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अपने ही कैप्टन के लिए बन रहे सिरदर्द, सिद्धू के बाद अब इन श्रीमान की वजह से मुश्किल में सरकार

बाजवा ने कहा कि एक ओर कैप्टन किसानों से फसली चक्र से बाहर आने की बात कर रहे हैं लेकिन जो किसान गेहूं और धान के फसली चक्र से बाहर आ गए हैं उन्हें अब कीमत नहीं दी जा रही है।

By TaniskEdited By: Published: Wed, 05 Dec 2018 06:42 PM (IST)Updated: Wed, 05 Dec 2018 06:42 PM (IST)
अपने ही कैप्टन के लिए बन रहे सिरदर्द, सिद्धू के बाद अब इन श्रीमान की वजह से मुश्किल में सरकार
अपने ही कैप्टन के लिए बन रहे सिरदर्द, सिद्धू के बाद अब इन श्रीमान की वजह से मुश्किल में सरकार

चंडीगढ़, जेएनएन। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की मुश्किलें थमने का नाम नहीं ले रहीं है। करतारपुर कॉरिडोर के शिलान्यास समारोह में पाकिस्तान जाने को लेकर नवजोत सिंह सिद्धू पहले ही कैप्टन की किरकिरी करवा चुके हैं। हालांकि सीएम ने सिद्धू को पाकिस्तान जाने के फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा था। यह मसला अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि कैप्टन के चिर प्रतिद्वंद्वी और राज्य सभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा ने उनके लिए मुश्किल खड़ी कर दी है। 

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प्राइवेट गन्ना मिलों को चलवाने को लेकर प्रताप सिंह बाजवा ने अपनी ही सरकार को घेर लिया है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने किसानों को गन्ने की पूरी कीमत नहीं दी तो वह भी किसानों के साथ धरने में शामिल हो जाएंगे। बाजवा ने पिछले साल की बकाया राशि पर ब्याज भी मांगा है। उन्होंने कहा कि वह जानते हैं कि पंजाब में उनकी पार्टी की सरकार है लेकिन वह गन्ने की अदायगी को लेकर किसानों के साथ हैं। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद पहली बार पंजाब के किसानों ने दो तिहाई बहुमत कांग्रेस पार्टी को दिया है और हमने लोगों से बेहतर प्रशासन देने का वादा किया था। लेकिन अब माझा और दोआबा के किसान भारी संकट से जूझ रहे हैं ऐसे में सरकार को किसानों के साथ खड़ा होना चाहिए। 

बाजवा ने कहा कि एक ओर कैप्टन अमरिंदर सिंह किसानों से फसली चक्र से बाहर आने की बात कर रहे हैं लेकिन जो किसान गेहूं और धान के फसली चक्र से बाहर आ गए हैं उन्हें ही अब कीमत नहीं दी जा रही है।

कैप्टन सरकार की मुश्किलें बढीं 

प्रताप सिंह बाजवा के इस बयान से कैप्टन सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। हालांकि पता चला है कि उनके धुर विरोधी और कैप्टन अमरिंदर सिंह के नजदीकी माने जाने वाले तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा , जो कैबिनेट में ग्रामीण विकास और शहरी विकास जैसे विभाग संभाल रहे हैं ने किसानों, मिलों और सरकार के बीच इस संकट को टालने की कमान संभाल ली है। लेकिन असल बात यह समझ में नहीं आ रही है कि आखिर प्रताप बाजवा ने अचानक यह कदम क्यों उठाया? उनके इस कदम से दो सवाल उठ रहे हैं? क्या वह फिर से 2019 में गुरदासपुर से चुनाव लडऩा चाहते हैं। 

आधा कार्यकाल बाकी 

बाजवा इस समय राज्य सभा सांसद हैं और उनकी आधा कार्यकाल अभी पड़ा है। गुरदासपुर उनका अपना हलका है जहां से इस समय पंजाब कांग्रेस के प्रधान सुनील जाखड़ चुनाव लड़ कर सांसद बने हैं और उनके फिर से इसी सीट पर लडऩे की संभावना है। प्रताप सिंह बाजवा के लिए यह सीट लडऩी आसान भी नहीं है क्योंकि न तो उनकी सुखजिंदर सिंह रंधावा से, तृृप्त राजिंदर सिंह बाजवा से बनती है ये दोनों विधायक व मंत्री गुरदासपुर संसदीय सीट का हिस्सा हैं। पठानकोट जिला वैसे ही हिंदू बहुल है जहां पर उन्हें पहले भी ज्यादा वोट कभी नहीं मिले। 


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