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राष्ट्र के नाम संबोधनः राष्ट्रपति बोले- देश अहम मोड़ पर विवादित मुद्दों से बचने की जरूरत

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने देश के नाम संदेश देते हुए कहा कि हमें ध्यान भटकाने वाले मुद्दों में नहीं उलझना है।

By Vikas JangraEdited By: Published: Tue, 14 Aug 2018 07:14 PM (IST)Updated: Wed, 15 Aug 2018 12:22 AM (IST)
राष्ट्र के नाम संबोधनः राष्ट्रपति बोले- देश अहम मोड़ पर विवादित मुद्दों से बचने की जरूरत
राष्ट्र के नाम संबोधनः राष्ट्रपति बोले- देश अहम मोड़ पर विवादित मुद्दों से बचने की जरूरत

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा है कि देश विकास के कई बुनियादी लक्ष्यों को हासिल करने के मुहाने पर खड़ा है और इसीलिए यह जरूरी है कि विवादित और ध्यान बंटाने वाले मुद्दों से बचा जाए। राष्ट्रपति ने कहा कि देश गरीबी दूर करने, सबको बिजली देने जैसे लक्ष्यों के करीब है और हमें ऐसे विवादों से बचना होगा जो इन लक्ष्यों को हासिल करने में बाधा पैदा कर सकते हैं।

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स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा कि देश इतिहास के ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां खुले में शौच से मुक्ति, सभी बेघरों को घर अर सबके लिए बिजली जैसी बुनियादी जरूरतें मुहैया कराने का लक्ष्य करीब है। इसीलिए हमें इस पर जोर देना होगा कि ध्यान भटकाने वाले मुद्दों और निरर्थक विवादों में पड़कर अपने लक्ष्यों से न भटक जाएं। महात्मा गांधी की अहिंसा की सोच को ज्यादा ताकतवर रेखांकित करते हुए कोविंद ने कहा कि हिंसा की तुलना में अहिंसा की ताकत कहीं अधिक है।

उन्होंने कहा कि हमारे समाज में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है और प्रहार की अपेक्षा संयम बरतना कहीं ज्यादा सराहनीय है। राष्ट्रपति की इस टिप्पणी को हाल ही में भीड़ द्वारा पीट-पीट कर हत्या करने जैसी हिंसक घटनाओं के संदर्भ में देखा जा रहा है। राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में महिलाओं और युवाओं की राष्ट्र निर्माण में खास भागीदारी पर भी जोर दिया। उनका कहना था कि महिलाओं की आजादी को व्यापक बनाने में ही देश की सार्थकता है और उन्हें अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग करने के लिए सुरक्षित वातावरण उन्हें मिलना ही चाहिए। महिलाओं को अपने विकल्प चुनने की पूरी आजादी मिलनी चाहिए।

युवाओं की प्रतिभा को उभरने के लिए अवसर देने की वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि युवा ही हमारे स्वाधीनता सेनानियों के सपनों का भारत बनाते हैं। राष्ट्रपति ने छात्रों से यूएसआर यानि यूनिवर्सिटीज सोशल रेस्पांसिबिलिटी के तहत साल में चार या पांच दिन गांवों में बिताने का सुझाव दिया। उनका कहना था कि इससे नई पीढ़ी को देश के ग्रामीण इलाकों की वस्तुस्थिति, योजनाओं और सामाजिक कल्याण से रुबरू होकर जुड़ने का मौका मिलेगा।

देश में तेज गति से विकास और बदलाव की जरूरत बताते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि तीन दशक बाद हम स्वतंत्रता की 100वीं वर्षगांठ मनाएंगे ऐसे में आज जिन योजनाओं व परियोजनाओं की बुनियाद हम बना रहे हैं वही यह तय करेगा कि हम दुनिया में कहां तक पहुंचे।

गांधी जी के जरिए अहिंसा का संदेश
राष्ट्रपति कोविंद ने राष्ट्रपति महात्मा गांधी का जिक्र करते हुए कहा, 'हमें गांधीजी के विचारों की गहराई को समझने का प्रयास करना होगा। उन्हें राजनीति और स्वाधीनता की सीमित परिभाषाएं, मंजूर नहीं थीं। गांधी जी ’स्वदेशी’ पर बहुत ज़ोर दिया करते थे। उनके लिए यह भारतीय प्रतिभा और संवेदनशीलता को बढ़ावा देने का प्रभावी माध्यम था।' इसके आगे उन्होंने कहा, 'गांधी जी ने हमें अंहिसा का अमोघ अस्त्र हमें प्रदान किया है।'
 एकजुटता की बताई ताकत
राष्ट्रपति ने कहा कि यह देश हम सबका है, सिर्फ सरकार का नहीं। उन्होंने कहा कि एकजुट होकर, हम ‘भारत के लोग’ अपने देश के हर नागरिक की मदद कर सकते हैं। एकजुट होकर, हम अपने वनों और प्राकृतिक धरोहरों का संरक्षण कर सकते हैं, हम अपने ग्रामीण और शहरी पर्यावास को नया जीवन दे सकते हैं। हम सब ग़रीबी, अशिक्षा और असमानता को दूर कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि हम सब मिलकर ये सभी काम कर सकते हैं। हालांकि इसमें सरकार की प्रमुख भूमिका होती है, परंतु एकमात्र भूमिका नहीं है। 


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