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प्रणब मुखर्जी की किताब से खुलासा, 2014 में कांग्रेस के पास नहीं था करिश्माई नेतृत्व

पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत प्रणब मुखर्जी ने पुस्तक में लिखा है कि कांग्रेस का करिश्माई नेतृत्व खत्म होने की पहचान नहीं कर पाना 2014 के लोकसभा में उसकी हार के कारणों में से एक रहा। मोदी सरकार अपने पहले कार्यकाल में संसद को सुचारु रूप से चलाने में विफल रही।

By Arun kumar SinghEdited By: Published: Tue, 05 Jan 2021 10:59 PM (IST)Updated: Wed, 06 Jan 2021 06:55 AM (IST)
प्रणब मुखर्जी की किताब से खुलासा, 2014 में कांग्रेस के पास नहीं था करिश्माई नेतृत्व
पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत प्रणब मुखर्जी ने अपनी पुस्तक में लिखा

नई दिल्ली, प्रेट्र। पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत प्रणब मुखर्जी ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि कांग्रेस का अपना करिश्माई नेतृत्व खत्म होने की पहचान नहीं कर पाना 2014 के लोकसभा में उसकी हार के कारणों में से एक रहा। मुखर्जी ने अपने संस्मरण द प्रेसिडेंसियल ईयर्स, 2012-2017 में यह भी कहा कि मोदी सरकार अपने पहले कार्यकाल में संसद को सुचारु रूप से चलाने में विफल रही। उन्होंने यह पुस्तक पिछले साल अपने निधन से पहले लिखी थी। मंगलवार को यह पुस्तक बाजार में आई। उन्होंने इस पुस्तक में यह भी लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा करने से पहले उनके साथ इस मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं की थी, लेकिन इससे उन्हें हैरानी नहीं हुई क्योंकि ऐसी घोषणा के लिए आकस्मिकता जरूरी है। 

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दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की पुस्तक 'द प्रेसिडेंसियल ईयर्स 2012-2017' जारी

पूर्व राष्ट्रपति ने यह उल्लेख किया है कि 2014 के लोकसभा चुनाव की मतगणना वाले दिन उन्होंने अपने सहायक को निर्देश दिया था कि उन्हें हर आधे घंटे पर रुझानों के बारे में सूचित किया जाए। उन्होंने लिखा है, नतीजों से इस बात की राहत मिली कि निर्णायक जनादेश आया, लेकिन किसी समय मेरी अपनी पार्टी रही कांग्रेस के प्रदर्शन से निराशा हुई। उन्होंने पुस्तक में लिखा है, यह यकीन कर पाना मुश्किल था कि कांग्रेस सिर्फ 44 सीट जीत सकी। कांग्रेस एक राष्ट्रीय संस्था है जो लोगों की जिदंगियों से जुड़ी है। इसका भविष्य हर विचारवान व्यक्ति के लिए हमेशा सोचने का विषय होता है।

कांग्रेस की कई सरकारों में केंद्रीय मंत्री रहे मुखर्जी ने 2014 की हार के लिए कई कारणों का उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा है, मुझे लगता है कि पार्टी अपने करिश्माई नेतृत्व के खत्म होने की पहचान करने में विफल रही। पंडित नेहरू जैसे कद्दावर नेताओं ने यह सुनिश्चित किया कि भारत अपने अस्तित्व को कायम रखे और एक मजबूत एवं स्थिर राष्ट्र के तौर पर विकसित हो। दुखद है कि अब ऐसे अद्भुत नेता नहीं हैं, जिससे यह व्यवस्था औसत लोगों की सरकार बनकर रह गई। 

'विदेश नीति की बारीकियों को बहुत जल्द समझने में सफल रहे मोदी'

इस पुस्तक में मुखर्जी ने राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपने सौहार्दपूर्ण संबंधों का भी उल्लेख किया है। अपनी मुलाकातों का जिक्र करते हुए उन्होंने लिखा कि नीतिगत मुद्दों पर सलाह देने में मैं कभी हिचकिचाया नहीं। मेरा मानना है कि पीएम मोदी ने विदेश नीति की बारीकियों को बहुत जल्दी समझ लिया। हालांकि, पुस्तक में मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान संसद को सुचारु रूप से चलाने में विफलता को लेकर आलोचना भी की गई है। उन्होंने लिखा, मैं सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच कटुतापूर्ण बहस के लिए सरकार के अहंकार और स्थिति को संभालने में उसकी अकुशलता को जिम्मेदार मानता हूं। मुखर्जी के मुताबिक, सिर्फ प्रधानमंत्री के संसद में उपस्थित रहने भर से इस संस्था के कामकाज में बहुत बड़ा फर्क पड़ता है। चाहे जवाहलाल नेहरू हों या फिर इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी हों अथवा मनमोहन सिंह, इन्होंने सदन में अपनी उपस्थिति का अहसास कराया। प्रधानमंत्री मोदी को अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों से प्रेरणा लेनी चाहिए और नजर आने वाला नेतृत्व देना चाहिए। 


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