Move to Jagran APP

...जब CJI की नियुक्ति में इंदिरा सरकार ने तोड़ी परंपरा, नौ सदस्यीय पीठ ने दिखाई राह

केंद्र में आसीन तत्‍कालीन इं‍दिरा सरकार की सिफारिश पर जस्टिस एएन रे को सुप्रीम कोर्ट का प्रधान न्‍यायाधीश नियुक्ति किया गया।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Wed, 03 Oct 2018 12:20 PM (IST)Updated: Thu, 04 Oct 2018 07:38 AM (IST)
...जब CJI की नियुक्ति में इंदिरा सरकार ने तोड़ी परंपरा, नौ सदस्यीय पीठ ने दिखाई राह
...जब CJI की नियुक्ति में इंदिरा सरकार ने तोड़ी परंपरा, नौ सदस्यीय पीठ ने दिखाई राह

नई दिल्‍ली [ जागरण स्‍पेशल ]। सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्‍ठ जज जस्टिस रंजन गोगोई देश के मुख्‍य न्‍यायाधीश का पदभार संभाला। उन्हें राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद की शपथ दिलाई। वह देश के 46वें प्रधान न्‍यायाधीश होंगे और 17 नंवबर 2019 तक उनका कार्यकाल होगा। हम आपको बताते हैं कि आखिर प्रधान न्‍यायाधीश की नियुक्ति में क्‍या है संवैधानिक प्रावधान। इस पर क्‍या रही है पंरपरा और वो सुप्रीम कोर्ट के तीन अहम केस जिसने मुख्‍य न्‍यायाधीश के चयन पर एक स्‍थाई व्‍यवस्‍था दी।

loksabha election banner

आजादी के बाद CJI की नियुक्ति की प्रक्रिया

संविधान निर्माताओं ने देश की सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की‍ नियुक्ति का अधिकार राष्‍ट्रपति को दिया है। हालांकि, प्रधान न्‍यायाधीश कौन होगा, इस विषय में संविधान में अलग से कोई प्रावधान का जिक्र नहीं है। आजादी के बाद यानी 1951 से 1973 तक सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्‍ठ जज को ही प्रधान न्‍यायाधीश बनाने की परंपरा रही है। आजादी के बाद दो दशक से ज्‍यादा समय तक इस परंपरा का निर्वाह किया गया। संविधान के मुताबिक इसके लिए राष्‍ट्रपति मंत्रियों की सलाह के साथ ही सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के जजों का परामर्श ले सकता है। लेकिन क्‍या मुख्‍य न्‍यायाधीश की नियुक्ति में केंद्र सरकार जजों के परामर्श से या सहमति के आधार पर फैसला लेंगी। इस पर एक लंबी बहस चली।

जस्टिस एएन रे और जस्टिस एमयू बेग मामले में उठे सवाल

1973 में पहली बार सीजेआइ की नियुक्ति में वरिष्‍ठता के आधार को भंग कर दिया गया। केंद्र में आसीन तत्‍कालीन इं‍दिरा सरकार की सिफारिश पर जस्टिस एएन रे को सुप्रीम कोर्ट का प्रधान न्‍यायाधीश नियुक्ति किया गया। जस्टिस रे की नियुक्ति में जस्टिस केएस हेगड़, जस्टिस एएन ग्रोवर, जस्टिस जेएस शैलाब इन तीनों जजों की वरिष्‍ठता काे नजरअंदाज किया गया था। यहीं से विवाद की शुरुआत होती है। इसके बाद 1977 में सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्‍ठ न्‍यायाधीश जस्टिस एचआर खन्‍ना की जगह जस्टिस एमयू बेग को भारत का प्रधान न्‍यायाधीश बना दिया गया। इसके विरोध में जस्टिस खन्‍ना ने अपना त्‍यागपत्र दे दिया। जजों के विरिष्‍ठता के अतिक्रमण का आरोप लगाने वाले कानूनविदों और जजों का कहना है कि इस मामले में न्‍यायपालिका का विवेकाधिकार कम कर दिया गया था।

1981 में सरकार के  दृष्टिकोण को कोर्ट ने सही माना

मुख्‍य न्‍यायाधीश की नियुक्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट के परामर्श शब्‍द पर बहस की शुरुआत हुई। यह सवाल उठा कि सुप्रीम कोर्ट का परामर्श सरकार के लिए बाध्‍यकारी है कि नहीं। इस मामले की पहली सुनवाई वर्ष 1981 में हुई। तत्‍कालीन जस्टिस एसपी गुप्‍ता ने सुप्रीम कोर्ट के परामर्श को सिर्फ विचार के तौर पर परिभाषित किया। यानी मुख्‍य न्‍यायाधीश की नियुक्ति या अन्‍य जजों की नियुक्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट का परामर्श सरकार के लिए बाध्‍यकारी नहीं थी। इसे फर्स्ट जजेज केस कहा जाता है।

1993 में कॉलेजियम सिस्‍टम की हुई शुरुआत

लेकिन 1993 में जस्टिस जेएस वर्मा की अगुवाई में नौ जजों की पीठ ने इस व्‍यवस्‍था को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट के परामर्श को मानना बाध्‍यकारी बताया। इस फैसले में यह स्‍थापित किया गया कि यह परामर्श सरकार के लिए केवल महज सुझाव नहीं है, बल्कि ये बाध्‍यकारी है। पीठ ने कहा कि जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर कॉलेजियम के जरिए होगा। इसे सेकंड जजेज केस कहा जाता है। यहीं से कॉलेजियम सिस्‍टम की शुरुआत माना जाता है।

नौ सदस्यीय पीठ ने न्‍यायपालिका की सर्वोच्‍चता का दिया सिद्धांत

1998 में तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति केआर नारायण ने संविधान के अनुच्‍छे 124, 217, 222 के तहत परामर्श शब्‍द के अर्थ पर सुप्रीम कोर्ट की राय मांगी। कुछ दिन बाद ही जस्टिस एसपी भरुची की अगुवाई  वाली सुप्रीम कोर्ट की नाै सदस्‍यी पीठ ने 28 अक्‍टूबर, 1998 को आदेश दिया कि नियुक्ति के मामले में न्‍यायपालिका विधायिका से ऊपर है। यानी 1993 में परामर्श को सरकार के लिए बाध्‍यकारी बताने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही था। इस आदेश को थर्ल्ड जजेस केस कहा जाता है।

क्‍या दिया गया था तर्क

1- सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के जजों को न्‍यायिक प्रक्रिया की जानकारी रखने वालों जस्टिस के बारे में बेहतर जानकारी होती है। इसलिए जजों की नियुक्ति के मामले में उनकी राय को अहम‍ियत मिलनी चाहिए।

2- एक अहम तर्क य‍ह दिया गया था कि न्‍यायपालिका को राजनीतिक दखलअंदाजी से मुक्‍त रखा जा सके, जो संविधान की मूल आत्‍मा में निहित है।

3- कॉलेजियम जजों के नाम और नियुक्ति का फैसला करती है। जजों के तबादलों का फैसला भी कॉलेजियम करता है। हाईकोर्ट के कौन से जज प्रमोट होकर सुप्रीम कोर्ट जाएंगे यह फैसला भी कॉलेजियम करता है।

क्‍या है कॉलेजियम

हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति का अधिकार जजों की एक समिति के पास है, जिसे कॉलेजियम कहते हैं। सुप्रीम कोर्ट का प्रधान न्‍यायाधीश इसका अध्‍यक्ष होता है। इसके अलावा शीर्ष न्‍यायालय के चार वरिष्‍ठतम जज इसके सदस्‍य होते हैं। कॉलेजियम की यह व्‍यवस्‍‍था दो दशक से ज्‍यादा समय से हमारे देश में लागू है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.