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राहुल पर असंतुष्टों के वार थामने के लिए मैदान में आईं प्रियंका, जानें नई रणनीति से क्‍या मिल रहे संकेत

कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं की चुनौती ने पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को चुनाव अभियान को गति देने के लिए अंतत उत्तर प्रदेश से बाहर निकलने पर बाध्य कर दिया है। प्रियंका ने इसकी शुरुआत कर दी है। जानें क्‍या है रणनीति...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Mon, 01 Mar 2021 09:27 PM (IST)Updated: Tue, 02 Mar 2021 06:47 AM (IST)
राहुल पर असंतुष्टों के वार थामने के लिए मैदान में आईं प्रियंका, जानें नई रणनीति से क्‍या मिल रहे संकेत
कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं की चुनौती ने प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश से बाहर निकलने पर बाध्य कर दिया है।

संजय मिश्र, नई दिल्ली। कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं की चुनौती ने पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को चुनाव अभियान को गति देने के लिए अंतत: उत्तर प्रदेश से बाहर निकलने पर बाध्य कर दिया है। प्रियंका ने सोमवार को असम के दौरे के साथ इसकी शुरुआत कर दी है। साफ संकेत हैं कि पांच राज्यों के चुनाव अभियान के दौरान इस बार उनकी सक्रियता पहले से कहीं ज्यादा दिखाई देगी। चुनाव मैदान में प्रियंका की सक्रियता सीधे तौर पर राहुल गांधी के हाथ मजबूत करने का स्पष्ट संकेत मानी जा रही है।

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चौतरफा बढ़ती चुनौतियों को साधने की कवायद 

पांच राज्यों में चुनावी सरगर्मी के बीच पार्टी नेतृत्व विशेषकर राहुल गांधी पर असंतुष्ट नेताओं का हमला बढ़ता जा रहा है। चौतरफा बढ़ती चुनौतियों के बावजूद पार्टी का शीर्ष नेतृत्व जवाबी आक्रामकता दिखाना मुनासिब नहीं समझ रहा है। चुनाव अभियान में प्रियंका की बढ़ी भागीदारी असंतुष्ट नेताओं के अभियान से हो रहे नुकसान को थामने की कोशिश है।

असम चुनाव में जीत की कोशिश 

राहुल तीन दिन से दक्षिण के तीन चुनावी राज्यों केरल, पुडुचेरी और तमिलनाडु के दौरे कर रहे हैं। वहीं प्रियंका ने असम से अपने अभियान की शुरुआत कर असंतुष्ट खेमे को साफ संदेश दे दिया है कि कांग्रेस में राहुल को कमजोर करने के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रयासों का वे डटकर मुकाबला करेंगी। कांग्रेस नेतृत्व के लिए असम का चुनाव अहम इसलिए भी है कि वहां पार्टी का भाजपा से आमने-सामने का मुकाबला है।

असम में गठबंधन का फैसला 

बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट ने एनडीए को छोड़ कर कांग्रेस के साथ असम में गठबंधन का फैसला किया है। इस वजह से सूबे का चुनाव काफी रोचक हो गया है। पार्टी नेतृत्व के मौजूदा भरोसेमंद लोगों में शामिल कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने अनौपचारिक चर्चा में कहा भी कि जम्मू में जमावड़े के बाद असंतुष्ट नेताओं को चुनावी राज्यों में पार्टी को मजबूत करने की सलाह दी गई है।

वर्चस्व की लड़ाई में संभाली कमान 

प्रियंका के कामाख्या मंदिर के दर्शन के बाद असम के चुनाव अभियान का आगाज करना यह साफ जाहिर करता है कि कांग्रेस हाईकमान के लिए सूबे में सियासी कामयाबी हासिल करना कितना अहम है। असंतुष्ट नेताओं के आक्रामक होते तेवरों के बीच पांच राज्यों के चुनाव के बाद कांग्रेस के नए अध्यक्ष का जून में चुनाव होना है। राज्यों के चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन कांग्रेस में गांधी परिवार के बर्चस्व के लिए बेहद निर्णायक होगा। 

कांग्रेस हाईकमान ने बदली रणनीति  

अक्सर चुनाव के दौरान संबंधित राज्यों से प्रियंका की सभाओं के लिए मांग और आग्रह आते रहे हैं मगर कुछ अपवादों को छोड़ उन्होंने उत्तर प्रदेश से बाहर जाने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई। अभी चार महीने पहले हुए बिहार चुनाव के दौरान भी प्रियंका ने चुनावी दौरे से परहेज किया। मगर असंतुष्ट नेताओं की लगातार बढ़ती सक्रियता ने उन्हें भी रणनीति बदलने पर बाध्य किया है। यही कारण है कि प्रियंका ने इस बार चुनाव अभियान के शुरुआती दिनों में ही मैदान में उतरना जरूरी समझा। 


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