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मध्य प्रदेश में रजवाड़ों को संगठित करने की कोशिश, बन सकता है नया सियासी दल

महेंद्र बहादुर ने कांग्रेस छोड़कर जोगी कांग्रेस में जाने की घोषणा की थी, लेकिन फिर वापस कांग्रेस में आ गए थे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 16 Jan 2018 10:10 AM (IST)Updated: Tue, 16 Jan 2018 10:17 AM (IST)
मध्य प्रदेश में रजवाड़ों को संगठित करने की कोशिश, बन सकता है नया सियासी दल
मध्य प्रदेश में रजवाड़ों को संगठित करने की कोशिश, बन सकता है नया सियासी दल

रायपुर, नई दुनिया। प्रदेश में एक और राजनीतिक पार्टी का उदय हो सकता है। इस बार नई पार्टी बनाने की कवायद कांग्रेस से असंतुष्ट राजघराने कर रहे हैं। राजघरानों के करीबी सूत्रों के अनुसार कांग्रेस से हाल ही में इस्तीफा देने वाले पूर्व सांसद और खैरागढ़ राजघराने के देवव्रत सिंह असंतुष्ट राजघरानों को एकजुट करने में लगे हैं। इसी कारण उन्होंने अब तक आगे के राजनीतिक कदम का खुलासा नहीं किया है। माह के अंत तक फैसला होने और उसे सार्वजनिक करने की बात कही है।

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देवव्रत सिंह ने संकेत दिया है कि वे शून्य से राजनीति शुरू करेंगे। अभी वे अपने कुछ खास करीबी लोगों से रायशुमारी कर रहे हैं। उन्होंने कांग्रेस में वापसी की संभावना को खारिज कर दिया है। उनके बयान से यह भी स्पष्ट है कि भाजपा में जाने के मूड में नहीं हैं। क्योंकि, उन्होंने कहा है कि कांग्रेस का सिस्टम कोलेप्स हो चुका है और भाजपा का भी कांग्रेसीकरण हो गया है।

अजीत जोगी के करीबी रहे, इसलिए उनकी पार्टी में जा सकते हैं। इस चर्चा पर यह कहकर विराम लगा दिया है कि जोगी कांग्रेस नई पार्टी है। उन्होंने एक बात और कही है कि वे किसी व्यक्ति से प्रभावित नहीं होते और न ही इस आधार पर किसी पार्टी में जाएंगे।

इनके करीबी सूत्रों से मालूम हुआ है कि देवव्रत अपने खास लोगों से नई पार्टी बनाने को लेकर चर्चा कर रहे हैं। कांग्रेस से असंतुष्ट और दूरी बनाए हुए राजघरानों की उनसे चर्चा हो रही है। कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं तक यह बात पहुंच चुकी है।

देवव्रत राजनांदगांव की छह विधानसभा सीट खैरागढ़, डोंगरगढ़, राजनांदगांव, डोंगरगांव, खुज्जी, मोहला मानपुर से खुद के प्रत्याशियों को चुनाव में उतारने का विचार कर रहे हैं, जहां कांग्रेस के चार और भाजपा के दो विधायक हैं। कवर्धा, सरायपाली और सक्ती राजघराने को संगठित करने की कोशिश होगी। सक्ती राजघराने के सुरेंद्र बहादुर सिंह को पिछली बार कांगेस ने टिकट नहीं दिया था, जिससे वे बागी हो गए थे और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के प्रत्याशी बनकर चुनाव लड़े थे।

योगेश्वरराज सिंह ने कांग्रेस छोड़ी, राजनीति से दूर नहीं
करीबी सूत्रों के मुताबिक देवव्रत ने कवर्धा राजघराने के योगेश्वरराज सिंह से भी चर्चा की है। योगेश्वरराज अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से दो बार के विधायक रहे। 2008 और 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें चुनाव नहीं लड़ाया, जिससे नाराज होकर उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। योगेश्वरराज अब भी चुनाव में दो-दो हाथ करने का मद्दा रखते हैं। कवर्धा जिले में दो विधानसभा सीट कबीरधाम और पंडरिया है, दोनों ही सीटों पर भाजपा का कब्जा है।

महेंद्र बहादुर सिंह ने उपेक्षा का लगाया है आरोप
चर्चा यह भी है कि चुनावी राजनीति में राजघरानों के गठबंधन की एक कड़ी सरायपाली राजघराने के महेंद्र बहादुर सिंह भी हो सकते हैं। इसी महीने उन्होंने कांग्रेस पर उनके समेत कई पुराने नेताओं की अनदेखी और उपेक्षा का आरोप लगाया है।

देवव्रत निश्चित तौर पर इनसे भी चर्चा करना चाहेंगे, ताकि महासमुंद जिले की चार सीट सरायपाली, बसना, खल्लारी व महासमुंद में प्रत्याशी उतारे जा सकें। चार सीटों में से तीन में भाजपा और एक में निर्दलीय विधायक हैं।

महेंद्र बहादुर सिंह अविभाजित मध्यप्रदेश में मंत्री, सात बार विधायक, एक बार राज्यसभा सांसद, छत्तीसगढ़ विधानसभा में प्रोटेम स्पीकर रह चुके हैं। महेंद्र बहादुर ने कांग्रेस छोड़कर जोगी कांग्रेस में जाने की घोषणा की थी, लेकिन फिर वापस कांग्रेस में आ गए थे।

इनका कहना है
कांग्रेस में हमारी उपेक्षा हुई थी, इसलिए हमने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। इसका मतलब यह नहीं कि हम राजनीति से ही दूर हो गए हैं। देवव्रत सिंह राजघरानों को जोड़कर चुनाव लड़ने का विचार कर रहे हैं, तो निश्चित तौर पर हम उस पर विचार करेंगे। - योगेश्वरराज सिंह, कवर्धा 

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