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Rahul Gandhi Birthday: कांग्रेस अध्‍यक्ष के सामने चुनौतियां बड़ी, खींचनी होगी नई लकीर

आज राहुल गांधी का जन्मदिन है। कभी सियासत के शीर्ष पर रहने वाली कांग्रेस आज प्रदर्शन के निचले पायदान पर है। ऐसे में राहुल के सामने कई चुनौतियां हैं। आइये करते हैं उनकी पड़ताल...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Wed, 19 Jun 2019 11:00 AM (IST)Updated: Wed, 19 Jun 2019 12:11 PM (IST)
Rahul Gandhi Birthday: कांग्रेस अध्‍यक्ष के सामने चुनौतियां बड़ी, खींचनी होगी नई लकीर
Rahul Gandhi Birthday: कांग्रेस अध्‍यक्ष के सामने चुनौतियां बड़ी, खींचनी होगी नई लकीर

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। आज कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का जन्मदिन है। 19 जून 1970 को जन्‍में राहुल गांधी की कांग्रेस के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष के तौर पर ताजपोशी 16 दिसंबर 2017 को हुई थी। राहुल के अध्‍यक्ष बनने के बाद से कांग्रेस को काफी उतार चढ़ाव देखने को मिले हैं। राहुल कांग्रेस को सत्‍ता के गलियारे तक पहुंचाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनको इस मकसद में कामयाबी मिलती नहीं दिखाई दे रही है। कभी सियासत के शीर्ष पर रहने वाली कांग्रेस आज प्रदर्शन के निचले पायदान पर है। ऐसे में राहुल के सामने कई चुनौतियां हैं। आइये उनके जन्‍मदिन पर करते हैं इन चुनौतियों की पड़ताल...

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पारिवारिक विरासत को बचाए रखने की चुनौती
राहुल गांधी भारत के प्रसिद्ध गांधी-नेहरू परिवार से आते हैं। कांग्रेस ने राहुल के ही नेतृत्‍व में साल 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में उनसे 423 प्रत्‍याशी उतारे थे लेकिन 52 उम्‍मीदवार ही चुनाव जीत सके। यहां तक कि राहुल गांधी खुद अमेठी लोकसभा सीट से चुनाव हार गए। सनद रहे कि अमेठी कांग्रेस की पारंपरिक सीट रही हैं। इस लोकसभा सीट से संजय गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी चुनाव लड़ चुके हैं। यहां की जनता भी कांग्रेस का साथ निभाती आई है, इसलिए यह सीट अधिकांश कांग्रेस के पास ही रही है। ऐसे में राहुल के सामने भविष्‍य में भी इस सीट को बचाए रखने की बड़ी चुनौती है।

नेहरू और इंदिरा की विचारधारा को देनी होगी धार
नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा की प्रचंड और ऐतिहासिक जीत के बाद राहुल के सामने चुनौतियां बड़ी हैं। मौजूदा वक्‍त में उन्‍हें पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी के साथ साथ अपने पिता राजीव गांधी की विचारधारा को मौजूदा वक्‍त की जरूरतों के मुताबिक नर्इ धार देनी होगी। इसके साथ ही भारतीय राजनीति में एक अपनी नई लकीर खींचनी होगी, जैसा की जवाहरलाल नेहरू के बाद इंदिरा, राजीव और सोनिया गांधी ने बखूबी किया है।

इन गलतियों से लेना होगा सबक 
लोकसभा चुनाव 2019 में मिली करारी शिकस्‍त के बाद कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल वैसे ही टूट गया था, इस बीच राहुल गांधी ने अध्‍यक्ष पद से इस्‍तीफा देने की पेशकश कर विपक्ष को हमला करने का एक और मौका दे दिया। भले ही कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने राहुल गांधी का इस्‍तीफा स्‍वीकार नहीं किया, लेकिन वह अपने फैसले पर अब भी डटे हुए हैं। सियासत के जानकारों की मानें तो इससे पहले राहुल अमेठी के अलावा वायनाड लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का कदम उठाकर एक बड़ी गलती कर चुके हैं। उनके फैसले से अमेठी की जनता में नाराजगी है। बेहतर होगा कि वह मौजूदा वक्‍त में पलायनवादी होने के बजाए अपनी दादी इंदिरा गांधी की तरह संघर्ष करें।

पार्टी के भीतर और बाहर कई चुनौतियों का सामना
मौजूदा वक्‍त में देखें तो राहुल पार्टी के भीतर ही नहीं बाहर भी कई चुनौतियों से जूझ रहे हैं। एक ओर पार्टी के भीतर की रार बार बार सामने आ जा रही है, वहीं दूसरी ओर चुनावों में हार के बाद उनके नेतृत्‍व को लेकर भी सवाल उठाए जाने लगे हैं। यही नहीं राहुल को भारतीय लोकतंत्र की दिशा को समझते हुए पार्टी के संगठनात्‍मक ढांचे को भी मजबूती देने की चुनौती है। साथ ही साथ पार्टी के भीतर की अंदरूनी कलह को थामना भी आसान काम नहीं है। इसके अलावा उन्‍हें जमीनी स्तर की सक्रियता पर बल देना, ग्रामीण जनता के साथ गहरे संबंध स्थापित करना और कांग्रेस पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र को मजबूत करने की कोशिश करना होगा।

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