Move to Jagran APP

पीएम मोदी की लोकप्रियता रही बरकरार, ‘कांग्रेस मुक्‍त भारत’ का दावा हो रहा साकार

इस साल भारतीय लोकतंत्र की एक और खूबसूरती सौम्‍य-सरल राजनेता रामनाथ कोविंद के राष्‍ट्रपति चुने जाने के रूप में भी दिखी।

By Manoj YadavEdited By: Published: Sat, 30 Dec 2017 07:13 PM (IST)Updated: Mon, 01 Jan 2018 12:41 PM (IST)
पीएम मोदी की लोकप्रियता रही बरकरार, ‘कांग्रेस मुक्‍त भारत’ का दावा हो रहा साकार
पीएम मोदी की लोकप्रियता रही बरकरार, ‘कांग्रेस मुक्‍त भारत’ का दावा हो रहा साकार

नई दिल्ली, जेएनएन। साल के आखिरी दो महीनों में हिमाचल और गुजरात विधानसभा के चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्‍यक्ष अमित शाह का जादू तमाम चुनौतियों और अटकलों के बावजूद फिर से चला। दोनों ही राज्‍यों में भाजपा को बहुमत मिला। हालांकि गुजरात में इस बार कांग्रेस और उसके सहयोगियों से कड़ी चुनौती मिलने से यह जीत 99 पर अटक गई। इसके बावजूद यह कहा जा सकता है कि दिसंबर  2017 में ही कांग्रेस के उपाध्‍यक्ष से अध्‍यक्ष बने राहुल गांधी और अन्‍य विपक्षी दल अगर खुद को मजबूत विकल्‍प नहीं बना सके तो भाजपा का ‘कांग्रेस मुक्‍त भारत’ का दावा और मजबूत नजर आता दिख सकता है। इस साल भारतीय लोकतंत्र की एक और खूबसूरती सौम्‍य-सरल राजनेता रामनाथ कोविंद के राष्‍ट्रपति चुने जाने के रूप में भी दिखी। आइए,  जानते हैं कि इस साल इन शख्शियतों ने क्या खोया और क्या पाया?  

loksabha election banner

1- नरेंद्र मोदी

लोकप्रियता बरकरार

एक ऐसे दौर में जब लोकतांत्रिक देशों में सत्ता परिवर्तन का सिलसिला कायम है और इस सिलसिले के चलते विभिन्न देशों में नेतृत्व परिवर्तन हो रहा है तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न केवल भारत के सबसे लोकप्रिय नेता बने हुए हैं, बल्कि यह भी साबित कर रहे हैं कि आगामी आम चुनाव में उन्हें चुनौती दे सकने वाला कोई नहीं है। ऐसे उदाहरण विरले ही हैं जब किसी प्रधानमंत्री ने सत्ता के तीन साल बाद भी अपनी लोकप्रियता बरकरार रखी हो, लेकिन देश-विदेश की संस्थाओं के सर्वेक्षण यही बता रहे हैं कि मोदी भारत की सबसे लोकप्रिय राजनीतिक शख्सियत बने हुए हैं।

सर्वेक्षणों के साथ ही एक के बाद एक राज्यों में होने वाले चुनाव भी उनकी लोकप्रियता पर मुहर लगा रहे हैं। सबसे ताजा मुहर गुजरात और हिमाचल ने लगाई। अगर भाजपा गुजरात बचा सकी तो सिर्फ और सिर्फ मोदी की वजह से। गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा के समक्ष जैसी चुनौती पेश की और इस चुनौती का सामना करने के क्रम में मोदी जिस तरह अतिरिक्त मेहनत करते नजर आए उससे ऐसा लगा कि कहीं उनकी लोकप्रियता का रथ थमने वाला तो नहीं, लेकिन नतीजों ने दिखाया कि फिलहाल मोदी को चुनौती दे सकने वाले उनसे बहुत पीछे चल रहे हैं। नि:संदेह मोदी की लोकप्रियता का कारण यह नहीं है कि वे ‘अच्छे दिन आ गए’ जिनका वायदा किया गया था, बल्कि आम लोगों का यह भरोसा है कि मोदी बिगड़ी चीजों को बनाने की कोशिश पूरे जतन से कर रहे हैं और दुनिया में देश के मान-सम्मान को बढ़ा रहे हैं। तमाम समस्याओं के बाद भी आम जनता उन्हें अपने-अपने कारणों से पसंद कर रही है, लेकिन शायद लोग जोखिम उठाकर कठोर फैसले लेने की उनकी क्षमता के सबसे ज्यादा कायल हैं। वह इस कसौटी पर खरे भी उतर रहे हैं। इस साल पहले उन्होंने डोकलाम में चीन की चुनौती का दृढ़ता से सामना किया और फिर जीएसटी पर अमल के क्रम में।

2- रामनाथ कोविंद

माटी से उठे महामहिम

ऐसा कम ही होता है जब राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी के नाम की घोषणा के साथ ही उसकी जीत कहीं अधिक आसान और सुनिश्चित नजर आने लगे। रामनाथ कोविंद ऐसी ही शख्सियत साबित हुए। वह राष्ट्रपति पद की दौड़ में तो क्या चर्चा में भी नहीं थे, लेकिन जैसे ही उनके नाम की घोषणा हुई विपक्ष भी यह मानने को विवश हुआ कि उनकी राह रोकना उसके वश की बात नहीं। इसकी बड़ी वजह रही लंबे राजनीतिक करियर के बाद भी उनका विवादों से दूर रहना और एक सौम्य-सरल राजनेता की आदर्श छवि से लैस दिखना। उनका राष्ट्रपति भवन में पहुंचना केवल राजनीतिक पृष्ठभूमि के एक सादगी पसंद और विवादों से दूर रहने वाले नेता का सर्वोच्च पद पर आसीन होना भर नहीं रहा, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती का बखान भी रहा।

राष्ट्रपति पद धारण करने के पहले वह बिहार के राज्यपाल रहे, लेकिन देश ने उनके बारे में यह जरूरी बात उनके राष्ट्रपति प्रत्याशी बनने के बाद ही जानी कि वह प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के निजी सचिव भी रह चुके हैं। उनके राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचन ने यह भी बताया कि राजनीतिक खींचतान और दांवपेच से दूर रहकर अपना काम करने वाले राजनेता देश में अभी भी हैं और उनकी कद्र भी होती है।

देश के सर्वोच्च पद पर उनके निर्वाचन ने जमीन से जुडे देश के लाखों-करोड़ों लोगों और खासकर दलित-वंचित तबके के लोगों के बीच जिस नई आशा का संचार किया उसे कानपुर देहात के परौंख जैसे गांवों के बाशिंदे ही सही तरह से समझ सकते हैं। ऐसे लोग 14वें राष्ट्रपति पद की शपथ लेते हुए रामनाथ कोविंद के इन प्रेरणादायक शब्दों को शायद ही भूले हों, ''आज भी जब बारिश हो रही है तो देश में ऐसे कितने ही रामनाथ कोविंद होंगे जो बारिश में भीग रहे होंगे, खेती कर रहे होंगे और शाम को रोटी मिल जाए इसके लिए मेहनत में लगे होंगे...।’’

3- अमित शाह

भाजपा के चाणक्‍य

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के ड्रॉइंग रूम में जाते ही आपको एक तस्वीर चौंकाएगी। ऐसी तस्वीर जिसका नाम तो सभी लोग जानते हैं लेकिन फोटो से बहुत कम ही वाकिफ हैं...। चाणक्य, जो राजनीति में हर कोई बनना चाहता है लेकिन शाह ऐसे व्यक्ति हैं जो शायद चाणक्य को जीते हैं। वरना कोई कारण नहीं है कि सिर्फ विपक्षी दलों के ही नहीं पार्टी के अंदर भी विरोधियों की घिघ्घी बंधी हो। दरअसल पिछले तीन-साढ़े तीन साल में ही शाह ने यह स्थापित कर दिया है कि उन्हें जीत का मंत्र भी आता है और वह विरोधियों के लिए व्यूह रचना की कला से भी वाकिफ हैं। ...और सबसे ऊपर परिश्रम और क्षमता इतनी जो सीमाओं से परे हो। यही खूबियां हैं जिसने महज चार-साढ़े चार वर्ष पहले राष्ट्रीय राजनीति में आने वाले अमित भाई को चाणक्य राजनीति का शाह बना दिया है। विरोधियों के भय की वजह भी है- बहुत कठिन माने जाने वाले उत्तर प्रदेश में उन्होंने 300 सीटों का लक्ष्य रखा तो हासिल कीं 325 सीटें। उत्तराखंड के लिए 50 सीटों का लक्ष्य रखा तो सीटें मिली 57। हिमाचल में 44 सीटों के साथ कांग्रेस को सत्‍ता से बाहर कर दिया। यानी हर बार असंभव दिखने वाले लक्ष्य को परास्त करना।

गुजरात, जहां भाजपा 22 वर्षों से सत्ता में है वहां एक बार फिर 99 सीटों के साथ किसी भी सत्ता विरोधी लहर की अटकल को भी खारिज कर दिया। भाजपा का नारा तो कांग्रेस मुक्त भारत का रहा है, लेकिन वाम दल भी इसकी चपेट में है। त्रिपुरा में जो परिस्थितियां बनी हैं उनमें राज्य की वाम सरकार का भविष्य अधर में है तो केरल में भाजपा ने परिवर्तन के लिए कदम बढ़ा दिया है। पार्टी के अंदर उन्होंने यह स्थापित कर दिया है कि पद कद से नहीं काम से तय होगा।

4- राहुल गांधी

बदलाव के साथ बढ़ी मुखरता!

राहुल गांधी साल खत्म होते-होते कांग्रेस के उपाध्यक्ष से अध्यक्ष पद पर आसीन हो गए। इसी के साथ वह सबसे पुरानी पार्टी को नए दौर में ले जाने वाले युवा नायक बन गए, लेकिन बतौर पार्टी अध्यक्ष अपने पहले संबोधन के जरिये वह वैसी छाप नहीं छोड़ सके जैसी उन्होंने उपाध्यक्ष बनते समय सत्ता जहर है...वाले भाषण से छोड़ी थी। इसके बावजूद इससे इन्कार नहीं कि वह पहले से ज्यादा आक्रामक और मुखर हुए हैं। इसी के साथ उनकी भाषण शैली भी निखरी है। जैसे उनके भाषण पहले की तुलना में धारदार हुए हैं वैसे ही उनके ट्वीट भी। हालांकि इसका ठीक-ठीक जवाब नहीं मिल पाया कि उनके ट्वीट को इतने रिट्वीट कहां से मिल रहे हैं, लेकिन इतना अवश्य है कि वह अनिच्छुक नेता की छवि से मुक्त होते दिख रहे हैं। इस छवि से मुक्ति के बाद कांग्रेस समर्थकों और नेताओं को इंतजार है उनके राजनीतिक चिंतन में बदलाव का, क्योंकि उनके वैसे बयान उन्हें और साथ ही पार्टी को मुश्किल में डालते ही रहते हैं जैसा उन्होंने अमेरिका में दिया और जिसके तहत वंशवादी राजनीति के पक्ष में खुल्लम खुल्ला यह कह दिया कि भारत में तो ऐसे ही चलता है।

आक्रामक और मुखर होने के साथ चुटीली भाषा से लैस हुए राहुल गांधी गुजरात में पार्टी की सीटों में बढ़त से उत्साहित दिख रहे हैं, लेकिन इस बारे में कुछ कहना कठिन है कि उनका मंदिर प्रेम बना रहेगा या फिर वह अन्य किसी अवतार में नजर आएंगे। उन्होंने यह तो साबित किया कि वह खुद में बदलाव लाने में समर्थ हैं और इस क्रम में उन्हें जनेऊधारी हिंदू की उपाधि धारण करने से भी हर्ज नहीं, लेकिन अभी यह साबित होना शेष है कि उनकी इस सामर्थ्‍य से पार्टी को ताकत मिलेगी या नहीं?

5- योगी आदित्यनाथ

विस्‍तृत होता आभामंडल

गुजरात के 20 जिलों में 36 सभाएं। हिमाचल प्रदेश भी वे जाते हैं और छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी उनका आकर्षण प्रशंसकों के सिर चढक़र बोलता है। उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों में वे 40 सभाएं करते हैं। किसी मुख्यमंत्री द्वारा निकाय चुनाव में इतनी सभाएं करने का यह पहला उदाहरण था और उनके आलोचकों ने इस पर प्रश्न भी उठाए, परंतु यही उनका लगातार विस्तृत होता आभामंडल है, जो उन्हें प्रदेश और देश की सीमाओं के बाहर मॉरीशस तक ले गया। जब योगी आदित्यनाथ का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए घोषित हुआ तो अनेक भृकुटियां चढ़ीं। लोगों को लगा कोई मठ प्रमुख इतने बड़े और जटिल राज्य का प्रशासन भला कैसे संभाल सकता है। उनके प्रशासन के पिछले आठ महीनों को तीन भागों में बांटा जा सकता है।

आरंभिक दो-तीन महीने भरपूर उत्साह और नई घोषणाओं के थे। योगी के भगवा वस्त्र और प्रखर वाणी आम और खास सबको भा रही थी। फिर वह समय आया जब कानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठने लगे और विपक्ष आक्रामक हुआ। परंतु पिछले कुछ समय से कानून का राज दिखा है और पुलिस की सख्ती ने सकारात्मक माहौल बनाया है। अयोध्या में दिवाली और अब बरसाने में होली मनाने की घोषणा करके योगी अपने आधार वोट को मजबूती से थामे रखने में सफल रहे।

निजी स्कूलों पर लगाम कसने की जो प्रबल इच्छाशक्ति उनकी सरकार ने दिखाई और फरवरी में होने जा रही इंवेस्टर्स मीट को जिस तरह महत्व देते दिखे उससे उनकी प्राथमिकताओं का पता चलता है।

यह भी पढ़ेंः मेघालय में आठ विधायकों का इस्तीफा, कांग्रेस सरकार पर संकट


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.