मायावती की धमकी का असर, वापस होंगे भारत बंद की हिंसा के मुकदमे
मायावती की धमकी का राजस्थान ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश में भी 24 घंटे में ही असर दिखाई दिया। पीसी शर्मा ने घोषणा की आरोपितों पर दर्ज किए गए प्रकरण वापस लिए जाएंगे।
नई दिल्ली, जेएनएन। बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती की धमकी का राजस्थान ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश में भी 24 घंटे में ही असर दिखाई दिया। मध्य प्रदेश के विधि मंत्री पीसी शर्मा ने मंगलवार को पदभार ग्रहण करते ही घोषणा कर दी कि दो अप्रैल 2018 को जातिगत हिंसा के लिए जिम्मेदार आरोपितों पर दर्ज किए गए प्रकरण वापस लिए जाएंगे। उधर, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी केस वापस लेने की बात कही है।
गौरतलब है कि मायावती ने एक दिन पहले मध्य प्रदेश और राजस्थान सरकारों को चेतावनी दी थी कि अप्रैल 2018 के भारत बंद के दौरान जातिगत और राजनीतिक द्वेष से फंसाए गए लोगों के केस वापस नहीं लिए गए तो उनको समर्थन करने के फैसले पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है। मंत्री शर्मा पहले यह भी कह चुके हैं कि भाजपा शासनकाल में दर्ज किए गए सभी राजनीतिक मामले भी सरकार वापस लेगी। यानी 15 साल में दर्ज इस तरह के सभी मामलों को वापस लिया जाएगा।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मंगलवार को मीडिया से बातचीत में कहा कि भाजपा शासन में भारत बंद के दौरान निर्दोष दलितों के खिलाफ दर्ज हुए मुकदमों की समीक्षा की जाएगी। समीक्षा के बाद मुकदमे वापसी की प्रक्रिया होगी। हालांकि, गहलोत ने मायावती पर निशाना भी साधा है। उन्होंने कहा कि राजनीति में नेता अपने कैडर को मैसेज देने के लिए ऐसी बात करते हैं। वह अपना काम करें, हम अपना काम करेंगे। गहलोत ने समर्थन के मुद्दे पर कहा कि मायावती ने बिना मांगे समर्थन दिया, इसके लिए उनको धन्यवाद।
गहलोत ने कहा कि मायावती की मांग स्वाभाविक है, लेकिन दलित वर्ग के खिलाफ दर्ज मामलों में कितने अपराधी हैं, कितने नहीं, यह जांच का विषय है। सरकार अपना काम करेगी, कानून अपना काम करेगा। मामलों की जांच की जाएगी। सीएम ने कहा, हमारा मकसद है कि निदरेष इन मामलों में न फंसे।
सपाक्स ने विधि मंत्री के बयान पर जताई नाराजगी
सपाक्स समाज संस्था (सामान्य, पिछड़ा, अल्पसंख्यक कल्याण समाज संस्था) ने विधि मंत्री शर्मा के बयान पर नाराजगी जताई है। संस्था अध्यक्ष डॉ. केएल साहू ने कहा है कि जिन लोगों ने खुलेआम हिंसा फैलाई, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया और जनसामान्य को परेशान किया, उनके खिलाफ दर्ज मामले सिर्फ वोट बैंक की राजनीति के चलते वापस लिए जा रहे हैं। अनारक्षित वर्ग के लिए दुखद है कि कांग्रेस सरकार भी इस मामले में पिछली सरकार की नीतियों को अपना रही है। संस्था ने चेतावनी दी है कि सरकार एकपक्षीय निर्णय लेती है तो संस्था इस सरकार के खिलाफ भी जनांदोलन खड़ा करेगी।
भीमा-कोरेगांव में जुटे लाखों दलित
पुणे शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर स्थित भीमा-कोरेगांव में मंगलवार को कई लाख दलितों ने ‘जय स्तंभ’ पर श्रद्धासुमन अर्पित किए। भीमा-कोरेगांव जाने वालों में डॉ. भीमराव आंबेडकर के पौत्र प्रकाश आंबेडकर और भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण प्रमुख रहे। एक जनवरी, 2018 को ब्रिटिश-मराठा युद्ध की 200वीं वर्षगांठ पर यहां जुटी भीड़ अचानक हिंसक हो उठी थी, जिसमें एक व्यक्ति की जान चली गई थी। पूरा महाराष्ट्र अगले तीन दिनों तक हिंसा की आग में जलता रहा था। पिछले वर्ष हुई इस हिंसा से सावधान पुलिस प्रशासन ने इस वर्ष सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए थे। पूरा भीमा-कोरेगांव क्षेत्र छावनी में बदला दिख रहा था। शांति कायम रखने के लिए 5,000 पुलिसकर्मी, 1,200 होमगार्ड, एसआरपीएफ की 12 कंपनियों के अलावा 2,000 दलित स्वयंसेवक भी तैनात किए गए थे। 500 सीसीटीवी कैमरों और 11 ड्रोन के जरिये चप्पे-चप्पे पर निगाह रखी जा रही थी।
भारिप बहुजन महासंघ के नेता प्रकाश आंबेडकर ने भी भीमा-कोरेगांव आने वाले लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आए भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण ने महाराष्ट्र में पांच रैलियां करने की योजना बनाई थी, लेकिन माहौल खराब होने के डर से उन्हें एक भी रैली नहीं करने दी गई। हां, हाई कोर्ट ने उन्हें भीमा-कोरेगांव जाने की अनुमति जरूर प्रदान कर दी थी। प्रकाश आंबेडकर सुबह, तो आजाद ने शाम को भीमा-कोरेगांव स्थित ‘जय स्तंभ’ पर श्रद्धासुमन अर्पित किए।
जानिए क्या है जय स्तंभ
भीमा नदी के किनारे स्थित यह ‘जय स्तंभ’ 201 वर्ष पहले अंग्रेजों और मराठा साम्राज्य के बीच हुए युद्ध में मराठों की पराजय का प्रतीक माना जाता है। इस युद्ध में ब्रिटिश सेना की तरफ से महाराष्ट्र के महार समुदाय के लोगों ने युद्ध किया था। युद्ध में विजय के बाद अंग्रेजों ने ही इस ‘जय स्तंभ’ का निर्माण करवाया था। तभी से दलित महार समुदाय के लोग प्रतिवर्ष एक जनवरी को इस ‘जय स्तंभ’ पर श्रद्धासुमन अर्पित करने आते हैं। अपने जीवनकाल में डॉ. भीमराव आंबेडकर भी यहां आते रहे थे।
पिछले वर्ष मराठा- ब्रिटिश के उस ऐतिहासिक युद्ध की 200वीं वर्षगांठ से ठीक एक दिन पहले पुणो की एक संस्था कबीर कला मंच ने पुणो में पेशवाओं का निवास रहे शनिवारवाड़ा के बाहर यलगार परिषद का आयोजन किया था। पुलिस का कहना है कि इस परिषद के आयोजन के लिए धन का इंतजाम प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी(माओवादी) ने किया। परिषद में आए वक्ताओं ने भड़काऊ भाषण दिए। जिसके कारण अगले दिन भीमा-कोरेगांव में हिंसा भड़क उठी थी।