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कुछ बेहद खास है अल्बर्ट म्यूजियम में, जहां ली राजस्थान के नए सीएम ने शपथ

जयपुर के इस सेंट्रल म्यूजियम (अल्बर्ट हॉल) में 2340 साल पुरानी एक महिला की ममी रखी हुई है। इस ममी को ब्रिटिश सरकार भारत लाई थी। जानें- देश के और किन-किन म्यूजियम में रखी हैं ममी।

By Amit SinghEdited By: Published: Mon, 17 Dec 2018 10:33 AM (IST)Updated: Mon, 17 Dec 2018 11:39 AM (IST)
कुछ बेहद खास है अल्बर्ट म्यूजियम में, जहां ली राजस्थान के नए सीएम ने शपथ
कुछ बेहद खास है अल्बर्ट म्यूजियम में, जहां ली राजस्थान के नए सीएम ने शपथ

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम सामने आमने के बाद राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री पद को लेकर चली लंबी ऊहापोह समाप्त हो चुकी है। थोड़ी देर पहले, पिंक सिटी जयपुर स्थित अल्बर्ट म्यूजियम परिसर में आयोजित एक समारोह में अशोक गहलोत ने राजस्थान के मुख्यमंत्री और सचिन पायलट ने बतौर उपमुख्यमंत्री शपथ ली है। क्या आप जानतें हैं, 142 वर्ष पहले बने अल्बर्ट हॉल का इतिहास क्या है?

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जयपुर के अल्बर्ट हॉल को सेंट्रल म्यूजियम भी कहा जाता है। यह संग्रहालय राम निवास गार्डन में स्थित है। इसकी स्थापना 1876 ई. में राजकुमार अल्बर्ट द्वारा की गई थी। इस संग्रहालय में पुरातात्विक और हैन्डीक्राफ्ट के सामानों का विस्तृत संग्रह है।

यहां रखी है 2340 वर्ष पुरानी महिला की ममी

क्या आपको पता है कि मिस्र के पिरामिड ही नहीं बल्कि जयपुर के सेंट्रल म्यूजियम (अल्बर्ट हॉल) में भी 2340 साल पुरानी एक महिला की ममी रखी हुई है। हाल ही में इस ममी की स्थिति को जांचने के लिए मिस्र के एक्सपर्ट की टीम बुलाई गई थी। यह ममी मिस्र के पुराने नगर, पैनोपोलिस से खुदाई के दौरान मिली था। यह ममी जिस महिला की है उसका नाम 'तूतू है। बताया जाता है कि मिस्र में उस समय खेम नाम के एक देवता की पूजा की जाती थी। यह महिला उसी देवता के पुरोहितों के परिवार की सदस्या थी।

1880 में ब्रिटश सरकार लाई थी इस ममी को
महिला की ममी को साल 1880 में ब्रिटिश सरकार मिस्र से भारत लेकर आई थी। उसके बाद से ही इसे जयपुर के अल्बर्ट म्यूजियम में संभाल कर रखा गया है। इस ममी को देखने हर साल सैकड़ों की संख्या में सैलानी आते हैं। इनमें विदेशी सैलानियों की भी अच्छी खासी संख्या होती है। यदि आप सोच रहे हैं कि केवल जयपुर के अल्बर्ट म्यूजियम में ही ममी देख सकते हैं तो आपको यह जानकर खुशी होगी कि जयपुर सहित देश के छह शहरों कोलकाता, लखनऊ, मुंबई, हैदराबाद और गुजरात के म्यूजियम में भी ममी रखी हुई है। गुजरात के वडोदरा म्यूजियम की ममी को वडोदरा के महाराजा सियाजीराव गायकवाड़ तृतीय ने खरीद कर म्यूजियम में रखवाया था। यह ममी मिस्त्र के राजकीय परिवार से संबंधित करीब 20 साल की एक लड़की की है।

मिस्र के एक्सपर्ट करते हैं देखरेख
इन ममी की देखरेख मिस्र के पिरामिड की देखरेख करने वाले मिस्र स्थित कैरो म्यूजियम के विशेषज्ञों के निर्देश के अनुसार होती है। हाल में जयपुर आई मिस्र से तीन सदस्यों की टीम ने अल्बर्ट म्यूजियम में रखी ममी की रसायन शाखा की टीम के साथ लगभग ढाई घंटे तक ममी की जांच की। आज भी ममी की देह उसी तरह दिखती है, जैसे इस महिला की मौत अभी कुछ ही देर पहले हुई हो।

अल्बर्ड म्यूजियम के अन्य आकर्षण
- यहां तहखाने में एंट्री करते ही मुख्यद्वार पर मिस्र की देवी सेखेत की रेप्लिका है, जो कर्नाक के पास स्थित म्यूट के मंदिर से प्राप्त काले ग्रेनाइट से बनी है।
- दाहिनी ओर मिस्र के 18वें राजवंश के राजा एमेनहोतेप तृतीय की थेबस से मिली काले ग्रेनाइट से बनी प्रतिमा की रेप्लिका भी है।
- चारों तरफ ममी से जुड़ी आंखों की तरह दिखने वाली ताबीज, गले का हार, मिस्र के देवी-देवताओं की मूर्तियां, कांच की बोतल जैसे कई ऑब्जेक्ट्स हैं यहां।
- 19वीं शताब्दी में मिस्र के रेगिस्तान की खुदाई में मिली जिंजर ममी। हट्शेप्सुत के मशहूर रानी की ममी है, जिसने करीब 2 दशकों तक राज किया। राजा तुतनखामेन 9 साल की उम्र में मिस्र के राजा बने।

19वीं सदी में बेची जाने लगी थीं ममी
मिश्र की ममी पर हॉलीवुड में कई फिल्में व फिल्मों की सीरिज बन चुकी है। मिस्र में काफी पहले ममी बनाने की परंपरा खत्म हो चुकी है, क्योंकि वहां इतनी ममी इकट्ठा हो गईं थीं, जिन्हें संभालना चुनौतीपूर्ण हो चुका था। इसके बाद 19वीं शताब्दी में ममी बेची जाने लगी। एशिया के धनवान लोगों और राजाओं में उस वक्त ममी खरीदने का प्रचलन बढ़ने लगा था। ये लोग शौक में और अपने संग्राहलयों में रखने के लिए ममी खरीदते। इस तरह से किस्से-कहानियों की ममी को सीधे लोगों के बीच लाया जाता था।

दस साल में तैयार हुआ था संग्राहलय
अल्बर्ट हॉल की परिकल्पना और इंजीनियरिंग का काम स्विंटन जैकब ने किया था। जयपुर के ही चंदर और तारा मिस्त्रियों ने इसका निर्माण किया। निर्माण पूरा होने में 10 साल से ज्यादा का वक्त लगा और 1886 में इसे पूरा किया जा सका। तब माधोसिंह द्वितीय जयपुर रियासत की गद्दी पर आसीन हो चुके थे। सर एडवर्ड ब्रेडफोर्ड ने 1887 में इसका विधिवत उद्घाटन किया। इमारत को बनाने में उस वक्त 5,01,036 रुपए खर्च हुए थे। इसे जयपुर के इतिहास को सहेजने के लिए म्यूजियम बनाया गया था। तब के लोग इसे अजायबघर भी पुकारते थे।


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