राहुल गांधी को मिली सजा, चुनाव के वक्त अक्सर बदजुबान होते नेताओं के लिए जुबान संभालने की नसीहत
पूरा विपक्ष एकजुट सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहा है और परोक्ष रूप से कोर्ट पर सवाल खड़ा किया जा रहा है क्योंकि सजा तो कोर्ट ने पूरी सुनवाई के बाद सुनाई है। अब यह चर्चा तेज है कि क्या आगे राहुल बच पाएंगे।
नई दिल्ली, आशुतोष झा। राहुल गांधी अपनी जुबान को लेकर फिर से परेशानी में हैं। संसद के अंदर विशेषाधिकार समिति उनके उन शब्दों पर मशविरा कर रही है, जिसमें उन्होंने बिना तथ्य प्रधानमंत्री पर आरोप लगाए थे। भाजपा सदस्यों ने उसे घोर आपत्तिजनक करार देते हुए समिति से उनकी सदस्यता खारिज करने की मांग की थी।
मानहानि के एक मामले में दो साल की सजा
लंदन में भारतीय लोकतंत्र को लेकर दिए गए उनके बयानों को लेकर भी कोहराम मचा हुआ है। लेकिन इसी बीच सूरत की कोर्ट ने मानहानि के एक मामले में दो साल की सजा सुना दी है। वहां उन्होंने पूरे मोदी समाज को लेकर आपत्तिजनक बयान दिया था यह कोर्ट ने भी मान लिया है। कोर्ट ने हालांकि सजा को एक महीने के लिए रोक दिया है ताकि वह ऊपर के कोर्ट में अपील कर सकें, लेकिन उनकी दोषसिद्धि को नहीं रोका है।
विपक्ष एकजुट सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहा
ऐसे में उनके उपर सदस्यता जाने की तलवार लटक रही है। सदस्यता जाने का अर्थ होगा कि अगले छह साल के लिए चुनाव लड़ने पर भी पाबंदी। इस पूरे मसले पर राजनीति गरमाई हुई है। पूरा विपक्ष एकजुट सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहा है और परोक्ष रूप से कोर्ट पर सवाल खड़ा किया जा रहा है क्योंकि सजा तो कोर्ट ने पूरी सुनवाई के बाद सुनाई है। अब यह चर्चा तेज है कि क्या आगे राहुल बच पाएंगे। उनकी सदस्यता गई तो क्या कांग्रेस को इसका फायदा मिलेगा। क्या यह मुद्दा विपक्ष को एकजुट कर देगा। भाजपा इसे कैसे भुनाएगी।
दस साल पहले क्या हुआ था
इस मुद्दे पर बढें इससे पहले यह याद करना होगा कि लगभग दस साल पहले राहुल गांधी ने ही मनमोहन सिंह के उस अध्यादेश को सरेआम फाड़कर फेंका था, जिसमें दो साल के सजायाफ्ता सांसदों विधायकों की सदस्यता तत्काल निरस्त करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को खारिज किया गया था। राहुल ने इस अध्यादेश को बकवास करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश को सही ठहराया था।
राहुल का वह कदम राजनीतिक रूप से गलत
तत्कालीन कांग्रेस सरकार भौंचक रह गई थी। तब विदेश दौरे पर गए मनमोहन सिंह ने कहा कि कैबिनेट इस मसले पर फिर से विचार करेगी और वह मुद्दा ठंडे बस्ते में चला गया था। राहुल का वह कदम राजनीतिक रूप से गलत था क्योंकि तब कांग्रेस के कई सहयोगियों को इसकी जरूरत थी लेकिन उन्होंने जनता के सामने एक फैसला लिया था। अब वही फैसला उनके लिए गले की फांस है। कोर्ट ने सजा सुनाई है। यह विशेषाधिकार समिति का मामला नहीं है। कांग्रेस को इसका राजनीतिक लाभ उठाना है तो यह भी साबित करना होगा कि यह फैसला राजनीतिक है।
सार्वजनिक रूप से माफी मांगी
वैसे राजनीति में इसके कई उदाहरण हैं जब चुनाव के वक्त लगाए गए आरोपों या बिगड़े बोल के लिए नेताओं ने बाद में सार्वजनिक रूप से माफी मांगी है और सजा से बचे हैं। राहुल ने ऐसा नहीं किया। चुनाव के वक्त खासतौर पर नेताओं की जुबान बहकी होती है। खुलेआम बिना तथ्य भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जाते हैं। पिछले दिनों में इसका चलन और ज्यादा बढ़ गया है। अभी भी अलग अलग नेताओं के खिलाफ कोर्ट में मानहानि के मामले चल रहे हैं। नेताओं के लिए यह वक्त है कि चेतें। ऐसे नेताओं की लंबी फेहरिस्त है जो केवल जुबान के कारण चर्चा में बना रहते हैं।
खुद राहुल ने तब सुप्रीम कोर्ट से माफी मांगी थी जब उन्होंने कोर्ट के हवाले से कह दिया था कोर्ट ने भी मान लिया है कि चौकीदार चोर है। तब उन्हें लिखित रूप से माफी मांगनी पड़ी थी। विपक्ष इसे एकजुटता का एक और माध्यम बनाना चाहेगा। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी कांग्रेस से मतभेद की बात करते हुए राहुल के समर्थन में आए हैं। यह इसलिए रोचक है क्योंकि कुछ दिनों पहले जब आम आदमी पार्टी के नेता व पूर्व मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया एक मामले में गिरफ्तार हुए थे तो कांग्रेस ने दूरी बनाकर रखी थी।
विपक्ष के कई नेता एकजुटता की कर रहे बात
विपक्ष के कई नेता पहले से घेरे में हैं और वह लगातार सरकार के खिलाफ एकजुटता की बात कर रहे हैं। नजर इस पर रहेगी कि सूरत कोर्ट से मिले एक महीने की राहत में राहुल के वकील उच्च न्यायालय में किस तरह अपना बचाव करते हैं और कोर्ट उससे कितना राजी होता है। ध्यान रहे कि कुछ दिनों में ही कर्नाटक विधानसभा के चुनाव की घोषणा होनी है। इस साल कई राज्यों में चुनाव हैं और अगले साल लोकसभा चुनाव। फिलहाल राहुल को जुबान को लेकर ज्यादा संयम दिखाना होगा परेशानी बढ़ेगी।