभागों के बड़े बाबुओं की उपस्थिति को जरूरी कर दिया गया है। 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से झंडा फहराने की 1947 से शुरू हुई परंपरा आज तक जारी है। 

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बना इतिहास

1638-1649 के बीच पांचवें मुगल शासक शाहजहां ने लाल किला का निर्माण कराया था। यह लाल रंग के बलुआ पत्थर से बनाया गया है। तब इसे मुगलों की नई राजधानी शाहजहांनाबाद के महल के तौर पर तैयार किया गया था। 254.67 एकड़ में फैला हुआ है। इसके निर्माण में आठ साल दस महीने और 25 दिन लगे। छह दरवाजों वाले इस किले को एक साथ तीन हजार लोगों के रहने के लिए तैयार किया गया था। तख्त-ए-ताऊस में जड़ा कोहिनूर हीरा इसकी शान माना जाता था।

झेलता रहा हमले

1739 में ईरानी आक्रांता नादिर शाह ने दिल्ली पर हमला किया। तत्कालीन मुगल शासक मुहम्मद शाह आलम को हराकर मयूर सिंहासन और कोहिनूर हीरा अपने साथ ले गया। 18वीं सदी के मध्य से आखिरी तक मराठा, सिख, जाट, गुर्जर, रोहिल्ला और अफगानिस्तान शासकों के हमले जारी रहे। अंत अंग्रेजों का देश पर शिकंजा कसता गया।

1857 का विद्रोह

1803 के बाद अंग्रेजों की नजर में दिल्ली चुभने लगी। वे लाल किला पर यूनियन जैक फहराने के लिए बेताब हो उठे। इसी बीच अंग्रेजी शासन के खिलाफ 1857 में बगावत शुरू हुई। मुगल शासक बहादुरशाह जफर ने इसका नेतृत्व किया। ब्रिटिश सेना ने बहादुर शाह जफर को लाल किले में कैद कर लिया गया। 7 अक्टूबर 1858 को बहादुर शाह जफर को रंगून (अब यंगून) निर्वासित कर दिया गया।

1857 के बाद का दौर

ब्रिटिश अफसरों ने लाल किले को नष्ट करना शुरू कर दिया था। ब्रिटिश अफसरों ने रंग महल का बगीचा, रॉयल स्टोर रूम, किचन को अस्पताल, बंगले, प्रशासनिक भवन में तब्दील कर दिया गया। ईस्ट इंडिया कंपनी अब खत्म होने के कगार पर थी। भारत की कमान अब महारानी विक्टोरिया के हाथ में आने वाली थी। 1911 में ही ब्रिटिश इंडिया की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित की गई। इतिहासकारों का कहना है कि राजधानी बदलने का मुख्य उद्देश्य उत्तर भारतीयों को ये बताना था कि भारत अब मुगलों से आजाद होकर ब्रिटेन के कब्जे में आ चुका है।

रंगून, आइएनए और लाल किला

1940 में रंगून को आजाद हिंद फौज का मुख्यालय बनाने की कोशिश हुई। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने यहां से पहली बार ‘चलो दिल्ली’ का नारा देते हुए लाल किला को दोबारा हासिल करने का एलान किया। 1945 से 1946 तक ब्रिटिश राज के खिलाफ भारतीयों का गुस्सा चरम पर पहुंच चुका था। जनता से लेकर नेता तक सभी ब्रिटिश शासन से मुक्ति के लिए लड़ रहे थे। पूरे देश में चल रही विरोधी लहर से ब्रिटिश शासन को ये अहसास हो गया कि देश में रहना मुश्किल है और भारत आजाद हुआ।

अगस्त 1947 में तिरंगे को सलामी

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 15 अगस्त 1947 को लाल किले के लाहौरी गेट पर पहली बार भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। ये वो मुकाम था जिसने अतीत से निकलकर एक स्वतंत्र राष्ट्र को भविष्य की ओर कदम रखने के लिए मजबूत बनाया। तब से आज तक हर साल 15 अगस्त ध्वजारोहण कार्यक्रम किया जाता है। प्रधानमंत्री का भाषण कार्यक्रम रेडियो और टीवी पर सीधा प्रसारित किया जाता है। पुरानी यादों को समेटे लाल किला हर साल देश के गौरव और बदलते दौर की तस्वीर लिए नजर आता है। 


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