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सांसदों के विदाई मौके पर अध्यात्म और दर्शन से सरोबार हुई राज्यसभा

सभापति वेंकैया नायडु ने कर्ण सिंह और द्विवेदी को संसदीय व्यवहार में अनुशासन का जीवंत उदाहरण बताते हुए इनसे सीखने की सांसदों को सलाह दी।

By Tilak RajEdited By: Published: Fri, 05 Jan 2018 06:10 PM (IST)Updated: Sat, 06 Jan 2018 12:02 PM (IST)
सांसदों के विदाई मौके पर अध्यात्म और दर्शन से सरोबार हुई राज्यसभा
सांसदों के विदाई मौके पर अध्यात्म और दर्शन से सरोबार हुई राज्यसभा

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। पूर्व केंद्रीय मंत्री कर्ण सिंह और जर्नादन द्विवेदी ने अपने आखिरी विदाई भाषण से राज्यसभा में पूरा समां बांध डाला। कर्ण सिंह ने अध्यात्म और दर्शन के सहारे संसदीय राजनीति में सकारात्मक बदलाव के अपने नजरिये से सदन को मंत्रमुग्ध किया। वहीं जर्नादन द्विवेदी ने राजनीतिक व्यवस्था का संचालन करने वाले नेतृत्व से आम आदमी की जिंदगी की कठिनाइयों और दर्द से सरोकार रखने के बेबाक नजरिये के सहारे सदन की तालियां बटोरी।

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शीत सत्र के आखिरी दिन राज्यसभा में इसी 27 जनवरी को रिटायर हो रहे तीन सांसदों कर्ण सिंह, जर्नादन द्विवेदी और परवेज हाशमी को विदाई दी गई। बतौर सांसद इन तीनों का यह आखिरी सत्र था, इसीलिए सदन में सरकार और विपक्ष दोनों तरफ से इनके योगदान का उल्लेख किया गया और फिर रिटायर हो रहे सांसदों ने भी अपनी भावनाएं रखीं।

कर्ण सिंह ने सदन में सभी पक्षों से मिली प्रशंसा पर आभार जताते हुए कहा कि 50 साल पहले वे पहली बार संसदीय राजनीति के जरिये दिल्ली आये। इनमें 40 साल वे दोनों सदनों के सदस्य रहे और संसद की अब तक की प्रगति को करीब से देखा है। उन्होंने कहा कि बेशक काफी कुछ बदला है, मगर सभी प्रगति सकारात्मक ही रही है ऐसा नहीं है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व राजा कर्ण सिंह ने साठ-सत्तर के दशक की संसदीय बहस की गुणवत्ता और बौद्धिकता का हवाला देते हुए कहा कि मौजूदा समय में चर्चा का यह स्तर नहीं दिखता। हंगामा और व्यवधान अब बढ़ गया है, जिस पर आत्म चिंतन की जरूरत है। अपने राजनीतिक पथ प्रदर्शक पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी सबके साथ अपने अनुभवों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सभी प्रधानमंत्रियों ने अपने हिसाब से नये भारत के निर्माण की यात्रा को आगे बढ़ाया है। इसके बाद वेद, उपनिषद और गीता के कई श्लोकों के सहारे कर्ण सिंह ने धर्मनिरेक्षता की व्याख्या की जिसका सार था कि तमाम सांस्कृतिक विविधताओं के बावजूद सर्वधर्म समभाव का भारतीय मूल मंत्र ऐसा है कि हम किसी धर्म के विरोधी हो ही नहीं सकते।

जर्नादन द्विवेदी ने अपनी जिंदगी की गांव और गोबर के बीच हुई मुश्किल शुरुआत की सफर का जिक्र करते हुए कहा कि उनके मन में उनलोगों के लिए बहुत आदर है, जिन्होंने गरीब या साधारण परिवार में जन्म लेकर सफलता की मंजिल हासिल की है। उनका कहना था कि जिन लोगों ने आम गरीब आदमी का दर्द भोगा नहीं है तो वे संपूर्ण रूप से नेता नहीं हो सकते। द्विवेदी ने वरिष्ठ राजनेताओं से यह भी कहा कि वास्तव में अगर देश और समाज की सेवा करनी है तो दलीय बंधन की सीमाओं को तोड़कर मुद्दों पर मुखर होने के लिए आना होगा।

इससे पूर्व सदन में तीनों सदस्यों को विदाई देने की औपचारिक शुरुआत करते हुए नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद ने जम्मू-कश्मीर रियायसत के राजा के रूप में 18 साल की उम्र से लेकर संसद में अब तक की कर्ण सिंह की सेवाओं की जमकर तारीफ की। उन्होंने कहा कि राज परिवार से होते हुए भी उनके दिलो-दिमाग पर सत्ता का प्रभाव हावी नहीं हुआ। द्विवेदी के लिए भी उन्होंने प्रशंसा के पुल बांधे। सरकार की ओर से नेता सदन अरुण जेटली की गैर मौजूदगी में कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कर्ण सिंह को देश की अध्यात्मिक विरासत का संवाहक और एक दार्शनिक राजा बताते हुए तारीफ की, जबकि जर्नादन द्विवेदी की संसदीय राजनीति के अलावा हिन्दी भाषा के प्रति प्रेम का खासतौर पर उल्लेख किया।

सभापति वेंकैया नायडु ने कर्ण सिंह और द्विवेदी को संसदीय व्यवहार में अनुशासन का जीवंत उदाहरण बताते हुए इनसे सीखने की सांसदों को सलाह दी। दिल्ली से राज्यसभा का प्रतिनिधित्व करने वाले कांग्रेस के इन तीनों सांसदों की फिलहाल उच्च सदन में वापसी की गुंजाइश नहीं है।

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