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ज्योतिरादित्य पर राहुल गांधी ने कहा, सियासी भविष्य के डर से सिंधिया ने विचाराधारा को जेब में रख लिया

ज्‍योरादित्‍य सिंधिया के बारे में कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने कहा कि अपने राजनीतिक भविष्‍य को लेकर सिंधिया डरे हुए थे। यह विचारधारा की लड़ाई है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Thu, 12 Mar 2020 05:33 PM (IST)Updated: Thu, 12 Mar 2020 08:05 PM (IST)
ज्योतिरादित्य पर राहुल गांधी ने कहा, सियासी भविष्य के डर से सिंधिया ने विचाराधारा को जेब में रख लिया
ज्योतिरादित्य पर राहुल गांधी ने कहा, सियासी भविष्य के डर से सिंधिया ने विचाराधारा को जेब में रख लिया

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने राजनीतिक भविष्य के डर से विचाराधारा को जेब में रखते हुए भाजपा-आरएसएस का दामन थामा है। हालांकि राहुल ने सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने की कसक भी जाहिर की और कहा कि वे भले ही सियासी भविष्य की खातिर चले गए हों मगर उनके दिल को वहां सुकून नहीं मिलेगा।

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जहां तक ज्योतिरादित्य का सवाल है तो मैं उनकी विचारधारा को जानता हूं

राहुल गांधी ने संसद भवन में पत्रकारों से चर्चा के दौरान सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने को लेकर अपनी इस कसक का संकेत दिया। सिंधिया के पार्टी छोड़ने से जुड़े सवाल पर राहुल ने कहा कि 'यह विचारधारा की लड़ाई है जिसमें एक तरह कांग्रेस है तो दूसरी तरफ आरएसएस की विचाराधारा। जहां तक ज्योतिरादित्य का सवाल है तो मैं उनकी विचारधारा को जानता हूं। वे मेरे साथ कॉलेज में थे और मैं बहुत अच्छे से उनको जानता हूं। सिंधिया को अपने राजनीतिक भविष्य का डर लग गया। इसीलिए उन्होंने अपनी विचाराधारा को जेब में रख लिया और आरएसएस के साथ चले गए।'

भाजपा में न तो सम्‍मान मिलेगा, न ही संतुष्टि

ज्योतिरादित्य के अलग सियासी राह पकड़ने की वजह पर राहुल ने जहां खरी-खरी बात कही, वहीं अपने पुराने मित्र के कांग्रेस छोड़ने पर अफसोस का भाव भी उनके बयानों में साफ दिखा। राहुल ने कहा कि ज्योतिरादित्य भले ने अलग विचाराधारा का दामन थाम लिया है मगर वास्तविकता यही है कि वहां पर उनको न सम्मान मिलेगा न ही उनके दिल में जो सच्चाई और भावना है उसको संतोष मिलेगा। वे जल्द ही इसे समझ भी जाएंगे।

मेरी ज्योतिरादित्य के साथ तो पुरानी दोस्ती है और वो है

सिंधिया के पार्टी छोड़ने के बाद भी राहुल ने यही संकेत दिया कि उन्होंने बेशक राजनीतिक राहें अलग कर ली हो मगर उनके अपनी मित्रता के भाव को वे नहीं छोड़ेंगे। राहुल ने अपने इस भाव का साफ संकेत देते हुए कहा 'मेरी ज्योतिरादित्य के साथ तो पुरानी दोस्ती है और वो है। इसीलिए मालूम है कि सिंधिया के दिल में जो है और जो उनके मुंह से निकल रहा है, वह अलग-अलग है।'

ज्योतिरादित्य को लंच पर लेकर गए थे राहुल

कांग्रेस के करीबी सूत्रों के अनुसार सिंधिया को हाईकमान से मुलाकात और संवाद का समय नहीं दिए जाने की बात गलत है। यह दावा भी सच्चाई से परे है कि एमपी कांग्रेस के अंदरूनी खींचतान का समाधान निकालने के लिए ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को कोई विकल्प नहीं दिया गया। हकीकत यह है कि फरवरी के आखिरी हफ्ते में विदेश दौरे पर रवाना होने से पूर्व सीएम कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के साथ जारी तनातनी खत्म करने का फार्मूला निकालने के लिए राहुल गांधी ने सीधे ज्योतिरादित्य से बात की थी। राहुल गांधी इसके लिए सिंधिया को अपने साथ बाहर लंच पर लेकर गए थे, जहां दोनों की लंबी बातचीत हुई थी।

संतुष्ट नहीं थे सिंधिया

इसमें राहुल गांधी ने ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को राज्यसभा उम्मीदवार बनाने का भरोसा दिया क्योंकि तब राज्यसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा की गई थी। राहुल के इस आश्वासन के बाद भी सिंधिया संतुष्ट नहीं थे कि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह मिलकर सूबे की सियासत में उनको किनारे लगाने का काम नहीं करेंगे। इसके बाद सोनिया गांधी ने भी सिंधिया को बुलाकर उन्हें एमपी कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया था। सिंधिया ने खुद इस पेशकश को लेकर रुचि नहीं दिखाई थी।

इरादों को भांप नहीं पाया आलाकमान

कांग्रेस हाईकमान के करीबी सूत्र का कहना है कि सिंधिया के करीब एक साल से असंतुष्ट होने की बात से नेतृत्व वाकिफ था, इसीलिए उन्हें राज्यसभा उम्मीदवार और प्रदेश अध्यक्ष बनने का विकल्प दिया गया। इस पर राजी नहीं होने का मतलब साफ है कि सिंधिया ने पार्टी छोड़ने का मन पहले ही बना लिया था। हालांकि हाईकमान से उनका संबंध इतना करीब का था कि सोनिया और राहुल दोनों अपनी पेशकश ठुकराए जाने के पीछे सिंधिया के इरादों को नहीं भांप पाए।


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