कश्मीर पर सियासत गर्म: कांग्रेस को मिला लश्कर का साथ, भाजपा ने लिया आड़े हाथ
कश्मीर को लेकर सियासी जंग शुरू हो गई है। इस जंग को एक चिंगारी की जरूरत थी, जो शुक्रवार को दिए सोज के बयान के बाद भड़क उठी।
नई दिल्ली [जेएनएन]। कश्मीर को लेकर सियासी जंग शुरू हो गई है। इस जंग को एक चिंगारी की जरूरत थी, जो शुक्रवार को दिए सोज के बयान के बाद भड़क उठी। रही सही कसर लश्कर ने कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद के बयान का समर्थन कर पूरी कर दी। यूं तो कश्मीर में सियासी महाभारत की पटकथा उसी दिन लिखी जाने लगी थी, जब भाजपा ने पीडीपी से गठबंधन तोड़ लिया। इसके बाद माना जाने लगा कि अब राज्य में सियासी जंग शुरू हो जाएगी। वैसा हुआ भी। हर पार्टी अपने नजरिेए और बयानों से कश्मीर के आतंकवाद को नाप रही है। लेकिन भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे पर वार-पलटवार का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं।
कश्मीर पर सोज की 'सोच'
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सैफुद्दीन सोज ने एक इंटरव्यू के दौरान पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के उस बयान का समर्थन किया, जिसमें मुशर्रफ ने कहा था कि कश्मीरी पाकिस्तान के साथ जुड़ना नहीं चाहते, उनकी पहली इच्छा आजादी है। सोज ने कहा कि यह बयान तब भी सच था और अब भी है। मैं भी ऐसा कहता हूं, लेकिन जानता हूं कि ऐसा संभव नहीं है।
सैफुद्दीन सोज ने कहा कि अगर केंद्र कश्मीर मसले का हल चाहता है, वहां अमन चाहता है, तो उसे कश्मीरियों के प्रति एक ऐसा माहौल बनाना होगा जिससे वह सुरक्षित महसूस कर सकें। ऐसा माहौल जहां बातचीत को कश्मीरी तैयार हो पाएं। बात करने के लिए हुर्रियत ग्रुप से पहले बात होनी चाहिए और उसके बाद मेनस्ट्रीम पार्टियों से बात होनी चाहिए। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि घाटी में सेना बढ़ाने से सिर्फ कश्मीरी मारे जाएंगे लेकिन यहां शांति स्थापित नहीं हो पाएगी। हालांकि, उन्होंने कहा इस बयान का उनकी पार्टी कांग्रेस से कोई लेना-देना नहीं है।
भाजपा-शिवसेना ने किया पलटवार
भाजपा नेता सुब्रमण्यन स्वामी ने सोज के बयान की जमकर आलोचना की है। उन्होंने कहा, 'जब सोज केंद्र में मंत्री थे और जेकेएलएफ ने सोज की बेटी का अपहरण किया था, तब उन्हें केंद्र से मदद मिली थी। ऐसे लोगों की मदद करने का कोई फायदा नहीं। जो भी भारत में रहना चाहता है वह यहां के संविधान को मानते हुए यहां रह सकता है। अगर कोई परवेज मुशर्रफ को पसंद करता तो उनका एक तरफ का टिकट (पाकिस्तान जाने का) कटवा दिया जाए।'
उधर, शिवसेना नेता मनीषा कायांदे ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जवाब दें कि क्या वो सैफुद्दीन सोज के बयान का समर्थन करते हैं। यदि वह (सैफुद्दीन सोज) पाकिस्तान और मुशर्रफ के लिए इतना स्नेह रखते हैं, तो उन्हें पाकिस्तान चले जाना चाहिए और उनका नौकर बनने पर विचार करना चाहिए।
गुलाम नबी आजाद का बयान और लश्कर का समर्थन
इससे पहले गुरुवार को गुलाम नबी आजाद ने कहा था कि केंद्र सरकार की नीति का सबसे ज्यादा खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ता है। उन्होंने कहा कि कश्मीर में चार आतंकियों को मारने के लिए 20 आम नागरिक भी मारे जाते हैं। उन्होंने मोदी सरकार पर आरोप लगाते कहा कि सेना का एक्शन नागरिकों के खिलाफ ज्यादा और आंतकियों के खिलाफ कम है। गुलाम के इस बयान को लश्कर-ए-तैयबा ने समर्थन कर दिया।
लश्कर प्रवक्ता ने कहा कि शुरू से ही हमारी राय वही है जो गुलाम नबी आजाद की रही है। हिंदुस्तान कश्मीर में राज्यपाल शासन लगाकर दोबारा जगमोहन युग की शुरुआत करना चाहता है और निर्दोषों का कत्लेआम करना चाहता है।
भाजपा बोली- वोट के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं राहुल
भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर गुलाम नबी आजाद और सैफुद्दीन सोज के बयानों को लेकर कांग्रेस पर हमला बोला। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सैफुद्दीन सोज के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा, 'सैफुद्दीन सोज का बयान आपने देखा होगा, उन्होंने पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के प्रति नया प्रेम दिखाया है। मुझे बताया गया है कि कांग्रेस ने उनके बयान से किनारा कर लिया है, लेकिन महज किनारा करने से काम नहीं चलेगा।'
प्रसाद ने कहा है कि आज जो भाषा कांग्रेस पार्टी के नेता बोल रहे हैं, उसका समर्थन लश्कर-ए-तैयबा कर रही है। किस राजनीतिक लाभ के लिए आज कांग्रेस पार्टी देश को तोड़ने वालों के साथ खड़ी हो गई है? गुलाम नबी आजाद ने कहा कि सेना कश्मीर में आतंकवादियों से ज्यादा आम जनता को मार रही है। उनकी यह टिप्पणी बहुत ही शर्मनाक, दुर्भाग्यपूर्ण और गैर जिम्मेदाराना है। प्रसाद ने कहा कि वोट के लिए राहुल गांधी किसी भी हद तक जा सकते हैं।
इसके अलावा रविशंकर प्रसाद ने आतंकियों के मारे जाने का एक आंकड़ा भी पेश किया। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में 2012 में 72 और 2013 में 67 तंकी मारे गए थे। जून 2014 में हम सत्ता में आए, इसके बाद 2014 में 110 आतंकी मारे गए। इसके अलावा 2015 में 108, 2016 में 150, 2017 में 217 और 2018 में अब तक 75 आतंकी मारे जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि यह आंकड़े जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद से लड़ने के लिए यूपीए और एनडीए शासन के दौरान किए गए प्रयासों की कहानी हैं।