राहुल गांधी ने कहा- गरीबों व एमएसएमई को सीधी मदद से इन्कार करना दूसरी नोटबंदी जैसा
सिब्बल ने कहा कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो एमएसएमई को उबरने में बहुत ज्यादा समय लगेगा और अर्थव्यवस्था की मुश्किलें ज्यादा बढ़ेंगी।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। लॉकडाउन में अर्थव्यवस्था को हुए भारी नुकसान को लेकर लगातार निशाना साध रहे कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक बार फिर गरीबों को नकद सहायता और एमएसएमई को प्रत्यक्ष मदद नहीं देने पर सरकार को घेरा है। उनके अनुसार सरकार का यह रुख दूसरी नोटबंदी सरीखा है।
गरीबों व एमएसएमई को सीधी मदद से इन्कार दूसरी नोटबंदी जैसा
राहुल गांधी ने शनिवार को अपने ट्वीट में कहा, 'सरकार आम लोगों को नकद सहायता और एमएसएमई को सीधी मदद देने से इन्कार करके अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने में सक्रिय है। यह नोटबंदी 2.0 है।' मालूम हो कि कांग्रेस और राहुल लॉकडाउन के पहले चरण से ही देश की 50 फीसद आबादी को हर महीने 7,500 रुपये नकद छह महीने तक देने की सरकार से मांग करते आ रहे हैं।
अर्थव्यवस्था के पहिये को घुमाने के लिए बाजार में मांग बढ़ाने की जरूरत: कांग्रेस
कांग्रेस का तर्क है कि लॉकडाउन से थमे अर्थव्यवस्था के पहिये को घुमाने के लिए बाजार में मांग बढ़ाने की जरूरत है। लेकिन आम लोगों के पास बीते ढाई महीने से रोजी-रोजगार का संकट है और पैसे नहीं हैं। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने भी राहुल से पिछले महीने हुए अपने संवाद के दौरान गरीबों को सीधे नकद ट्रांसफर की वकालत की थी। कांग्रेस नेता इसके बाद से अपनी इस मांग को लेकर ज्यादा मुखर हैं।
गरीबों को नकद देने का मसला अर्थव्यवस्था को लॉकडाउन से निकालने के लिए बेहतर रास्ता है
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने राहुल की मांग का समर्थन करते हुए कहा कि गरीबों को नकद देने का मसला केवल उनकी मदद से नहीं जुड़ा है बल्कि अर्थव्यवस्था को लॉकडाउन से निकालने के लिए यही सबसे बेहतर रास्ता है। अर्थव्यवस्था की गाड़ी तब तक गति नहीं पकड़ेगी जब तक ग्रामीण बाजार की मांग जोर नहीं पकड़ती।
सिब्बल ने कहा- एमएसएमई सेक्टर सबसे ज्यादा करीब 12 करोड़ लोगों को रोजगार देता है
सिब्बल ने कहा कि इसी तरह एमएसएमई सेक्टर सबसे ज्यादा करीब 12 करोड़ लोगों को रोजगार देता है और यह आज लगभग ठप है। सरकार ने क्रेडिट गारंटी आर्थिक पैकेज तो दिया है मगर दिक्कत यह है कि इस क्षेत्र को वेतन और सीधी कार्यशील पूंजीगत सहायता की तत्काल जरूरत है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो एमएसएमई को उबरने में बहुत ज्यादा समय लगेगा और अर्थव्यवस्था की मुश्किलें ज्यादा बढ़ेंगी।