राम जन्मभूमि विवाद: पक्षकार की तत्काल सुनवाई की मांग, कोर्ट ने कहा- अर्जी दाखिल करो विचार करेंगे
राम जन्मभूमि विवाद में एक हिन्दू पक्षकार गोपाल सिंह विशारद ने सुप्रीम कोर्ट से मुख्य मामले पर जल्दी सुनवाई का आग्रह किया है।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। अयोध्या राम जन्मभूमि मालिकाना हक विवाद मामले में एक हिन्दू पक्षकार गोपाल सिंह विशारद ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा है कि चल रही मध्यस्थता कार्यवाही में कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है और न ही ठोस नतीजा निकलने की उम्मीद है। ऐसे में मध्यस्थता कार्यवाही बंद करके सुप्रीम कोर्ट मामले की जल्द सुनवाई करे।
गोपाल सिंह विशारद अयोध्या विवाद में मुख्य याचिकाकर्ताओं में से हैं। इनके पिता राजेन्द्र सिंह ने 1950 में पहला मुकदमा दाखिल किया था जिसमें बिना रोक टोक रामलला की पूजा का हक मांगा गया था साथ ही जन्मस्थान पर रखी रामलला की मूर्तियों को वहां से हटाने पर स्थाई रोक मांगी थी। फैजाबाद जिला अदालत से होता हुआ यह मुकदमा इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा था जिसमें हाईकोर्ट ने 2010 में अन्य याचिकाओं के साथ फैसला दिया था।
हाईकोर्ट ने राम जन्मभूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था जिसमें से एक हिस्सा भगवान रामलला विराजमान को, दूसरा निर्मोही अखाड़े और तीसरा हिस्सा मुस्लिम पक्ष को देने का आदेश था। हिन्दू मुस्लिम सभी पक्षों ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर रखी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से फिलहाल यथास्थिति कायम है।
कोर्ट ने गत आठ मार्च को अयोध्या विवाद को मध्यस्थता के जरिए हल करने के लिए तीन सदस्यीय कमेटी गठित की थी और आठ सप्ताह में हल निकालने को कहा था। बाद में कोर्ट ने मध्यस्थता का समय 15 अगस्त तक बढ़ा दिया था।
मंगलवार को गोपाल विशारद के वकील पी. नरसिम्हा ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष अर्जी का जिक्र करते हुए कोर्ट से अयोध्या मामले पर जल्द सुनवाई की गुहार लगाई। कोर्ट ने पूछा कि क्या अर्जी दाखिल कर दी गई है। वकील के हां करने पर कोर्ट ने मामले पर विचार करने का आश्वासन दिया।
विशारद ने अर्जी में कहा है कि अयोध्या विवाद से संबंधित अपीलें 2010 से सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। करीब पांच महीने की मध्यस्थता प्रक्रिया में अभी तक किसी की तरफ से कोई ठोस प्रस्ताव नहीं निकला है न ही अर्जीकर्ता को पक्षकारों के बीच कोई समझौता होने की उम्मीद लगती है।
कहा है कि उसे जून में हुई मध्यस्थता प्रक्रिया में बुलाया तक नहीं गया। उसका कहना है कि मध्यस्थता के दौरान जो सुझाव आये वे मध्यस्थता प्रक्रिया के दायरे में भी नहीं आते थे। वे राजनैतिक प्रकृति के थे। इससे अर्जीकर्ता को लगता है कि मध्यस्थता से कोई अच्छा नतीजा नहीं निकलने वाला। मामले का एकमात्र हल कोट से ही तय हो सकता है।
गोपाल सिंह विशारद जो पिता की मृत्यु के बाद उनकी जगह मुकदमे में कानूनी वारिस है, ने कहा है वह भी करीब 80 वर्ष का हो गया है और वह अभी तक पिता द्वारा दाखिल मुकदमें के फैसले का इंतजार कर रहा है। मध्यस्थता से कोई ठोस नतीजा निकलने की उम्मीद नहीं है ऐसे में कोर्ट मध्यस्थता को समाप्त घोषित करके अपीलों की मेरिट पर शीघ्र सुनवाई करे।