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प्रियंका की एंट्री: यूपी में कांग्रेस को नाजुक दौर से निकालने के लिए साहसिक फैसले की घड़ी

Priynka Gandhi को उत्तरप्रदेश में चुनौतियों के इस नाजुक दौर से कांग्रेस को उबारने के लिए 2019 के संग्राम की सियासत में उतारने का पार्टी ने बड़ा जोखिम उठाया है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Wed, 23 Jan 2019 10:07 PM (IST)Updated: Thu, 24 Jan 2019 07:11 AM (IST)
प्रियंका की एंट्री: यूपी में कांग्रेस को नाजुक दौर से निकालने के लिए साहसिक फैसले की घड़ी
प्रियंका की एंट्री: यूपी में कांग्रेस को नाजुक दौर से निकालने के लिए साहसिक फैसले की घड़ी

 संजय मिश्र, नई दिल्ली। 'नाजुक हालात में केवल साहसिक फैसले से ही हालात बदले जा सकते हैं' प्रियंका गांधी वाड्रा के सक्रिय राजनीति में उतारे जाने के ऐलान पर कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता की यह टिप्पणी पार्टी की गंभीर सियासी चुनौतियों की ओर इशारा करता है। प्रियंका गांधी को उत्तरप्रदेश में चुनौतियों के इस नाजुक दौर से कांग्रेस को उबारने के लिए 2019 के संग्राम की सियासत में उतारने का पार्टी ने बड़ा जोखिम उठाया है।

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प्रियंका को भले ही उत्तरप्रदेश की चुनावी सियासत में कांग्रेस को चुनाव का तीसरा कोण बनाने की दृष्टि से उतारा गया है। मगर साथ ही कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इर्द-गिर्द केंद्रित राजनीतिक विमर्श के एकतरफा बयार को थामने के लिए प्रियंका की सियासी 'अपील' का यह दांव चला है।

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प्रियंका के सियासी मैदान में उतरने के ऐलान के तत्काल बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी कैबिनेट के सदस्यों से लेकर भाजपा नेताओं के वंशवाद के बहाने धुआंधार हमले साफ संकेत हैं कि प्रियंका की राजनीतिक अपील विरोधी खेमे की चुनावी चुनौती तो बनेगी ही।

राजनीति में प्रियंका का आना कोई आश्चर्य नहीं क्योंकि पर्दे के पीछे अहम मौकों पर राहुल गांधी की सलाहकार की भूमिका में वह कई मौकों पर दिखाई देती रही हैं। चाहे उत्तरप्रदेश के 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव के साथ गठबंधन करने में भूमिका हो या नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब चुनाव से पहले कांग्रेस में लाने की पहल। अभी तीन राज्यों के चुनाव बाद मुख्यमंत्रियों का नाम तय करने में भी प्रियंका पर्दे के पीछे सक्रिय रहीं।

उत्तरप्रदेश के लोकसभा चुनाव नतीजे तो मतदाताओं के अंतिम फैसले से तय करेंगे लेकिन कांग्रेस के कदम से यह तो निश्चित है कि 2019 में उत्तरप्रदेश के रण में पीएम मोदी, मायावती-अखिलेश ही नहीं प्रियंका गांधी भी एक बड़ी सियासी फैक्टर होंगी। प्रियंका के फैक्टर साबित होने को लेकर कांग्रेसी की उम्मीदों का आधार उनको लेकर जनता के बड़े वर्ग खासकर युवाओं के बीच उनका राजनीतिक आकर्षण है।

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पार्टी में इसको लेकर अब कोई दुविधा नहीं कि राहुल गांधी ही उसके सबसे शीर्षस्थ नेता हैं मगर साथ ही यह भी स्वीकार किया जाता कि प्रियंका की संवाद शैली और लोगों से सीधे जुड़ाव की क्षमता ज्यादा है। इसीलिए पार्टी मान रही कि पीएम मोदी की सियासी अपील और संवाद शैली को चुनौती देने में प्रियंका की भूमिका चुनाव में राहुल के लिए अहम होगी।

चुनावी जंग में उतरने से पहले पार्टी के सियासी योद्धाओं का मनोबल बेहद मायने रखता है। सपा-बसपा गठबंधन में कांग्रेस को दरकिनार किए जाने से पार्टी कार्यकर्ता मायूस ही नहीं बेहद बेचैन और भविष्य को लेकर चिंतित था। प्रियंका की सियासी पारी जाहिर तौर पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नया भरोसा तो पैदा करेगी और उन्हें अपने राजनीतिक भविष्य की उम्मीद बाकी होने का भाव है।

प्रियंका के मास्टर स्ट्रोक से कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की मायूसी उत्साह में तब्दील होती दिखाई भी दे रही है। पूर्वांचल के प्रमुख कांग्रेस नेता आरपीएन सिंह दावा करते हैं कि सूबे में कार्यकर्ताओं का उत्साह की नई उंचाई पर पहुंच गया है और अब सूबे में बदलाव की हवा चलेगी। वैसे कांग्रेस का भी मानना है कि यूपी ही नहीं देश भर में पार्टी के सियासी विमर्श को एक सकारात्मक उड़ान प्रियंका देंगी।

कांग्रेस के वयोवृद्ध नेता मोतीलाल वोरा के अनुसार प्रियंका के आने से देश में कार्यकर्ताओं में एक नया जोश आएगा। बिहार के कांग्रेस नेता किशोर कुमार झा कहते हैं कि उत्तरप्रदेश के साथ पार्टी को पूरे देश में इसका फायदा मिलेगा। हिन्दी भाषी राज्यों के इन नेताओं की बात से इत्तेफाक जताते हुए तेलंगाना कांग्रेस के नेता अंशुमान राव कहते हैं कि प्रियंका गांधी में कांग्रेस कार्यकता उनकी दादी इंदिरा गांधी की छवि देखते हैं और दक्षिणी राज्यों में पार्टी का ग्राफ इसे बढ़ेगा यह तय है।

प्रियंका के राजनीति में आने को विरोधी भले राहुल गांधी के नेतृत्व को खारिज करने जैसी सियासी व्याख्या करें मगर कांग्रेस की अंदरूनी हकीकत दूसरी है। तीन बड़े हिन्दी भाषी राज्यों की जीत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधे आक्रामक वार के जरिये अपना नेतृत्व स्थापित कर चुके राहुल गांधी कांग्रेस की सियासत के अपने सबसे मजबूत दौर में हैं। पार्टी के तमाम दिग्गज उनके नेतृत्व को स्वीकार कर चुके हैं। तब राहुल ने प्रियंका को सियासत में अपना सारथी बनाने का अहम फैसला किया तो कांग्रेस के दिग्गजों तक को इसकी भनक नहीं थी।

बहरहाल, कांग्रेस नेता पार्टी के सियासी विमर्श को लेकर चाहे जो दावे करें मगर प्रियंका की इंट्री का ऐलान फिलहाल साफ तौर पर उत्तरप्रदेश के सामाजिक समीकरण में कांग्रेस को कहीं न कहीं जगह दिलाने की है। ताकि चुनावी अखाड़े में कांग्रेस मुकाबले की तीसरी गंभीर दावेदार के रूप में दिखे। भाजपा के ब्राह्मण और अगड़ी जाति तो सपा-बसपा के दलित-मुसलमान वोट बैंक के आधार में बड़ी सेंध लगाने की रणनीति के लिए कांग्रेस के पास प्रियंका से बेहतर कार्ड फिलहाल कोई था भी नहीं। कांग्रेस नेतृत्व ने इस चुनौती पूर्ण दौर में भी पूरा राजनीतिक आकलन कर प्रियंका पर इस भरोसे से दांव लगाया है कि यह वार तो खाली नहीं जाएगा।


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