संकट के दौरान नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करना कोर्ट का दायित्व : पूर्व सीजेआइ गोगोई
पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि असाधारण समय में अदालतों का कर्तव्य है कि वे नागरिकों के अधिकारों के साथ समझौता किए बिना हालात से निपटें।
नई दिल्ली, पीटीआइ। पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने शुक्रवार को कहा कि असाधारण समय में असाधारण प्रतिक्रिया की जरूरत होती है, यह अदालतों का कर्तव्य है कि वे नागरिकों के अधिकारों और आजादी के साथ समझौता किए बिना हालात से निपटें। कोविड-19 संकट के दौरान विवादों को प्रबंधित और स्थगित करने के लिए एक गतिशील अवधारणा' विषय पर आयोजित वेबिनार में जस्टिस गोगोई ने कहा कि संकट की स्थिति में न्यायपालिका की भूमिका संवैधानिक लोकाचार के साथ एक सुधारक और मूल्यांकनकर्ता की होती है।
चीजों को दुरुस्त करे न्यायपालिका
रंजन गोगोई ने कहा कि संकट के दौरान न्यायपालिका की भूमिका है कि वह चीजों को दुरुस्त करे और संवैधानिक नैतिकता के साथ मूल्यांकन करे। भारतीय न्यायपालिका का एक बेहद समृद्धशाली इतिहास रहा है कि वह नागरिकों के मूल अधिकारों का संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए संवैधानिक शक्तियों का इस्तेमाल करती है। न्यायपालिका विभिन्न मुद्दों पर समय-समय पर निर्देश जारी करती रहती है। कई तरह के मामलों में निर्देश जारी करने के साथ ही इसने कई तरीके इजाद किए हैं।
ऐसे मुश्किल वक्त में संतुलन की दरकार
गोगोई ने कहा कि महामारी की यह स्थिति दीर्घकालिक और तात्कालिक प्रतिक्रियाओं की जरूरत बता रही है। असाधारण हालात अभूतपूर्व प्रतिक्रियाओं का आह्वान कर सकते हैं। ऐसे में अदालत का यह दायित्व है कि वह मूल अधिकारों और नागरिकों के अधिकारों और आजादी से समझौता किए बगैर संकट की स्थिति से निपटने के लिए संतुलन बनाए। मूल अधिकारों और नागरिकों की स्वतंत्रता से समझौता किए बिना संकट की स्थिति से निपटने के लिए संतुलन बनाने और प्रशासन के साथ काम करने के लिए लगातार प्रयास करना अदालत का कर्तव्य है।
अपने फैसलों के लिए जानें जाते हैं गोगोई
बता दें कि मौजूदा वक्त में गोगोई राज्यसभा के सदस्य हैं। गोगोई सुप्रीम कोर्ट की उस पांच सदस्यीय पीठ के अध्यक्ष रहे जिसने पिछले साल नौ नंवबर को अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाया था। इतिहास में यह दूसरी सबसे लंबी सुनवाई थी। यही नहीं गोगोई ने सुप्रीम कोर्ट की उन पीठों की भी अध्यक्षता की थी जिन्होंने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश और राफेल लड़ाकू विमान सौदे जैसे मसलों पर फैसले सुनाए थे। गोगोई सुप्रीम कोर्ट के उन 11 न्यायाधीशों में शामिल रहे जिन्होंने अदालत की वेबसाइट पर अपनी संपत्ति का विवरण सार्वजनिक किया था।
सर्वोच्च अदालत ने उठाए सवाल
सर्वोच्च अदालत ने शुक्रवार को दिल्ली में कोरोना मरीजों के इलाज में लापरवाही और कोरोना से मरने वालों के शवों की स्थिति को भयावह, दहलाने वाली और दयनीय बताते हुए दिल्ली सरकार को कड़ी फटकार लगाई। देश की शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार की जिम्मेदारी सिर्फ बिस्तरों की संख्या बढ़ाने भर से पूरी नहीं होती बल्कि पर्याप्त संसाधन और मरीजों की देखभाल करने वाला स्टाफ मुहैया कराना भी उसकी जिम्मेदारी है। कोर्ट ने कहा कि लोगों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी सरकार की है और वह अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती।
जांच नहीं करना समस्या का विकल्प नहीं
दिल्ली में कोरोना जांच की घटती संख्या पर भी सवाल उठाते हुए कोर्ट ने कहा कि जांच न करना समस्या का विकल्प नहीं है। जांच की सुविधा बढ़ाना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। अदालत ने दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश नरायण (एलएनजेपी) अस्पताल की बदहाल स्थिति पर अलग से नोटिस जारी कर अस्पताल प्रशासन से जवाब मांगा है। दिल्ली के साथ महाराष्ट्र, तमिलनाडु, बंगाल और गुजरात में भी स्थिति को दयनीय बताते हुए कोर्ट ने दिल्ली सरकार, केंद्र और इन राज्यों को नोटिस जारी कर कोरोना मरीजों के इलाज और शवों के प्रबंधन पर जवाब मांगा।
मरीज भटक रहे और बेड खाली
देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा कि रिपोर्टों से साफ है कि कोरोना के इलाज को समर्पित दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल की स्थिति भयावह है। खबरों में दिखाए गए वीडियो में भर्ती मरीजों की दयनीय दशा और वार्ड की बदहाल स्थिति साफ नजर आ रही है। एक ही वार्ड में मरीज और शव दोनों हैं। यहां तक कि लॉबी और वेटिंग एरिया में भी शव दिख रहे हैं। मरीजों को न तो आक्सीजन सपोर्ट मिल रहा है और न ही बेड पर ड्रिप दिख रही है। मरीज रो चिल्ला रहे हैं और उन्हें कोई देखने वाला नहीं है। ये दिल्ली के उस सरकारी अस्पताल की हालत है जहां कुल 2000 बेड कोरोना मरीजों के लिए ही हैं। यह हाल तब है जब सरकारी अस्पतालों में कुल 5814 बेड हैं जिनमें से अभी केवल 2620 ही भरे हैं।