पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने किया EC का बचाव, कहा- 70 साल से निष्पक्ष हो रहे चुनाव
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने चुनाव आयोग की सराहना की है। उन्होंने कहा कि आयोग वास्तव में एक अनूठी संस्था है, जो पिछले सात दशक से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करा रही है।
नई दिल्ली, आइएएनएस। ऐसे समय में जब विपक्षी पार्टियां चुनाव आयोग की निष्पक्षता को लेकर सवाल कर रही हैं, पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आयोग की सराहना की है। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग वास्तव में एक अनूठी संस्था है, जो पिछले सात दशक से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करा रही है। देश के 17वें मुख्य चुनाव आयुक्त रहे एसवाई कुरेशी द्वारा संपादित किताब 'द ग्रेट मार्च ऑफ डेमोक्रेसी' के प्रस्तावना में मुखर्जी ने लिखा है कि लोकतंत्र भारत को उपहार में नहीं मिला है, बल्कि लोगों के निष्पक्ष भरोसे की देन है।
पूर्व राष्ट्रपति ने की चुनाव आयोग की तारीफ
हाल ही में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजे गए 83 वर्षीय प्रणब मुखर्जी ने कहा कि संवैधानिक राष्ट्रभक्ति ही भारतीय राष्ट्रवाद है, जिसे विभिन्न घटक मिलकर पूर्ण बनाते हैं। इनमें से एक घटक लोगों की आत्म-शुद्धि और दूसरों से सीखने की क्षमता भी है। पूर्व राष्ट्रपति ने कहा है कि भारत की आजादी के बाद जब चुनाव में वयस्कों को मतदान का अधिकार दिया गया, तब उसके क्रियान्वयन को लेकर लोगों को भरोसा नहीं था। लेकिन पहले आम चुनाव के सफल आयोजन ने सभी तरह की आशंकाओं को खत्म कर दिया। तब से लेकर चुनाव आयोग लगातार सफलतापूर्वक चुनाव संपन्न करा रहा है और ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं को जोड़कर उसमें सुधार भी कर रहा है।
धनबल और बाहुबल के प्रयोग पर जताई चिंता
हालांकि, चुनाव के दौरान मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए धनबल और बाहुबल के प्रयोग पर उन्होंने चिंता भी जताई। उन्होंने कहा कि अगर इस बीमारी को रोका नहीं गया तो लोकतंत्र की भावना विकृत हो जाएगी। उन्होंने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव को प्रभावित करने वाली विकृतियों पर लगाम लगाने के लिए चुनाव आयोग की तरफ से किए जा रहे प्रयासों की सराहना भी की। चार पेज के प्रस्तावना के आखिर में पूर्व राष्ट्रपति ने कहा है कि बहुलता और सहिष्णुता भारत की आत्मा है।
किताब में इन नेताओं के भी हैं लेख
इस पुस्तक में भारत के अनूठी लोकतांत्रिक चुनावी प्रक्रिया के बारे में समय-समय पर विशेषज्ञों, उद्यमियों और नौैकरशाहों द्वारा अपने अनुभवों के आधार पर लिखे गए लेखों को संकलित किया गया है। इसमें शशि थरूर, नैना लाल किदवई, कबीर बेदी, मार्क टूली, योगेंद्र यादव और सोमनाथ चटर्जी समेत विभिन्न लोगों के लेख शामिल हैं।