पारंपरिक गुटनिरपेक्ष कूटनीति को नई दिशा देने में जुटे प्रधानमंत्री मोदी
जय और आरआइसी में सिर्फ आइ यानी भारत ही कॉमन है। यह वैश्विक स्तर पर भारत की बढ़ती अहमियत को बताता है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। भारत पारंपरिक तौर पर गुटनिरपेक्ष देशों के समूह का एक अहम सदस्य रहा है। वैसे पिछले दो दशकों में गुटनिरपेक्ष आंदोलन काफी हद तक अपनी प्रासंगिकता खो चुका है। भारत भी इस समूह को लेकर अब कोई खास उत्साह नहीं दिखाता, लेकिन अर्जेंटीना में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परोक्ष तौर पर यह दिखाया है कि निर्गुट आंदोलन की प्रासंगिकता भारतीय कूटनीति में अभी बरकरार है। मोदी ने एक ही दिन अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और जापान के पीएम एबी के साथ एक संयुक्त बैठक की तो इसके कुछ ही घंटे बाद रूस और चीन के राष्ट्रपतियों के साथ अलग बैठक की।
एक तरफ अमेरिका व जापान तो दूसरी तरफ चीन व रूस के प्रमुखों के साथ मोदी की बैठक
जापान, अमेरिका और भारत ( जय ) के शीर्ष नेताओं की यह पहली बैठक थी। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पीएम शिंजो एबी की ट्यूनिंग मोदी के साथ पहले से ही काफी अच्छी है, लेकिन इन तीनों की संयुक्त बैठक कूटनीतिक उद्देश्यों से अभी तक नहीं हुई थी। इसी तरह से रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ मोदी की हाल के दिनों में कई बार मुलाकात हुई हैं, लेकिन इन तीनों (आरआइसी) की यह पहली संयुक्त बैठक थी।
इन दोनों बैठकों के बाद भारत के विदेश सचिव विजय गोखले की तरफ से जारी बयान इस बात को साबित करते हैं कि भारत के लिए फिलहाल अपने हितों की रक्षा करना ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। यही वजह है कि मोदी ने ट्रंप और एबी के साथ जहां हिंद प्रशांत महासागर में सभी देशों के लिए एक समान अवसर मिलने के मुद्दे पर बात की वहीं दूसरी तरफ पुतिन और चिनफिंग के साथ उनकी मुलाकात में व्यापारिक हितों का मुद्दा सबसे अहम रहा।
जानकारों का मानना है कि इस वर्ष की शुरुआत में चिनफिंग और मोदी की अनौपचारिक बातचीत के बाद भारत की कूटनीति में कुछ बदलाव दिखाई देने लगा था जो समूह-20 देशों की बैठक में एकदम साफ हो गया है। हाल ही में अमेरिका, जापान, भारत और आस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रालय के अधिकारियों की बैठक के बाद भारत की तरफ से जारी बयान भी अन्य तीन देशों के बयान के मुकाबले नरम था।
विदेश मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक 'जय' और 'आरआइसी' में सिर्फ 'आइ' यानी भारत ही कॉमन है। यह वैश्विक स्तर पर भारत की बढ़ती अहमियत को बताता है। एक साथ इन दोनों बैठकों का होना भारत की लीडरशिप क्षमता को भी दर्शाता है। अगर अमेरिका और जापान यह सोचते हैं कि हिंद प्रशांत महासागर में भारत की भूमिका कम होगी तो रूस और चीन यह स्वीकार करते हैं कि बदलते वैश्विक माहौल में उन्हें भारत के साथ की जरूरत है। भारत की इस बात के लिए तैयार है कि वह इन दोनों समूहों के साथ सकारात्मक रिश्ते बना सकता है जो वैश्विक शांति के लिए जरूरी होगा।
सूत्रों के मुताबिक मोदी, ट्रंप और एबी के बीच वैश्विक कनेक्टिविटी परियोजनाओं को लेकर चर्चा हुई है। निश्चित तौर पर यह चीन की वन बेल्ट वन रोड योजना को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है। इसके बारे में जल्द ही विस्तृत जानकारी दी जाएगी, लेकिन दूसरी तरफ पुतिन और चिनफिंग के साथ मोदी की बातचीत में अमेरिका की संरक्षणवादी नीतियों से निबटने पर चर्चा हुई है।