कर्नाटक और गोवा में कांग्रेस के अंदरूनी संकट के लिए जिम्मेदार हैं राहुल गांधी
लोकसभा हार की जिम्मेदारी ले चुके राहुल को सार्वजनिक रूप से यह भी स्वीकार कर लेना चाहिए कि पिछले एक डेढ़ महीने में उनके रवैए ने पार्टी को नुकसान ही पहुंचाया है।
प्रशांत मिश्र [ त्वरित टिप्पणी ]। गोवा में कांग्रेस के दस विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया और कर्नाटक में कांग्रेस के लगभग एक दर्जन विधायकों ने सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। अब राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप का बाजार गर्म है। कांग्रेस भाजपा पर खरीद फरोख्त का आरोप लगा रही है और भाजपा की ओर से कांग्रेस को खुद के गिरेबां में झांकने की सलाह दी जा रही है। इसे कांग्रेस का अंदरूनी संकट बताया जा रहा है।
जाहिर तौर पर यह कांग्रेस का अंदरूनी संकट ही है, लेकिन इस संकट की जड़ में कौन है.? कांग्रेस अगर पूरी पारदर्शिता और निर्भीकता के साथ इसकी जांच करे तो कई लोग जिम्मेदार ठहराए जा सकते हैं, लेकिन सबसे ऊपर राहुल गांधी होंगे। लोकसभा मे हार के बाद उन्होंने जिस तरह पार्टी को असमंजस में धकेला है उससे पार्टी का हर व्यक्ति सहमा हुआ है। कर्नाटक और गोवा को इससे पूरी तरह अलग कर नहीं देखा जा सकता है। और न ही इस्तीफा देकर राहुल इस आरोप से बच सकते हैं।
गोवा में भाजपा में शामिल हुए कांग्रेस के विधायकों ने कहा है कि वह राज्य का विकास चाहते हैं और इसीलिए ऐसे दल के साथ जुड़े जो विकास कर सके। नेता प्रतिपक्ष रहे चंद्रकांत कावलेकर ने ही परोक्ष रूप से राहुल पर भी निशाना साधा और कहा कि पार्टी के अंदर जिस तरह संघर्ष चल रहा है उसमे आखिर कब तक इंतजार किया जाए।
कर्नाटक में कांग्रेस छोड़ चुके विधायकों ने सीधा सीधा आरोप लगाया है कि राज्य में विकास नहीं हो रहा है इसीलिए वह इस्तीफा दे रहे हैं। कर्नाटक में जदएस के साथ मिलकर सरकार बनाने की अनुमति देने वाले राहुल को ही इसका जवाब देना होगा।
लोकसभा चुनाव नतीजा आने के साथ ही राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। आदतन कांग्रेस के अंदर उन्हें मनाने की लंबी कोशिशें चलती रहीं, लेकिन उन्होंने साफ कर दिया कि उन्हें अब किसी से कोई लेना देना नहीं। नाराजगी इस बात की है कि कोई दूसरा नेता इस्तीफा नहीं दे रहा है। राजनीतिक अदूरदर्शिता की यह हद है। आखिर पिछले एक डेढ़ साल में तो उन्होंने ही सबको जिम्मेदारी दी थी।
लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल जिस तरह का अभियान कर रहे थे उसमें कितनों लोगों की सहमति ली थी? क्या राहुल को इसका भी अहसास है कि जो लोग पदों पर बैठे हैं उसके हटने का भी कोई प्रभाव दिखेगा। यही हठ है जिसके कारण कांग्रेस के अंदर बड़ी संख्या में लोग हैरान और परेशान हैं। उन्हें यह नहीं सूझ रहा कि कांग्रेस खड़ी होकर चलने की दशा मे होगी भी या नहीं। कर्नाटक और गोवा इसका सीधा-सीधा परिणाम है और लोकसभा हार की जिम्मेदारी ले चुके राहुल को सार्वजनिक रूप से यह भी स्वीकार कर लेना चाहिए कि पिछले एक डेढ़ महीने में उनके रवैए ने पार्टी को नुकसान ही पहुंचाया है।
कर्नाटक की बात करें तो किसे नहीं पता है कि सरकार गठन के वक्त से ही कांग्रेस विधायकों में रोष था। पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया वर्तमान स्थिति को सहजता से नहीं से पचा पा रहे थे। लोकसभा चुनाव में जिस तरह पार्टी हारी उसके बाद रोष और बढ़ा। केंद्रीय नेतृत्व में कोई सुनवाई नहीं हो रही थी लिहाजा इस्तीफे तक का दांव उठाना पड़ा।
डेढ़ साल पहले गोवा में कांग्रेस नेतृत्व की राजनीतिक अक्षमता उजागर हुई थी। अब फिर से उस पर मुहर लगी है। राजनीति में आरोप प्रत्यारोप तो चलेंगे ही, लेकिन कांग्रेस जितनी जल्दी खुद को आंकने का काम शुरू कर दे उतना अच्छा होगा।